Bhopal Masjid: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को नवाबों का शहर भी कहा जाता है. नवाबों के इस शहर में रमज़ान आते ही रौनक बढ़ गई है. बाजार सज चुके हैं रोज़ेदारों में उत्साह भरा हुआ है और लोग बेसब्री से ईद का इंतजार कर रहें हैं. रमजान में मस्जिदों में भी ख़ास तैयारियां की जाती हैं. लोग इबादत करने मस्जिदों में पहुंचते हैं. भोपाल में मस्जिदों की बात करें तो राजधानी में एशिया की सबसे बड़ी और छोटी मस्जिद मौजूद है. क्या है इन मस्जिदों की खासियत और इनका इतिहास पढ़े इस खबर में.
नवाबों के शहर भोपाल में जब मस्जिद की बात आती है तो सबसे ऊपर ताज-उल-मस्जिद का नाम आता है. कहा जाता है कि भोपाल का ये मस्जिद बेहद खास है. खास होने की वजह से ताज-उल-मस्जिद विश्व भर में काफी मशहुर है.
ताज-उल-मस्जिद का इतिहास काफी पुराना है. बताते है कि इस मस्जिद का निर्माण भोपाल की शासक शाहजहां बेगम ने करवाया था. किसी कारणवश मस्जिद का निर्माण बीच में ही रोक दिया गया था. 1971 में ये मस्जिद पूरी तरह बनकर तैयार हुई थी.
एशिया के सबसे बड़े मस्जिद के नाम से जाने जाना वाले इस मस्जिद की वास्तुकला देखने लायक है. इस्लामी और मुगल स्टाइल में बने इस मस्जिद पर तीन गुंबद बनाए गए हैं और दो बड़ी मीनारें बनाई गई हैं.
ताज-उल-मस्जिद को मस्जिदों के ताज से भी जाना जाता है लोग यहां 5 वक्त की नमाज पढ़ने के साथ-साथ इसकी वास्तुकला भी देखने आते हैं.
वहीं सीढ़ियों वाला मस्जिद के नाम से फेमस भोपाल का ये मस्जिद एशिया का सबसे छोटा मस्जिद कहलाता है. कहा जाता है कि ये मस्जिद तीन सौ साल पुरानी हैं.
इस मस्जिद की सबसे खास बात तो ये है कि निर्माण के समय यहां ढाई सीढ़ियां बनाई गई थी और यहां कमरों की संख्या भी ढाई है. यहां तक की यहां आने के रास्ते पर भी सीढ़ियों की संख्या ढाई ही है.
रमज़ान के इस पाक महीने में इबादत के लिए मस्जिदों में आए लोग मस्जिदों की रौनक बढ़ा देते हैं. इसके साथ ही कई मस्जिदों में इफ्तार और सहरी के लिए विशेष इंतजाम किया जाता है जिसकी वजह से यहां के रौनक में चार चांद लग जाता है.
ट्रेन्डिंग फोटोज़