Jaisalmer News: कैंसर को हराकर बनी ‘पुलिस साहिबा’, सुनीता चौधरी की अनोखी जंग
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Jaisalmer News: कैंसर को हराकर बनी ‘पुलिस साहिबा’, सुनीता चौधरी की अनोखी जंग

Jaisalmer News: थार की बेटी सुनीता चौधरी ने कैंसर को हराकर जिंदगी की जंग जीत ली. बाल विवाह, संघर्ष और कठिनाइयों के बावजूद वह राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल बनीं. कीमोथेरेपी के दर्द को पीछे छोड़, संगीत और हौसले से नई राह बनाई. अब वह सामाजिक कार्यों में जुटकर मिसाल पेश कर रही हैं.

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Rajasthan News: कैंसर, एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही लोगों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है, लेकिन अगर जीने की इच्छा प्रबल हो और हौसले बुलंद हों, तो इस गंभीर बीमारी को भी मात दी जा सकती है. ऐसी ही मिसाल पेश की है बाड़मेर की बेटी सुनीता चौधरी ने, जिन्होंने कैंसर से जिंदगी की जंग जीतकर न केवल खुद को मजबूत बनाया बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा बन गईं. वर्तमान में सुनीता जैसलमेर पुलिस लाइन में कांस्टेबल के रूप में सेवाएं दे रही हैं और आमजन की सेवा कर रही हैं.

बचपन से ही कठिनाइयों का सामना
सुनीता का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. जब उनकी शादी हुई तब वह केवल तीन साल की थीं. यह बाल विवाह उस दौर में एक आम प्रथा थी. 18 साल की उम्र के बाद उन्हें ससुराल भेज दिया गया. सुनीता बताती हैं कि वह कक्षा 5 तक गांव की स्कूल में पढ़ीं, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें रोज़ 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. जब वह स्कूल जातीं, तो पड़ोसी ताने मारते, "इतना पढ़कर क्या करोगी, आखिरकार ससुराल ही जाना है."

परिवार और समाज की नकारात्मक सोच को दरकिनार करते हुए उन्होंने पढ़ाई जारी रखी. 10वीं पास करने के बाद वह बाड़मेर आईं और नर्सिंग की पढ़ाई की. इसी दौरान, जब पुलिस कांस्टेबल की भर्ती निकली, तो उन्होंने आवेदन किया और अपनी मेहनत से परीक्षा पास कर ली. वह अपने हॉस्टल की अकेली लड़की थीं, जिन्होंने इस परीक्षा को पास किया था.

गाँव की पहली महिला कांस्टेबल बनीं
9 महीने की कठिन ट्रेनिंग के बाद सुनीता अपने गांव की पहली महिला कांस्टेबल बनीं. जब वह 19 साल की उम्र में पहली बार वर्दी पहनकर गांव पहुंचीं, तो लोग उन्हें "पुलिस साहिबा" कहकर संबोधित करने लगे. सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन फिर उनके जीवन में ऐसा मोड़ आया जिसने उन्हें हिला कर रख दिया.

कैंसर से संघर्ष
वर्ष 2013 में सुनीता को पेट में तेज दर्द हुआ. जब वह जोधपुर में डॉक्टरों को दिखाने गईं, तो उन्हें बताया गया कि वह स्टेज-2 ओवेरियन (डिम्बग्रंथि) कैंसर से पीड़ित हैं. यह सुनकर उनका मनोबल टूट गया. अगले 6 महीने उनके जीवन के सबसे कठिन थे.

कीमोथेरेपी के कारण उनके सारे बाल झड़ गए, उनका वजन घटकर 35 किलो रह गया. परिवार ने उनके इलाज पर 4 लाख रुपये खर्च किए. लोग उन्हें "गंजी" कहकर चिढ़ाने लगे. इस तानों ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया और वह चार दीवारों के भीतर सिमट गईं.

संगीत बना संजीवनी
इस कठिन समय में उनके गुरु रजनीकांत शर्मा ने उन्हें हारमोनियम बजाना सिखाया. संगीत ने उनके जीवन में एक नई ऊर्जा भर दी. इससे उन्हें न केवल मानसिक शांति मिली, बल्कि उनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई. वह अब विभिन्न सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में भी संगीत के माध्यम से योगदान दे रही हैं.

परिवार और विभाग का सहयोग
सुनीता के बड़े भाई विशनाराम, जो कि एयरफोर्स में कार्यरत हैं, ने उनके इलाज में पूरा सहयोग किया. पुलिस विभाग ने भी उनका साथ दिया. तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक हेमंत शर्मा और डॉ. किरण कंग ने उनके इलाज और हौसला बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

पति ने दिया साथ
जब सुनीता ने अपने पति से कहा कि इस बीमारी के कारण वह माँ नहीं बन सकतीं, तो उनके पति ने कहा, "मैं आपके साथ रहना चाहता हूं, कोई बात नहीं." इस समर्थन ने सुनीता को और अधिक मजबूत बनाया.

सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका
कैंसर को हराने के बाद, सुनीता ने समाज सेवा को अपना उद्देश्य बना लिया. पुलिस ड्यूटी के बाद, वह बच्चों को 'गुड टच' और 'बैड टच' के बारे में जागरूक करती हैं. उन्होंने पिछले तीन वर्षों में 1000 से अधिक बच्चों को शिक्षित किया है. इसके अलावा, वह पौधारोपण, वाहन सुरक्षा जागरूकता और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों में भी सक्रिय रूप से भाग लेती हैं.

राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सम्मान
उनके कार्यों की सराहना विभिन्न स्तरों पर की गई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी हिम्मत की सराहना की. मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और पूर्व पुलिस डीजीपी भूपेंद्र सिंह यादव ने भी उनके प्रयासों को सम्मानित किया. इसके अलावा, उन्हें 2021 में जैसलमेर जिला मुख्यालय और 2023 में राज्य स्तर पर 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' पर सम्मानित किया गया.

शिक्षा और प्रेरणा का प्रतीक
सुनीता को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राजस्थान पुलिस कमिश्नर द्वारा सम्मानित किया गया. उन्हें राज्य सरकार की ओर से 'गार्गी पुरस्कार' भी मिला. कैंसर से जंग जीतने पर जोधपुर की कैवल्य संस्थान ने उन्हें 'नारी शक्ति पुरस्कार' से नवाजा. जिला प्रशासन जैसलमेर और बाड़मेर पुलिस सहित कई संस्थाओं ने उनके बुलंद हौसले को सराहा.

आगे की राह
आज, सुनीता न केवल महिला सशक्तिकरण का प्रतीक हैं, बल्कि उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कोई भी कठिनाई इच्छाशक्ति और संघर्ष से जीती जा सकती है. वह अपने संघर्ष की कहानी से दूसरी महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं.

सुनीता की जुबानी
"परिवार, दोस्तों और बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैंने कैंसर को हराया है. संगीत मेरे लिए संजीवनी बना. अब मेरा लक्ष्य है कि मैं समाज में और अधिक योगदान दूं और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करूं."

गुरु की राय
"संगीत की शक्ति से जीवन में बदलाव आता है. सीखने की जिज्ञासा ने सुनीता को इस बीमारी से उबरने में मदद की. वह अन्य महिलाओं के लिए आदर्श हैं." - रजनीकांत शर्मा, संगीतज्ञ

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