World's first official airmail: वर्तमान समय में आकाश में तरक्की की इबारत गढ़ रही भारतीय विमान सेवा का इतिहास बड़ा ही रोचक है. इसका सीधा संबंध भारत के सबसे बड़े तीर्थ स्थल माने जाने वाले कुंभ स्थल प्रयागराज से जुड़ा है. इस घटना को लेकर प्रयागराज में ऐतिहासिक उत्सव सा वातावरण था, लाखों लोग जुटे थे. आइए जानते हैं इसके बारे में.
पहले के जमाने में डाकघर एक महत्वपूर्ण संस्था थी, जहां लोग पत्र और पैकेज भेजते थे. लेकिन आज के डिजिटल युग में ईमेल और मोबाइल फोन ने इसकी भूमिका में बदलाव ला दिया है. अब लोग डिजिटल माध्यम से संवाद करते हैं और पैकेज डिलीवरी के लिए ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करते हैं.
क्या आप जानते हैं डाक सेवाओं ने पूरी दुनिया एक लम्बा सफर तय किया है. डाक सेवाओं के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का स्थान प्रमुख है. एक इतिहास यूपी से जुड़ा है. क्या आप जानते हैं एक ऐतिहासिक घटना यूपी के प्रयागराज में हुई थी, जिसका संबंध डाकघर से था. आइए जानते हैं इसके बारे में.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर को यह सौभाग्य प्राप्त है कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा यहीं से आरम्भ हुई. यह ऐतिहासिक घटना 114 साल पहले 18 फरवरी 1911 को संगमनगरी प्रयागराज में हुई. संयोग से उस साल कुंभ का मेला भी लगा था.
उस दिन फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट ने एक नया इतिहास रचा था. वे अपने विमान में प्रयागराज से नैनी के लिए 6500 पत्रों को अपने साथ लेकर उड़े. विमान था हैवीलैंड एयरक्राफ्ट और इसने दुनिया की पहली सरकारी डाक ढोने का एक नया दौर शुरू किया.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रयागराज में उस दिन डाक की उड़ान देखने के लिए लगभग एक लाख लोग इकट्ठे हुए थे. वह ऐसा दौर था जब जहाज देखना तो दूर लोगों ने उसके बारे में ठीक से सुना भी बहुत कम था. ऐसे में इस ऐतिहासिक मौके पर अपार भीड होना स्वाभाविक ही था.
इस यात्रा में हेनरी ने इतिहास तो रचा ही पहली बार आसमान से दुनिया के सबसे बडे प्रयाग कुंभ का दर्शन भी किया. उस समये एक विशेष विमान ने शाम को साढ़े पांच बजे यमुना नदी के किनारों से उड़ान भरी और वह नदी को पार करता हुआ 15 किलोमीटर का सफर तय कर नैनी जंक्शन के नजदीक उतरा.
आयोजन स्थल एक कृषि एवं व्यापार मेला था जो नदी के किनारे लगा था और उसका नाम ‘यूपी एक्जीबिशन’ था. इस प्रदर्शनी में दो उड़ान मशीनों का प्रदर्शन किया गया था. विमान का आयात कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने किया था. इसके कलपुर्जे को आम लोगों की मौजूदगी में प्रदर्शनी स्थल पर जोड़ा गया था. प्रयागराज से नैनी जंक्शन तक का हवाई सफर आज से 114 साल पहले मात्र 13 मिनट में पूरा हुआ था.
यह उड़ान महज छह मील की थी, पर इस घटना को लेकर प्रयागराज में ऐतिहासिक उत्सव सा वातावरण था. ब्रिटिश एवं कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा था.
कर्नल वाई विंधाम ने पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया जिस पर उस समय के डाक प्रमुख ने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी. मेल बैग पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा था.
इस पर एक विमान का भी चित्र प्रकाशित किया गया था. इस पर पारंपरिक काली स्याही की जगह मैजेंटा स्याही का उपयोग किया गया था. हर पत्र के वजन को लेकर भी प्रतिबंध लगाया गया था और सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी.
डाक विभाग ने यहां तीन-चार कर्मचारी भी तैनात किए थे. चंद रोज में हॉस्टल में हवाई सेवा के लिए 3000 पत्र पहुंच गए. एक पत्र में तो 25 रूपये का डाक टिकट लगा था. पत्र भेजने वालों में प्रयागराज की कई नामी गिरामी हस्तियां तो थी हीं, राजा महाराजे और राजकुमार भी शामिल थे.
इस सेवा के लिए पहले से पत्रों के लिए खास व्यवस्था बनाई गई थी इस पहली हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना रखा था और इससे होने वाली आय को आक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हास्टल इलाहाबाद को दान में दिया गया.
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