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हॉकी खरीदने के पैसे नहीं थे.. वो ओलंपिक में चमका! ललित उपाध्याय ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को कहा अलविदा

आज शायद ही कोई हो जो ओलंपियन ललित उपाध्याय को न जानता हो, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास की घोषणा की है. आइए जानते हैं, जिसके पास हॉकी खरीदने तक के पैसे नहीं थे, वह कैसे देश का इतना बड़ा हॉकी खिलाड़ी बन गया.

 

संन्यास और भविष्य की योजनाएं

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संन्यास और भविष्य की योजनाएं

23 जून 2025 को ललित ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास की घोषणा की. उन्होंने कहा कि वह अब वाराणसी में ग्रासरूट स्तर पर हॉकी को बढ़ावा देंगे और बच्चों को प्रशिक्षित करेंगे. चोट, पारिवारिक जिम्मेदारी और युवा खिलाड़ियों को मौका देने की भावना ने उन्हें यह निर्णय लेने पर मजबूर किया. अब वह घरेलू मुकाबले खेलते हुए कोचिंग और विकास कार्यों में जुटे रहेंगे.

अर्जुन और लक्ष्मण पुरस्कार से सम्मानित

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अर्जुन और लक्ष्मण पुरस्कार से सम्मानित

ललित उपाध्याय को उनकी शानदार खेल प्रतिभा के लिए 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार ने लक्ष्मण पुरस्कार से नवाजा. इसके बाद, 2021 में भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार देकर सम्मानित किया. यह उनके लंबे संघर्ष और असाधारण योगदान की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान थी, जिसने उन्हें प्रेरणास्त्रोत बना दिया.

ओलंपिक और कॉमनवेल्थ में शानदार प्रदर्शन

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ओलंपिक और कॉमनवेल्थ में शानदार प्रदर्शन

ललित ने टोक्यो ओलंपिक 2020 और पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया और दोनों बार कांस्य पदक जीतने में अहम भूमिका निभाई. साथ ही, बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में भी वह रजत पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे. उन्होंने सेंटर फॉरवर्ड के रूप में शानदार डॉजिंग और क्रिएटिव स्टिक वर्क से दर्शकों का दिल जीता.

बचपन की गरीबी और जुनून से शुरुआत

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बचपन की गरीबी और जुनून से शुरुआत

वाराणसी के एक साधारण परिवार में जन्मे ललित उपाध्याय को बचपन से ही हॉकी खेलने का जुनून था, लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि हॉकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे. बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और भाई अमित के साथ यूपी कॉलेज के मैदान में प्रैक्टिस शुरू की.

कोच परमानंद मिश्रा का योगदान

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कोच परमानंद मिश्रा का योगदान

ललित की प्रतिभा को सबसे पहले पहचानने वाले उनके कोच परमानंद मिश्रा थे. उन्होंने न सिर्फ हॉकी की बारीकियां सिखाईं, बल्कि पासपोर्ट बनवाने से लेकर आर्थिक सहयोग तक हर मोर्चे पर मदद की. परमानंद मिश्रा ने ठान लिया था कि ललित को नेशनल टीम तक पहुंचाना ही है और इसके लिए उन्होंने कई चुनौतियां झेली.

पहली पहचान और शाहबाज सीनियर से तुलना

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पहली पहचान और शाहबाज सीनियर से तुलना

ललित की खेल शैली देखकर साल 2008 में इंडियन हॉकी टीम के कोच जोकिम कारवाल्हो ने उन्हें पाकिस्तान के महान खिलाड़ी शाहबाज सीनियर जैसा करार दिया. यह एक बड़ी उपलब्धि थी जिसने ललित के हौसले को नई उड़ान दी. महज 16 साल की उम्र में ललित ने अंतरराष्ट्रीय कैंप में अपनी जगह बना ली थी, जो अपने आप में बड़ी बात थी.

पिता की नौकरी की उम्मीद और असली सफलता

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पिता की नौकरी की उम्मीद और असली सफलता

ललित के पिता सतीश उपाध्याय उन्हें हॉकी इसलिए खेलने भेजते थे कि शायद स्पोर्ट्स कोटे से कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए, लेकिन किस्मत ने ललित को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया. आज वह उत्तर प्रदेश पुलिस में डीएसपी हैं और ओलंपिक विजेता भी. उनके बड़े भाई अमित भी सरकारी नौकरी में हैं, जिससे पिता का सपना भी पूरा हुआ.

कौन हैं इसकी पत्नी?

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कौन हैं इसकी पत्नी?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,  ललित उपाध्याय की शादी  राष्ट्रीय खिलाड़ी दीक्षा तिवारी  से हुई है. जो  गोरखपुर की रहने वाली हैं.  29 जनवरी 2024 में  दोनों लोग विवाह किए थे.

स्टिंग ऑपरेशन का झटका और वापसी

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स्टिंग ऑपरेशन का झटका और वापसी

2008 में ललित एक स्टिंग ऑपरेशन का शिकार हो गए जिसमें उन्हें एक एजेंट के रूप में पेश किया गया. इस मामले के चलते IHF तक भंग कर दिया गया और ललित की छवि को भी नुकसान पहुंचा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और खुद को फिर से साबित करने के लिए कड़ी मेहनत की, जो उनकी मानसिक मजबूती को दर्शाता है.

एयर इंडिया और बीपीसीएल से जुड़ाव

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एयर इंडिया और बीपीसीएल से जुड़ाव

धनराज पिल्लै की मदद से ललित को एयर इंडिया से पहला अनुबंध मिला. बाद में पूर्व कप्तान तुषार खांडेकर की मदद से बीपीसीएल में नौकरी भी मिली. यहीं से उनके करियर में स्थायित्व आया और उन्हें कलिंगा लांसर्स से जुड़ने का मौका मिला, जिससे उनके प्रोफेशनल खेल जीवन की दिशा और मजबूत हो गई.

 

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