Sarzameen Movie Review: 'सरजमीन' से बढ़कर बेटा भी नहीं....बाप-बेटे की इमोशनल कहानी, पर क्लाइमैक्स है जान
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Sarzameen Movie Review: 'सरजमीन' से बढ़कर बेटा भी नहीं....बाप-बेटे की इमोशनल कहानी, पर क्लाइमैक्स है जान

अगर आप घर बैठे कुछ नया देखना चाहते हैं तो काजोल, पृथ्वीराज सुकुमारन और इब्राहिम अली खान  की फिल्म 'सरजमीन' ओटीटी पर रिलीज हो गई है. देखने से पहले इसका रिव्यू जरूर पढ़ लें.

सरजमीन फिल्म रिव्यू
सरजमीन फिल्म रिव्यू

मूवी: सरजमीन
कलाकार: काजोल, पृथ्वीराज सुकुमारन,इब्राहिम अली खान,बोमन ईरानी
निर्देशक: कायोज ईरानी
कहां देखें: जियो हॉटस्टार
रेटिंग : 3.5 

Sarzameen Movie Review: कुछ फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए होती है तो कुछ फिल्में आपके जहन में धीरे-धीरे उतरती हैं. ये एक ऐसी ही फिल्म है जिसकी शुरुआत तो धीमी होती है लेकिन क्लाइमैक्स में ऐसी परतें खुलती हैं कि उसका आपको दूर दूर तक हिंट नहीं मिलेगा. ये फिल्म आतंकवाद और उसके चंगुल में फंसे एक कर्नल की कहानी है. जिसमें काजोल मां फिल्म के बाद एक अलग अवतार में एक्शन करती दिखीं तो पृथ्वीराज सुकुमारन और इब्राहिम अली खान उनके परिवार का हिस्सा है.

आतंकवाद और परिवार 

इस फिल्म की शुरुआत कश्मीर के एक सीन से होती है. सेना के जवान आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देते हैं. इसके बाद दूसरे मिशन पर जवान जैसे ही पहुंचते हैं तो ऑपरेशन को लीड कर रहे कर्नल को पता चलता है कि ये ट्रैप है. इसके बाद वो खुद ही वहां जाते है और मिशन को कामयाब करके आते हैं. इस मिशन में वो जिंदा दो आतंकी भाइयों को पकड़ने में सफल हो जाते हैं. इन दो आतंकियों को पकड़ने के बाद विजय मेनन का प्रमोशन हो जाता है और वो ब्रिगेडियर बन जाते हैं. लेकिन, वो उस आतंकी की तलाश में है जो मोहसिन है और कई साल से कश्मीर में मासूम लोगों का खून बहा रहा है.

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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बाप-बेटी की कहानी

फिल्म में एक तरफ विजय मेनन आतंकियों का सामना कर रहा होता है तो वहीं दूसरी तरफ वो अपने घर में भी एक अनकही जंग लड़ रहा होता है. ये खुद उसकी उसके बेटे संग होती है. विजय (पृथ्वीराज सुकुमारन) और मेहर (काजोल) का बेटा हरमन बाकी बच्चों की तरह नॉर्मल नहीं होता. उसे सेंटेस बोलने में दिक्कत होती है और इसी वजह से विजय अपने बेटे से खफा और दुनिया के सामने खुद को शर्मिंदा फील करता है.

यहां से आता है ट्विस्ट

मेहर विजय को बहुत समझाती है लेकिन वो नहीं समझता. तभी विजय को दोनों आतंकी भाइयों को छोड़ने की धमकी मिलती है. ये भी कहा जाता है कि अगर वो भाइयों को नहीं छोड़ेगा तो उसके बेटे को अगवा कर लिया जाएगा. ऐसा ही होता है. इसके बाद कहानी 8 साल का लीप लेती है.

क्लाइमेक्स देगा शॉक

विजय आतंकियों द्वारा होस्टेज किए गए लोगों को छुड़वाता है और तब पता चलता है उसी में से उसका बेटा है. लेकिन,वो बेटा वापस आकर क्या करता है और उसके बाद आखिर में जो कहानी टर्न लेती है उसके लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी. लेकिन इतना जरूर है कि इस फिल्म का क्लाइमेक्स कुछ ऐसा है जो आपके एक शॉक जरूर देगा.

क्यों देखें?

फिल्म में अभिनय की बात करें तो काजोल हमेशा की तरह अपने रोल में शानदार है. वहीं,विजय मेनन के रोल में पृथ्वीराज ने उनका खूब साथ दिया है. इब्राहिम की बात करें तो उनकी ये दूसरी फिल्म है और अभिनय के मामले में काफी बेहतर है. डायरेक्शन के मामले में कायोज ईरानी ने शुरू से आखिर तक फिल्म पर पकड़ बनाई हुई है. बेस्ट पार्ट है कि ये फिल्म ओटीटी पर रिलीज हुई जिससे हो सकता है कि इसे और ज्यादा अच्छा रिस्पांस मिले.

 

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