गोंडा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर पृथ्वीनाथ मंदिर स्थापित है. यहां एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थापित है. जिसका इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है.
शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह 6000 साल पुराना है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों द्वारा बकासुर नाम के राक्षस का वध करके मोक्ष पाने के लिए स्थापित किया गया था.
पांडवों ने इस मंदिर का नाम भीमेश्वर महादेव मंदिर रखा गया था. यहां स्थापित 54 फीट बड़ा शिवलिंग भगवान शिव को समर्पित है.
कहा जाता है कि पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग का 64 फीट हिस्सा जमीन के नीचे है. इसे सात खंडों में विभाजित माना जाता है.
कहा जाता है कि यहीं पर पृथ्वीराज सिंह नाम के एक युवक द्वारा अपने गौशाला निर्माण के लिए ईंट निकलवाई जा रही थी, तभी यहां पर यह विशाल शिवलिंग मिला था.
विशाल शिवलिंग मिलने के बाद मंदिर का निर्माण करवाया गया. इसके बाद यहां पूजा अर्चना शुरू हो गई. सावन और महाशिवरात्रि पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
गोंडा ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल से भी हजारों श्रद्धालु सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि जो भी भगवान भोले का भक्त सच्चे मन से कुछ मांगता है तो उसकी मनोकामना पूरी होती है.
विशाल शिवलिंग की कुल लंबाई 54 फीट है. 7 अरघे हैं. इन्हीं 7 अरघों पर पृथ्वी नाथ मंदिर बनी हुई है, जो पहला अरघा काली कसौटी दुर्लभ पत्थर का बना हुआ दिखाई देता है. इसी अरघे पर लोग जलाभिषेक करते हैं.
साथ ही 6 अरघे अभी भी जमीन के नीचे हैं. अभी ये विशाल शिवलिंग का कुछ हिस्सा नीचे है, जो दिखाई नहीं देती. सिर्फ 5.15 फीट ऊपरी शिवलिंग दिखाई देता है.
इस शिवलिंग की खासियत है कि बिना ऐड़ी उठाए हुए कोई भी व्यक्ति भगवान शिव के शिवलिंग पर सीधे जलाभिषेक नहीं कर सकता है.
सपा सरकार में पूर्व कृषि मंत्री रहे कुंवर आनंद सिंह ने पुरातत्व विभाग को पत्र लिखकर इसकी जांच करवाई थी. तब जाकर ये सच्चाई सामने आई थी. पुरातत्व विभाग ने भी माना कि यह विशाल शिवलिंग काले कसौटी के पत्थर पर बना हुआ है जिससे सोना तराशा जाता है.
यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. zeeupuk इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.