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कैसी थी आजादी की पहली सुबह? टोलियों में निकले लोग, लखनऊ से बलिया तक गूंजा 'वंदे भारत', जालौन की सुबह खून से रंगी

First Independence Day of UP: 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो उत्तर प्रदेश का नाम संयुक्त प्रांत था. देश आजाद होते ही अगली सुबह प्रांत के लोग खुशियां मनाने निकल पड़े थे. यूं तो पूरा देश खुशियां मना रहा था लेकिन लखनऊ, प्रयागराज और आगरा जैसे शहर जो उस दौर में भी बड़े प्रशासनिक केंद्र थे वहां क्या-क्या हुआ आइये जानते हैं. 

लखनऊ – प्रभात फेरियों और शेर-ओ-शायरी में डूबा शहर

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लखनऊ – प्रभात फेरियों और शेर-ओ-शायरी में डूबा शहर

संयुक्त प्रांत की राजधानी लखनऊ में 14 अगस्त की रात से ही लोग सड़कों पर उतर आए थे. मोहल्लों में टोलियां निकल रही थीं और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े स्थलों पर भीड़ उमड़ पड़ी थी. चिनहट के गांधी स्वास्थ्य केंद्र और चारबाग स्टेशन के पास भारी जनसमूह इकट्ठा हुआ. हजरतगंज चौराहे पर मशहूर शायर मजाज लखनवी और अली सरदार जाफरी ने जोशीले शेर पढ़े, तो अमीनाबाद और झंडे वाले पार्क में भारत माता की जय के नारे गूंज उठे.

इलाहाबाद – सरकारी इमारतों पर फहराया तिरंगा

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इलाहाबाद – सरकारी इमारतों पर फहराया तिरंगा

इलाहाबाद, जो कभी अंग्रेजी शासन का प्रशासनिक केंद्र रहा था, वहां हाईकोर्ट और एडिशनल जनरल ऑफिस जैसी इमारतों पर हजारों लोग तिरंगा फहराने के साक्षी बने. सरकारी भवनों पर यूनियन जैक उतारकर राष्ट्रीय ध्वज लहराया गया और जनता ने खुलकर उत्सव मनाया.

बनारस – शिव की नगरी में गूंजा स्वतंत्रता का उत्साह

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बनारस – शिव की नगरी में गूंजा स्वतंत्रता का उत्साह

‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ के वर्णन के अनुसार, बनारस में भोर होते ही हजारों लोग गंगा जल और बेलपत्र लेकर मंदिरों की ओर चल पड़े. हर घाट, हर गली और हर शिवलिंग पर जलाभिषेक हुआ. यह दृश्य मानो देश के पुनर्जन्म का धार्मिक आभार प्रदर्शन था.

गोरखपुर – चौरी-चौरा की धरती पर तिरंगा

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गोरखपुर – चौरी-चौरा की धरती पर तिरंगा

1922 का ऐतिहासिक चौरी-चौरा थाना, जिसे आंदोलनकारियों ने जलाया था, वहां 15 अगस्त को किसानों ने तिरंगा फहराया. करीब 40 गांवों से लोग यहां पहुंचे. पोस्ट ऑफिस, रेलवे स्टेशन और क्रांतिकारी स्थलों पर भी ध्वजारोहण हुआ. गोरखपुर से चौरी-चौरा तक मेले जैसा माहौल था. 

बलिया – 1942 की क्रांति के नायकों को नमन

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बलिया – 1942 की क्रांति के नायकों को नमन

1942 में दो सप्ताह तक खुद को आजाद घोषित करने वाला बलिया, 15 अगस्त 1947 को फिर से स्वतंत्रता के रंग में रंग गया. शहर और गांवों से निकले जुलूस शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए तिरंगा लहरा रहे थे.

जालौन – जहां आजादी की सुबह खून से रंगी

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जालौन – जहां आजादी की सुबह खून से रंगी

जब पूरा देश जश्न मना रहा था, जालौन हैदराबाद के निजाम के शासन में था. क्रांतिकारियों ने निजाम के आदेश की अवहेलना कर तिरंगा यात्रा निकाली. इस पर गोलियां चलीं, जिसमें 11 लोग शहीद और 26 घायल हुए. इस घटना को ‘दूसरा जलियांवाला बाग’ कहा गया.

आगरा – किले पर तिरंगा और रामलीला मैदान में जनसैलाब

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आगरा – किले पर तिरंगा और रामलीला मैदान में जनसैलाब

आगरा में सुबह से ही रामलीला मैदान खचाखच भर गया. जैसे ही आगरा किले पर से अंग्रेजी झंडा उतारकर तिरंगा फहराया गया, भारत माता की जय और वंदे मातरम से पूरा इलाका गूंज उठा.

विभाजन का दर्द, लेकिन जश्न में कमी नहीं

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विभाजन का दर्द, लेकिन जश्न में कमी नहीं

विभाजन के समय उत्तर प्रदेश में बड़ी मुस्लिम आबादी थी. संपन्न वर्ग के कुछ लोग पाकिस्तान चले गए, लेकिन अधिकांश यहीं रहे और आजादी का स्वागत किया. गम और खुशी के इस संगम में भी पूरा प्रांत स्वतंत्रता के रंग में डूबा रहा.

स्वतंत्रता दिवस एक तारीख नहीं जीवंत स्मृति

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स्वतंत्रता दिवस एक तारीख नहीं जीवंत स्मृति

15 अगस्त 1947 का दिन उत्तर प्रदेश के इतिहास में सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक जीवंत स्मृति है—जब हर गली, हर चौक और हर दिल से एक ही आवाज उठी थी, "जय भारत  माता की".

Disclaimer

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Disclaimer

लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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