Banswara News: राजस्थान के जिले बांसवाड़ा जिले का 12 साल का कृष्णा एक मिसाल है. उसके जन्म से ही न हाथ और न ही पैर हैं. कृष्णा पढ़ाई में अव्वल है और क्रिकट का शौकीन है. उसके बल्ले से चौक्के छक्के निकलते हैं.
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Banswara News: जिंदगी से हार मानने वालों के लिए राजस्थान के सुदूर जनजाति जिले बांसवाड़ा जिले का 12 साल का कृष्णा एक मिसाल है. उसके जन्म से ही न हाथ और न ही पैर हैं. लेकिन हौसला और जुनून कूट-कूटकर भरा है.
कृष्णा पढ़ाई में अव्वल है और क्रिकट का शौकीन है. उसके बल्ले से चौक्के छक्के निकलते हैं.अपने जज्बे से सबको प्रेरित करने वाला कृष्णा दोनों कोहनियों से पेन पकड़कर लिखता है. घुटनों में चप्पल पहनकर चलता है.
कृष्णा छठीं कक्षा का होनहार छात्र है. उसने कभी स्कूल मिस नहीं किया. चाहे बारिश हो, गर्मी हो या कड़ाके की ठंड वह नियमित पढ़ाई के लिए स्कूल पहुंचा. कृष्णा का सपना है कि वह बड़ा होकर क्रिकेटर के साथ ही टीचर भी बने.
कृष्णा बांसवाड़ा जिले के छोटी सरवन पंचायत समिति के खोरीपाड़ा गांव में रहता है. उसके पिता प्रभुलाल मईड़ा मजदूरी करते हैं. लकड़ी काटकर अपने परिवार का गुजारा चलाने वाले प्रभुलाल के घर जब कृष्णा का जन्म हुआ, तो खुशी के साथ-साथ उन्हें दुख भी था.
बच्चे के न हाथ थे और न पैर, लेकिन उसकी मुस्कान इतनी प्यारी थी कि प्रभुलाल के सारे दुख दूर हो गए. उन्होंने उसका नाम कृष्णा रखा. परिजन बताते हैं कि कृष्णा का बचपन आसान नहीं था. जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, चुनौतियां बढ़ती गईं. वह भी आम बच्चों की तरह खेलना और पढ़ना चाहता था लेकिन उसकी शारीरिक स्थिति इसे मुश्किल बनाती थी. फिर भी, कृष्णा ने हिम्मत नहीं हारी. उसने घुटनों से चलना शुरू किया और चार साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू कर दिया.
परिजनों ने बताया कि कृष्णा जब पांच साल का था, जब उसकी मां का देहांत हो गया. अब उसके दादाजी उसे रोज सुबह दो किलोमीटर दूर पीएमश्री स्कूल छोटी सरवन छोड़ने जाते हैं. स्कूल की छुट्टी होने पर वह बाकी बच्चों के साथ पैदल ही घर लौटता है.
कृष्णा के टीचर बताते हैं कि उसका होमवर्क कभी अधूरा नहीं रहता. वह हमेशा समय पर अपना काम पूरा करता है. सुबह पिता मजदूरी के लिए जल्दी निकल जाते हैं इसलिए कृष्णा खुद नहा-धोकर तैयार होता है और स्कूल के लिए निकल पड़ता है. उसकी मेहनत और लगन का नतीजा है कि वह कक्षा के सबसे होशियार बच्चों में गिना जाता है.
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