चंबल में 53 साल बाद फिर जुटे डकैत, जिनका नाम सुनकर कांपता पूरा क्षेत्र, जानिए इस बार क्या हुई बात
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चंबल में 53 साल बाद फिर जुटे डकैत, जिनका नाम सुनकर कांपता पूरा क्षेत्र, जानिए इस बार क्या हुई बात

मुरैना जिले के जौरा में स्थित गांधी आश्रम में आज एक ऐतिहासिक मिलन समारोह आयोजित किया गया. 53 वर्ष पहले, डॉ. एसएन सुब्बाराव के प्रयासों से आत्मसमर्पण करने वाले पूर्व डकैत आज एक साथ आए. इस भावुक मिलन समारोह में, उन्होंने अपने परिवारों के साथ भाग लिया और अपने अनुभवों को साझा किया.

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Morena News: मुरैना जिले के जौरा में स्थित गांधी आश्रम में आज एक ऐतिहासिक मिलन समारोह आयोजित किया गया. 53 वर्ष पहले, डॉ. एसएन सुब्बाराव के प्रयासों से आत्मसमर्पण करने वाले पूर्व डकैत आज एक साथ आए. इस भावुक मिलन समारोह में, उन्होंने अपने परिवारों के साथ भाग लिया और अपने अनुभवों को साझा किया. विशेष मिलन समारोह में शामिल होने वाले ये वही पूर्व डकैत थे, जिनका नाम सुनकर पूरा क्षेत्र कांपता था, वे सभी आज सामान्य और शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं.

इस भावुक मिलन समारोह में आत्मसमर्पित पूर्व डकैतों ने अपने परिवारों के साथ शिरकत की, कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य डॉ. सुब्बाराव के उस महान योगदान को याद करना था, जिसकी वजह से इन लोगों ने हिंसा का मार्ग छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया था. इस दौरान सभी पूर्व डकैतों ने अपने अनुभवों को साझा किया और उस दौर की चुनौतियों पर प्रकाश डाला. यह मिलन समारोह गांधीवादी विचारधारा की शक्ति और परिवर्तन लाने की क्षमता का जीवंत उदाहरण रहा.

70 के दशक में सक्रिय थे ये गिरोह
गौरतलब है कि 1970 के दशक में चंबल के बीहड़ों में माधौ सिंह, मलखान सिंह जैसे कुख्यात डकैतों सहित लगभग 654 से अधिक गिरोह सक्रिय थे. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की पुलिस भी इनसे त्रस्त थी और बीहड़ों में इन तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था. व्यापारी वर्ग से लेकर आम जनता तक हर कोई इन डकैतों के आतंक से परेशान था.

गांधीवादी सिद्धांतों से सुधरे डकैत
ऐसे मुश्किल समय में डॉ. एसएन सुब्बाराव ने गांधीवादी सिद्धांतों का पालन करते हुए इन डकैतों को सुधारने का संकल्प लिया. उन्होंने गांवों और बीहड़ों में घूम-घूमकर डकैतों को समझाया कि उनके इस हिंसक जीवन का कोई भविष्य नहीं है. उनके अथक प्रयासों का ही नतीजा था कि डकैतों ने आत्मसमर्पण करने के लिए सहमति जताई.

सरकार ने रखी थी ये शर्त
आत्मसमर्पण से पहले डकैतों ने सरकार के सामने कुछ शर्तें रखी थीं, जिनमें खुली जेल में परिवार के साथ रहने की अनुमति, कृषि भूमि का आवंटन और परिवार के सदस्यों को नौकरी देने की मांग प्रमुख थी. तत्कालीन सरकार ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए इन शर्तों को स्वीकार कर लिया था. 14 अप्रैल 1972 को तत्कालीन मुख्यमंत्री और राज्यपाल की उपस्थिति में इन डकैतों ने गांधी जी की प्रतिमा के सामने अपने हथियार डाल दिए थे, जो एक ऐतिहासिक घटना बन गई थी. आज 53 साल बाद, उसी समर्पण की भावना और डॉ. सुब्बाराव की याद में यह मिलन समारोह आयोजित किया गया, जो शांति और सद्भाव का संदेश देता है.

रिपोर्ट- करतार सिंह राजपुत, जी मीडिया मुरैना

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