मायानगरी मुंबई में माफियागिरी की शुरुआत करीम लाला ने शुरू की. उत्तर प्रदेश में माफियागिरी की शुरुआत 80 के दशक में पूर्वांचल के सबसे बड़े बाहुबली हरिशंकर तिवारी के हाथों मानी जाती है. माफिया के बीच हरिशंकर तिवारी को बाबा का तमगा मिला.
पूर्वांचल के ब्राह्मणों में हरिशंकर तिवारी बड़ा नाम है. माफिया जगत में वह हर किसी के लिए सम्मानीय रहे. हरिशंकर तिवारी को सिर्फ बाहुबली के रूप में शुमार किया गया, जबकि वह ब्राह्मणों के सरमाएदार भी थे.
हरिशंकर तिवारी गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट से 6 बार विधायक रहे. साल 1997 से 2007 के बीच उत्तर प्रदेश में जिसकी भी सरकार बनी, हर सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रहे.
हर दल के नेताओं से उनके अच्छे संबंध थे. हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से लगातार 22 सालों तक तक विधायक रहे हैं. 1985 से 2007 तक सीट पर बन रहे. हरिशंकर तिवारी ने अपना पहला चुनाव 1985 में निर्दलीय लड़ा.
70 के दशक में जेपी आंदोलन के दौरान पूर्वांचल में एक नाम जो उछला वह था हरिशंकर तिवारी का. गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति के समय हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही के बीच कई खूनी जंग हुई.
एक समय था जब गोरखपुर में गोलियों की तड़तड़ाहट आम हो गई थी. वीरेंद्र प्रताप शाही से अदावत के दौरान हरिशंकर तिवारी को लगा कि माफिया के तौर पर बने रहना है तो राजनीति में कदम रखना होगा.
इसके बाद पहली बार 1985 में चिल्लूपार से चुनाव लड़े. देश की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ कि कोई जेल से चुनाव लड़ा और जीत गया. इसके बाद हरिशंकर तिवारी का डंका राजनीति में भी बजने लगा.
हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटे राजनीति में हैं. हरिशंकर तिवारी का गोरखपुर से सटे संतकबीरनगर की राजनीति में दिलचस्पी थी. इसलिए हरिशंकर तिवारी ने बेटे विनय शंकर तिवारी को चिल्लूपार विधानसभा की विरासत दी.
वहीं, दूसरे बेटे भीष्म शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी को संतकबीरनगर की विरासत सौंपी. भीष्म शंकर तिवारी 2009 में संतकबीर नगर से बसपा से सांसद बने.
वहीं, विनय शंकर तिवारी 2018 से 2022 तक पिता की सीट से विधायक रहे. भतीजा शंकर पांडे महाराजगंज से विधायक रहा. हरिशंकर तिवारी को लेकर कहा जाता है कि श्रीप्रकाश शुक्ला के भी गुरु थे.