ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, कन्नौज के एक शासक ने इस नगर की स्थापना कर इसका नाम ‘यवनपुर’ रखा था. यह नाम संभवतः तुर्क या मुस्लिम प्रभावों के कारण पड़ा, जो उस समय के राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है. वर्ष 1359 ई. में जब फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली की गद्दी संभाली, तब उसने अपने पुत्र ‘जौना खां’ के सम्मान में इस नगर का नाम बदलकर ‘जौनपुर’ रखा और इसकी पुनर्स्थापना कर एक सुदृढ़ प्रशासनिक इकाई के रूप में विकसित किया.
जौनपुर का वास्तविक सांस्कृतिक और स्थापत्य विकास शर्की वंश के शासनकाल में हुआ. वर्ष 1393 ई. में फिरोजशाह तुगलक के अमीर मलिक सरवर को ‘मलिक उसशर्क’ की उपाधि देकर जौनपुर का शासक बनाया गया. यही वह क्षण था जब शर्की सल्तनत की नींव पड़ी और जौनपुर को राजधानी बनाया गया. इस दौरान नगर में शिक्षा, वास्तुकला, संगीत और साहित्य के क्षेत्र में जबरदस्त उन्नति हुई. अटाला मस्जिद, जामा मस्जिद, और लाल दरवाजा मस्जिद जैसी भव्य इमारतें शर्की शासन की स्थापत्य उपलब्धियों की मिसाल हैं.
मुगल काल में भी जौनपुर की ख्याति कम नहीं हुई. कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां जब यहां पहुंचे, तो इस नगर की सांस्कृतिक और बौद्धिक समृद्धि से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने इसे ‘सिराज-ए-हिंद’ यानी ‘भारत का दीपक’ की उपाधि दी. इससे पहले हुमायूं ने भी यहां के धार्मिक और शैक्षणिक माहौल को बढ़ावा देने के लिए मठों और मदरसों की स्थापना को प्रोत्साहित किया था. परिणामस्वरूप यह क्षेत्र विद्वानों, सूफियों और संतों का प्रमुख केंद्र बन गया.
इतिहासकारों के अनुसार जौनपुर का संबंध वेदकालीन ऋषि-मुनियों से भी रहा है. इसे प्राचीन काल में ‘जमदग्निपुरम’ कहा जाता था, जो महर्षि जमदग्नि के नाम से जुड़ा हुआ है. इसके अलावा बौद्ध धर्म और जैन प्रभाव के भी ऐतिहासिक प्रमाण इस क्षेत्र में मिलते हैं, जो इसे बहुधर्मी सहिष्णुता का प्रतीक बनाते हैं.
1194 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने उदयपाल को पराजित कर दिल्ली सल्तनत का विस्तार किया.1393 से 1479 ई. तक शर्की वंश का शासन रहा.1526 ई. में बाबर ने जौनपुर पर कब्जा कर इसे मुगलों के अधीन कर दिया.अकबर के शासन में यहां शाही पुल का निर्माण हुआ और प्रशासनिक सुधार किए गए.1722 ई. में यह क्षेत्र अवध के नवाबों के अधीन चला गया.फिर कुछ समय के लिए बनारस राज्य में विलय हुआ और बाद में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया.
जौनपुर में शासक केवल तुर्क या मुगल ही नहीं रहे, बल्कि भर, गहरवार, गूजर जैसे स्थानीय राजवंशों ने भी यहां शासन किया और अपनी सांस्कृतिक छाप छोड़ी. यहां हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, बौद्ध और जैन परंपराओं का संगम देखने को मिलता है, जिससे यह नगर भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीवंत उदाहरण बन गया.
यहां बताई गई सारी बातें सामान्य जानकारी, इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.