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Mahesthwar Mahadev Temple, Jaipur News: महाशिवरात्रि के अवसर पर महार गांव में स्थित मालेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. शिवालय में हर-हर महादेव के जयकारों से वातावरण गूंज उठा. श्रद्धालुओं ने भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की और बिल्व पत्र, बेर, और दुग्धाभिषेक चढ़ाकर पूजा की. मंगला आरती के बाद से ही जलाभिषेक के लिए भक्त उमड़ पड़े. यह प्राचीन शिवलिंग शिव पुराण में भी उल्लेखित है. एक अनोखी बात यह है कि इस शिवलिंग का झुकाव छः माह उत्तरायण और छः माह दक्षिणायन होता है, जैसे कि सूर्य के पास इसका रिमोट कंट्रोल हो.
आज महाशिवरात्रि का पर्व हैं और आज के दिन ,,,शिवालयों में हर हर महादेव,बम बम भोले की गूंज, गूंज रही हैं.आज हम आपको ऐसे शिवायल में लेकर चलेगें जो अपने आप में अनुठा है और कहा जाता हैं कि इस शिवलिंग का रिमोट कंटोल सूर्य के पास हैं,,,,,यानि मालेश्वर महादेव मंदिर का स्वयभू श्विलिंग स्वत: सूर्य के साथ हर छ: माह में अपना झुकाव बदल लेता हैं.
सत्यम शिवम सुन्दम........ शिव मेरी पूजा....... गाना लगाया जा सकता हैं.........ये हैं अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच बसे सामोद कस्बे के पास महार कलां गांव...... इस गांव में स्थित एक ऐसा शिवलिंग हैं जो सूर्य की गति के अनुसार हर छ: माह में अपना झुकाव बदल लेता हैं. इस शिवलिंग को मालेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता हैं. यह शिवलिंग हर छह माह में सूर्य की गति के अनुसार सूर्य की दिशा में झुक जाता है.
इस तरह का ये देश में यह अनूठा शिव मंदिर है.प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान अपने आप में काफी मनोरम है. जहां बारिश में बहते प्राकृतिक झरने, कभी पानी खत्म नहीं होने वाले कुण्ड, आसपास पौराणिक मानव सभ्यता-संस्कृति की अतीत बताते प्राचीन खण्डर इस स्थान की प्राचीनता को दर्शाते हैं.महार गांव में स्थित मालेश्वर धाम जयपुर से लगभग चालीस किमी दूर है.
जयपुर-अजीतगढ़ रोड पर बसे इस गांव के बस स्टैण्ड से मंदिर तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर पक्की सड़क बनी हुई है. इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग सूर्य की दिशा के अनुरूप चलने लिए विख्यात है.अर्थात सूर्य हर वर्ष छह माह में उत्तरायण और दक्षिणायन दिशा की ओर अग्रसर होता रहता है. उसी तरह यह शिवलिंग भी सूर्य की दिशा में झुक जाता है.
मंदिर के पुजारी महेश व्यास बताते हैं कि वर्तमान में महार कलां गांव पौराणिक काल में महाबली राजा सहस्रबाहु की माहिशमति नगरी हुआ करती थी. इसी कारण इस मंदिर का नाम मालेश्वर महादेव मंदिर पड़ा.एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1101 काल के इस मंदिर में स्वयंभूलिंग विराजमान है.जिनकी यंहा पूजा अर्चना की जाती हैं.
इस मंदिर की सेवा पूजा पीढ़ी दर पीढ़ी व्यास परिवार करता आ रहा है. व्यास के अनुसार मुगल काल में इस मंदिर को औरंगजेब भी नष्ट करने की चेष्टा की थी लेकिन मधुमखिययों की हमले के कारण सेना को उल्टे पांव भागना पडा.हालाकिं शिवलिंग को नही तोड पायें कहा जाता हैं कि इसी मंदिर विष्णु भगवान की मूर्ति को तोड दिया था.
उस जमाने में तोड़ी गई शेषशैया पर लक्ष्मी जी के साथ विराजमान भगवान विष्णु की खण्डित मूर्ति आज भी मौजूद है.कालांतर में मंदिर का जीर्णोद्धार कर इस पर गुंबद व शिखर का निर्माण करवाया गया.वहीं अंदरी भाग कोकलात्मक कांचकारी से भी सज्जित किया गया. इस मंदिर के आसपास चार प्राकृतिक कुण्ड भी हैं, जिनमें पानी कभी खाली नहीं होते हैं.
ये कुण्ड मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों, जलाभिषेक और सवामणी आदि करने वालों के लिए प्रमुख जलस्रोत हैं. इनमें दो कुण्डों में पानी निकालने के लिए मोटर पम्प भी लगा रखे हैं. बावजूद इसके ये कुण्ड कभी खाली नहीं होते हैं. ज्योतिषाचार्य विकास शास्त्री बताते हैं महाशिव पर्व पर चार पहर की पूजा का विशेष महत्त्व है...
यहा पूजा पाठ करवाने वाले पंडित बताते हैं कि इस मंदिर में कालसर्प दोष और पितृ दोष के लिए जब विशेष पूजा अर्चना करवाई जाती हैं जिससे दोषमुक्ति हो जाती हैं. इस शिव लिंग की महिमा का वर्णन शिव पुराण में माहशमति के नाम से हैं.इस शिव लिंग सबसे खास बात यह हैं कि जिस जलहरी पर शिवलिंग हैं वहां का पानी कभी कम नही होता है. पहाड़ियों के घिरे इस धार्मिक स्थल पर प्रकृति भी खूब मेहरबान है. थोड़ी बारिश में ही मंदिर के आसपास प्राकृतिक झरने बहने लगते हैं. तब यहां की प्राकृतिक छटा और भी मनमोहक हो सुखद अहसास कराती है.
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