स्काईमेट वेदर के अनुसार इस वर्ष ला नीना की स्थितियां बन रही थीं, लेकिन बाद में ये सिमट रही है. इसके अलावा, अल नीनो की कोई सक्रियता भी देखने को नहीं मिल रही है. इस परिप्रेक्ष्य में, दिल्ली एनसीआर में अधिक वर्षा होने की संभावनाएं कम हैं.
मौसम विभाग का कहना है कि देश के विभिन्न राज्यों में मानसून सामान्य से अधिक बरसेगा. हालांकि, सभी राज्यों में वर्षा का पैटर्न एक जैसा नहीं होता. यह बात ध्यान में रखते हुए दिल्ली में वर्षा की मात्रा में भी भिन्नता देखने को मिल सकती है.
दिल्ली में मानसून की दस्तक आमतौर पर 25 जून के आसपास होती है. मानसून की सक्रियता सितंबर के तीसरे सप्ताह तक रहती है, लेकिन कई बार यह अक्टूबर के पहले सप्ताह तक भी जारी रहती है. पिछले वर्ष, 2024 में, मानसून एक सप्ताह की देरी से दो अक्टूबर को विदा हुआ था.
पिछला वर्ष वर्षा के लिहाज से 1901 के बाद से सातवां सबसे अधिक वर्षा वाला रहा. सामान्य 640.3 मिमी की तुलना में 1029.9 मिमी वर्षा हुई थी. यह आंकड़ा दर्शाता है कि पिछले वर्ष ने मानसून के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दिखाया.
ला नीना और अल नीनो दोनों ही प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव से जुड़े मौसम पैटर्न हैं. ये दोनों ईएनएसओ (अल नीनो साउदर्न ओसिलेशन) चक्र के दो चरण हैं. अल नीनो में पानी सामान्य से गर्म होता है, जबकि ला नीना में यह सामान्य से ठंडा होता है. ला नीना मानसून को प्रभावित कर सकता है, जिससे वर्षा की मात्रा में कमी या वृद्धि हो सकती है.