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'दोहरी मौत की सजा' क्या होती है? क्या हैं इसके कानूनी पहलू?

गुजरात के आणंद की सत्र अदालत ने मासूम बच्ची से रेप और हत्या के मामले में दोषी को 'दोहरी मौत की सजा' सुनाई है. इस अभूतपूर्व फैसले ने आम लोगों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

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सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नीरज कुमार ने दोहरी मौत की सजा के कानूनी और सामाजिक पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने आणंद सत्र अदालत के फैसले को लेकर बताया कि दोहरी मौत की सजा का तात्पर्य यह है कि अगर दोषी को किसी एक मामले में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल जाती है, तब भी उसे दूसरे मामले में मौत की सजा मिलेगी.

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गुजरात के आणंद में मासूम बच्ची से रेप और हत्या के केस में एक मामला पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) एक्ट के तहत और दूसरा आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और 302 (हत्या) के अंतर्गत है. जब इन दोनों धाराओं में अपराध 'रेयर ऑफ द रेयरेस्ट' श्रेणी में आता है. अगर  अभियोजन पक्ष अदालत में अपराध साबित कर देता है तो कोर्ट दोनों ही मामलों में दोषी को मौत की सजा सुना सकता है. (फोटो: एआई)

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सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नीरज कुमार ने समझाया कि इस सजा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर ऊपरी अदालत किसी एक धारा में दोषी को बरी कर भी दे या आगे चलकर सबूतों के अभाव में मामला कमजोर पड़ जाए तो दूसरी धारा के तहत दी गई सजा कायम रहे और अपराधी को मौत की सजा से राहत न मिले. 

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वर्तमान मामला 2004 के चर्चित धनंजय चटर्जी केस की तरह ही है. उस केस में 15 वर्षीय किशोरी से बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी को दोहरी मौत की सजा दी गई थी.  उस समय भी दोनों धाराओं में दोष सिद्ध हुआ था और अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि अपराधी किसी भी हालत में मृत्युदंड से न बच सके.

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अधिवक्ता नीरज कुमार ने बताया कि ट्रायल कोर्ट आमतौर पर तब भी सजा दे देता है जब आरोपी के खिलाफ 50 से 60 फीसदी तक दलील मजबूत हो. इसके बाद जब ये मामला हाईकोर्ट में जाता है तो देखा जाता है कि प्रॉसिक्यूशन का केस कितना मजबूत था और क्या सजा सही तरीके से दी गई है. आणंद के केस में दोषी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 376 के अलावा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया था. दोनों ही मुकदमे अलग-अलग मामलों की तरह थे लेकिन अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किया गया था. इसी वजह से अदालत ने दोनों मामलों में अलग-अलग मौत की सजा सुनाई. वर्तमान स्थिति में दोषी के पास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील का रास्ता खुला हुआ है. वहां भी मौत की सजा बरकरार रहती है तो राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका का विकल्प भी रहेगा.

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