Cotton Farming Tips: मध्य प्रदेश का खरगोन जिला आज ‘सफेद सोना’ यानी कपास की खेती के लिए पूरे देश में पहचान बना चुका है. यहां की जमीन कपास उगाने के लिए इतनी उपजाऊ है, कि इसे राज्य का सबसे बड़ा कपास उत्पादक क्षेत्र माना जाता है. खास बात यह है कि यहां उगने वाला कपास सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है.
मध्य प्रदेश का खरगोन जिला कपास की खेती के लिए पूरे देश में जाना जाता है. यहां उगने वाला कॉटन ‘सफेद सोना’ के नाम से मशहूर है. कपास से बना धागा विदेशों तक भेजा जाता है और वहां इसकी अच्छी डिमांड रहती है. जिले के करीब 95 फीसदी किसान खरीफ सीजन में कपास की ही खेती करते हैं.
हालांकि, कई बार मौसम की मार और कीट रोगों की वजह से कपास की फसल खराब हो जाती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में सिर्फ एक ही फसल पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है. इसी वजह से कृषि विशेषज्ञ किसानों को मिश्रित खेती करने की सलाह दे रहे हैं.
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह ने बताया कि पुराने समय में किसान एक ही खेत में कई फसलें एक साथ बोते थे. इसे ही मिश्रित खेती कहा जाता है. इससे मुख्य फसल सुरक्षित रहती है और दूसरी फसलों से किसानों को अलग से मुनाफा भी होता है. यानी एक ही खेत से एक ही सीजन में दोगुनी कमाई हो सकती है.
कपास की फसल में पौधे से पौधे की दूरी लगभग 4 फीट होती है. इस खाली जगह का किसान बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं. वे कपास के साथ-साथ सोयाबीन, मूंग, उड़द या अरहर जैसी दलहनी फसलें बो सकते हैं. ये फसलें न सिर्फ जमीन की उर्वरता बढ़ाती हैं बल्कि एक-दूसरे की पूरक भी होती हैं.
दलहनी फसलें वायुमंडल से नत्रजन (नाइट्रोजन) खींचकर जमीन को उर्वर बनाती हैं, जिससे पास में लगी दूसरी फसलों को भी पोषण मिलता है. कपास के साथ ये फसलें लगाने से खेत में कीटों का हमला भी कम हो जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, कपास पर लगने वाले रस चूसने वाले कीट दलहनी फसलों पर चले जाते हैं क्योंकि उनके पत्ते मीठे होते हैं.
मिश्रित खेती का एक और फायदा यह है कि इससे खेत में खरपतवार (जंगली घास) भी कम होता है. कपास के बीच में जब दूसरी फसलें होती हैं, तो घास को उगने की जगह नहीं मिलती है. इससे डोरा या कुल्पा चलाने का खर्च भी बच जाता है, यानी कम लागत में ज्यादा फायदा और किसानों की आमदनी में सीधा इजाफा
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