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Women’s Day Special: कौन थीं देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री, लखनऊ में जन्म और ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई, दान कर दी थी करोड़ों की दौलत

इंटरनेशनल वीमेंस डे पर हम बात करेंगे उस शख्सियत के बारे में, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान दिया और आजाद भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनीं. जानिए कौन थीं वो नारी शक्ति?

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Women’s Day Special: वैसे तो महिलाओं के सम्मान और उनके योगदान की तारीफ तो हर दिन होनी चाहिए, लेकिन 8 मार्च को इंटरनेशनल वीमेंस डे सेलिब्रेट किया जाएगा. ऐसे में आज हम उस शख्सियत का जिक्र करेंगे, जिन्हें नेहरू कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली थी.

देश की पहली कैबिनेट

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देश की पहली कैबिनेट

1947 में जब देश आजाद हुआ तो नेहरू कैबिनेट में 14 मंत्रियों को शामिल किया गया. इस कैबिनेट में कई दिग्गज शामिल थे, जिनमें सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, अबुल कलाम आजाद शामिल थे. पहली कैबिनेट में एक महिला मंत्री भी शामिल थीं. 

कैबिनेट मंत्रियों की संख्या

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कैबिनेट मंत्रियों की संख्या

1952 में लोकसभा चुनाव हुए तो कैबिनेट मंत्रियों की संख्या 21 कर दी गई. इस कैबिनेट में कुछ डिप्टी मिनिस्टर्स भी शामिल थे. खास तौर पर पहली कैबिनेट में नेहरू ने अपने राजनैतिक धुर विरोधियों को भी जगह दी थी.

पहली महिला कैबिनेट मंत्री

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पहली महिला कैबिनेट मंत्री

वो महिला कैबिनेट मंत्री कोई और नहीं कपूरथला के राजा हरनाम सिंह की पुत्री राजकुमारी अमृत कौर थीं. उन्होंने स्वतंत्र भारत की पहली जवाहरलाल नेहरू सरकार में 1957 में स्वास्थ्य मंत्रालय संभाला था. फिर 1964 तक वो राज्यसभा सदस्य भी रहीं.

कहां हुआ था जन्म?

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कहां हुआ था जन्म?

राजकुमारी अमृत कौर हिमाचल के मंडी से सांसद बनी थीं. उनका जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था. उनकी उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हुई. वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद भारत लौटी थीं. 

इकलौती बेटी थीं अमृत कौर

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इकलौती बेटी थीं अमृत कौर

राजकुमारी अमृत कौर के पिता हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें वह अपने सात भाइयों में इकलौती बहन थीं. वह टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं. इस खेल में उन्होंने कई पुरस्कार जीते थे. 

गांधी के विचारों का प्रभाव

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गांधी के विचारों का प्रभाव

अमृत कौर ने राजसी सुख छोड़कर देश के लिए काम करना शुरू किया था. स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. वह महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थीं. 

जलियांवाला बाग कांड

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जलियांवाला बाग कांड

राजकुमारी अमृत कौर जलियांवाला बाग कांड से बहुत ज्यादा आहत हुईं थीं. तभी से उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने का फैसला लिया था. 1934 में अमृतकौर स्थायी रूप से महात्मा गांधी के आश्रम में रहने चली गईं. वह नमक सत्याग्रह के दौरान डांडी मार्च में गांधी जी के साथ थीं.

एकमात्र ईसाई सदस्य

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एकमात्र ईसाई सदस्य

जिस समय अमृतकौर कैबिनेट मंत्री बनी थीं, उस समय तक उनके पिता राजा हरनाम सिंह ने ईसाई धर्म अपना लिया था. ऐसे अमृत कौर केंद्र सरकार में एकमात्र ईसाई सदस्य थीं. 1950 में उन्होंने विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था. 

एम्स दिल्ली की स्थापना

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एम्स दिल्ली की स्थापना

राजकुमारी अमृत कौर ने एम्स दिल्ली की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई थी. अमृत कौर और उनके भाई ने संस्था के कर्मचारियों के हॉलिडे होम के लिए अपनी संपत्ति दान कर दी थी. करीब 14 साल के लिए वह ‘भारतीय रेडक्रास सोसाइटी’ की अध्यक्ष भी रहीं.

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