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Chaitra Navratri : अरावली की वादियों में बना प्रसिद्ध प्राचीन शक्तिपीठ सीकर की जीण माता जी का मंदिर देशभर में अपनी शक्ति, भक्ति, आस्था और चमत्कार के चलते विख्यात है. जीण माता जी का प्रसिद्ध मंदिर जीण और हर्ष नाम के भाई-बहन के अटूट रिश्ते के रूप में भी जाना जाता है. मां जीण माता के दरबार में शीश नवाने और मनोकामना मांगने लाखो श्रद्धालुओं देशभर से सालभर आते रहते है. नवरात्रा में नो दिवसीय मेले में लाखो भक्त माता रानी केंदरबार में धोक लगाकर मनौतियां मांगने आएंगे.
जीण माता मंदिर की एसी मान्यता है कि मां जीण भवानी के दर्शन मात्र से ही अनेकों रोग ठीक हो जाते हैं तो वही पहाड़ी के ऊपर बने मां जीण के तपस्या स्थल काजल शिखर पर अखंड ज्योत धूणी से आंखों में काजल लगाने से दृष्टि रोग खत्म हो जाता है. प्राचीन जीण माता मंदिर में चैत्र शुक्ल के नवरात्रों और शारदीय नवरात्रों में 9 दिवसीय जीण माता का लक्खी मेला भरता है. मेले के देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु मां जीण भवानी का ध्वजा लेकर जीण माता के धाम पहुंचते हैं. जीण माता जी के पशु बलि व शराब चढ़ाने पर पूरी तरह से रोक है. इस पौराणिक मान्यता के अलावा इतिहास में एक मां जीण भवानी की कहानी काफी प्रसिद्ध है.
जिसमें मुगल बादशाह ओरंगजेब की सेना को जीण माता की महिमा के सामने मुंह की खानी पड़ी थी. कहा जाता है कि जब मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना ने शेखावाटी के मंदिरों को तोड़ना शुरू किया तो जब जीण माता जी मंदिर की और औरंगजेब की सेना बढ़ने लगी तो मां जीण भवानी के भक्तों ने मां जीण से बचाने की गुहार लगाई. जिस पर माता जीण ने अपने चमत्कार से औरंगजेब की सेना पर भंवरे (मधुमक्खियां) छोड़ दी. मां जीण के चमत्कार के कारण मधुमक्खियां के झुंड ने औरंगजेब की सेना पर हमला कर दिया. मधुमक्खियां के हमले से औरंगजेब की सेना के युद्ध के मैदान से पांव उखड़ गए और सैनिक अपनी जान बचाने के लिए वापस भाग खड़े हुए.
यह दृश्य देखकर लाव लश्कर के साथ आए मुगल शासक औरंगजेब को भी मां जीण भवानी के चमत्कार और शक्ति को देखकर नतमस्तक होना पड़ा. औरंगजेब ने मां जीण से क्षमा याचना मांगी और मां जीण भवानी के दरबार में चांदी का छत्र चढ़ने के साथ ही मंदिर में जलने वाली अखंड ज्योत के लिए दिल्ली दरबार से सवा मन तेल भेजने का वादा भी किया. इसके साथ ही औरंगजेब की सेना के आगे चल रहे ढोल नगाड़े भी जीण माता जी के मंदिर में छोड़े गए, जो आज भी मंदिर में रखे हुए है. औरंगजेब की सेवा पर मधुमक्खियों (भंवरों) के हमले के बाद से ही जीण माता जी को भंवरों की देवी भी कहा जाता है.
