छांगुर बाबा को महंगी पड़ी जिगरी दोस्‍त से दुश्‍मनी, धर्मांतरण से करोड़ों की संपत्ति तक, कैसे मिट्टी में मिल गया काला साम्राज्‍य
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छांगुर बाबा को महंगी पड़ी जिगरी दोस्‍त से दुश्‍मनी, धर्मांतरण से करोड़ों की संपत्ति तक, कैसे मिट्टी में मिल गया काला साम्राज्‍य

Changur Baba:  छांगुर बाबा की प्रशासन में अच्छी पकड़ थी. अफसरों को नग देने और धार्मिक आस्था के नाम पर अपनी छवि मजबूत बनाने में उसने वर्षों लगाए. यही वजह रही कि जब तक अफसरों को ऊपर से दबाव नहीं मिला, तब तक किसी ने उसपर हाथ नहीं लगाया. 

Changur Baba
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Changur Baba: धर्मांतरण के मास्टरमाइंड जलालुद्दीन शाह उर्फ छांगुर बाबा की काली करतूतें सामने आने लगी हैं. यूपी एसटीएफ और एटीएस छांगुर बाबा को लेकर नए-नए राज खोल रही है. छांगुर बाबा की हकीकत उसके बेहद करीबी दोस्त ने ही खोल दी है. बलरामपुर में वर्षों से प्रभाव जमाए बैठा छांगुर बाबा पर किसी की जरूरत नहीं थी कि उसपर हाथ उठा दे. शिकायतों के बावजूद कोई एक्‍शन नहीं होता था. लेकिन जब उसका जिगरी दोस्त वसीउद्दीन खान उर्फ बब्बू चौधरी ही दुश्मन बन गया, तब जाकर उसके काले कारनामों से पर्दा उठ गया. आइये जानते हैं छांगुर बाबा के काला साम्राज्‍य का कैसे अंत हो गया?. 

अफसरों में नग बेचकर बनाई पैंठ 
बताया जाता है कि छांगुर बाबा की प्रशासन में अच्छी पकड़ थी. अधिकारियों को नग देने और धार्मिक आस्था के नाम पर अपनी छवि मजबूत बनाने में उसने वर्षों लगाए. यही वजह रही कि जब तक अफसरों को ऊपर से दबाव नहीं मिला, तब तक उसकी करतूतें अनदेखी की जाती रहीं. हालात तब बदले जब बब्बू चौधरी उसकी अवैध गतिविधियों के दस्तावेज लेकर सीधे पीएमओ पहुंच गया. पीएमओ से संज्ञान मिलते ही प्रदेश की एटीएस और एसटीएफ हरकत में आ गई और फिर छांगुर बाबा का अवैध धर्मांतरण नेटवर्क सामने आने लगा. 

पत्‍नी बनी प्रधान तो बदल गया पूरा जीवन 
छांगुर बाबा का जन्म बलरामपुर के गरीबपुर गांव में हुआ था. पिता करीमुल्ला की मृत्यु के बाद मां बच्चों को लेकर मायके रेहरामाफी लौट आई, वहीं छांगुर का जीवन बीता. वह शुरू में गांव-गांव घूमकर कपड़े और नग बेचता था. कभी-कभी मुंबई की हाजी अली दरगाह के पास भी यही काम करता. 2011 में उसकी पत्नी कुतबुनिशा ने ग्राम पंचायत चुनाव लड़ा और जीत गई. इसके बाद से ही छांगुर का जीवन पूरी तरह बदल गया. 

मुंबई की दंपति ने गुमराह किया 
प्रधान बनने के बाद भी छांगुर ने नग बेचने का काम जारी रखा. उसके दिए नगों को भाग्यशाली मानने वाले अधिकारियों और व्यापारियों की संख्या बढ़ती गई. इसी दौरान मुंबई के एक दंपति नवीन रोहरा और नीतू रोहरा (जो बाद में नसरीन बनीं) भी उसकी शरण में आ गए. उन्होंने दावा किया कि छांगुर के नगों से उनके जीवन में बदलाव आया और वे उसके सबसे करीबी हो गए. 

बलरामपुर में ऐसे हुई नीतू की एंट्री 
छांगुर की सलाह पर नवीन और नीतू ने बलरामपुर के मधेपुर में तीन बीघा जमीन खरीदी, जो प्रसिद्ध चांद मियां की मजार के पास स्थित थी. यह जमीन नीतू के नाम पर ली गई. छांगुर की नजर इस मजार पर भी थी और वह वहां निर्माण कार्य में चंदा देता था ताकि प्रभाव बना सके. यहां एक कोठी और एक डिग्री कॉलेज का निर्माण किया जाना था. इसके लिए 12 करोड़ रुपये का ठेका वसीउद्दीन खान उर्फ बब्बू चौधरी को मिला. 

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