Udaipur News: मेवाड़ के आदिवासी तैयार कर रहे हर्बल गुलाल तैयार, देशभर में बिखेरेगा अपने रंग
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Udaipur News: मेवाड़ के आदिवासी तैयार कर रहे हर्बल गुलाल तैयार, देशभर में बिखेरेगा अपने रंग

Udaipur News: मेवाड़ के आदिवासी अंचल में बनने वाली हर्बल गुलाल होली के त्यौहार पर एक बार फिर देशभर में अपने रंग बिखेरने के लिए तैयार है. वन विभाग की ओर से रंगो के त्यौहार को रंगत देने के लिए तैयारिया जोरो से की जा रही है.

Udaipur News: मेवाड़ के आदिवासी तैयार कर रहे हर्बल गुलाल तैयार, देशभर में बिखेरेगा अपने रंग

Udaipur News: मेवाड़ के आदिवासी अंचल में बनने वाली हर्बल गुलाल होली के त्यौहार पर एक बार फिर देशभर में अपने रंग बिखेरने के लिए तैयार है. वन विभाग की ओर से रंगो के त्यौहार को रंगत देने के लिए तैयारिया जोरो से की जा रही है. वन विभाग की समितियों से जुड़े आदिवासी अंचल के ग्रामीण हर्बल गुलाल को तैयार करने में जुटे हुए है. बाईट कुछ वर्षों से हर्बल गुलाल की डिमांड़ राजस्थान के बाहर भी बढ़ने लगी है.

मेवाड़ के आदिवासी समुदाय का गौरव और परंपरा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है. लेकिन अब यहां बनने वाली हर्बल गुलाल देशभर के लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. दरअसल उदयपुर के वन विभाग की सुरक्षा समितिया होली के मौके पर लोगों लिए हर्बल गुलाल बनाने का काम कर रही है. समितियों से जुड़ी आदिवासी अंचल की महिलाये प्राकर्तिक संसाधनों से समितियों से हर्बल गुलाल तैयार कर रही है.

यही नहीं वनवासी इलाकों में तैयार की जा रही. इस इको फ्रेंडली हर्बल गुलाल में कुछ भी आर्टिफिशियल नहीं होता. अरोहर के आटे और कुदरती फूलो से बनाये जाने वाली इस हर्बल गुलाल में केमिकल नहीं होता, इसलिए ये शरीर और कपड़ों को नुकसान नहीं पहुंचाती. इस गुलाल की सबसे बड़ी खासियत इसकी भिन्नी महक होती है, जिससे की हर व्यक्ति इसे उपयोग में लेने के लिए आकर्षित होता है. वन विभाग के प्रयास से यहां के लोग न सिर्फ रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. बल्कि अपनी मिट्टी में उत्पन्न हो रहे विभिन्न फूलों की खुशबू गुलाल के मार्फत पूरे देश में पहुंचाते हैं.

हर्बल गुलाल तैयार करने के लिए आदिवासी परिवार में लोग जंगलो में जाकर गुलाब के फुल, कचनार के फुल, ढाक के फूलो, पलाश के फूल, अमलताश के फूल और वनस्पति को जमा करते है. इसके पश्चात इन सभी को देशी चूल्हों पर अलग-अलग उबालकर इनके अन्दर से रंग और रस निकाला जाता है.  इस प्रक्रिया के बाद अरारोट के आटे में अलग-अलग रंगों का रस डालकर प्राक्रतिक गुलाल की शक्ल दी जाती है.

वन क्षेत्र के रहने वाले आदिवासी परिवार के लोगो को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से वन विभाग ने इस मुहीम को शुरू किया था. विभाग ने इसे वृहद स्तर पर प्रमोट किया, जिसके कारण बीते एक दशक से हर्बल गुलाल की डिमांड साल दर साल बढ़ती जा रही है और आदिवासी समुदाय के लोगो के लिए क्षेत्र में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध हो पा रहे हैं.

 

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