भाई बहन के अटूट रिश्ते के रूप में पहचान
प्राचीन मान्यता के अनुसार एक जीण नाम की कन्या का जन्म चुरू जिले के घांघू गांव के चौहान राजघराने में हुआ था. पारिवारिक कलह के कारण जीण नाम की कन्या नाराज होकर सीकर जिले के नजदीक अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों पर आकर बैठ गई. अपनी बहन से स्नेह और प्रेम के कारण जीण को मनाने के लिए उसका बड़ा भाई हर्ष भी पीछे-पीछे आ गया. लेकिन जीण ने वापस लौटने से इनकार कर दिया और पहाड़ी पर ही तपस्या शुरू कर दी. इस पर भाई हर्ष ने बिना बहन के वापस गांव लौटने से मना कर दिया और जीण का बड़ा भाई हर्ष भी पास की ही पहाड़ियों पर बैठकर तपस्या में लीन हो गया. जब से मां जीण को शक्ति का अवतार माना जाता है और उनके बड़े भाई हर्ष को भगवान शिव का अवतार माना जाता है. मां जीण का प्राचीन मंदिर जीण माता कस्बे गांव में स्थित है जबकि उनके बड़े भाई हर्ष का मंदिर जीण माता मंदिर से 17 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित हर्षनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है.
मां जीण दरबार में औरंगजेब ने भी टेके थे घुटने
मां जीण भवानी की शक्ति, चमत्कार और महिमा के आगे मुगल बादशाह औरंगजेब ने भी अपने घुटने टेक दिए थे. पौराणिक कथा के अनुसार जब दिल्ली का मुगल बादशाह औरंगजेब मंदिरों को तोड़ते हुए शेखावाटी के मंदिरों की ओर बढ़ा तो मां जीण भवानी के भक्तों ने माता जीण से बचाने की गुहार लगाई. जिस पर माता जीण ने अपनी शक्ति से भौरों (मधुमक्खियां) के झुंड को औरंगजेब की सेना पर छोड़ दिए. कहा जाता है कि तोप-गोलों का तो मुकाबला किया जा सकता है, लेकिन मधुमक्खियों (भंवरों) के हमले का मुकाबला नहीं हो सकता.
इसलिए मुगल बादशाह की सेना मधुमक्खियां के हमले से घायल होकर वापस भाग खड़ी हुई. यह सब देखकर मुगल बादशाह औरंगजेब भी हक्का-बक्का रह गया और मां जीण की शक्ति और चमत्कार के चलते नतमस्तक होकर जीण माता के दरबार में घुटने टेक कर क्षमा याचना मांगी. औरंगजेब ने मां जीण भवानी से क्षमा मांगते हुए मां जीण के मंदिर में चांदी का छत्र व दिल्ली दरबार से अखंड ज्योत के लिए तेल भेजने का वादा किया. औरंगजेब का चढ़ाया हुआ छत्र आज भी प्राचीन जीण माता मंदिर में मां की प्रतिमा के ऊपर लगा हुआ है, तो वही अखंड ज्योत के लिए पहले दिल्ली दरबार से तेल भेजा जाता था.
उसके बाद सरकार की ओर से तेल भेजने का सिलसिला शुरू हुआ और आज देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु जीण माता मंदिर में तेल चढ़ाते है. इसके साथ ही कहा जाता है कि औरंगजेब ने चांदी का छत्र व तेल भेजने का वादा करने के साथ ही सेना के आगे चलने वाले ढोल नगाड़े भी मंदिर में ही छोड़ दिए थे, जो आज भी जीण माता मंदिर में आने वाले श्रद्धालु माताजी के दर्शन करने के बाद बजाते हैं.
नवरात्र में नो दिवसीय मेले में लाखो भक्त आएंगे और मनोटियां मांगेगे. मेले के चलते तमाम इंतजाम किए गए है. सुरक्षा के नजरिए से पुलिस बल तैनात किया गया है मेला पूरा सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रहेगा. भक्तो के लिए मंदिर कमेटी और प्रशासन ने पूरे इंतजाम किए है पूरे नो दिनों तक जीण माता में भक्ति और आस्था का ज्वार उमड़ेगा और भक्त श्रद्धा और भक्ति में सराबोर होंगे.