Waqf Amendment Bill: करोल बाग, कनॉट प्लेस, जनपथ... दिल्ली के वो VVIP इलाके जहां लोग जमीन खरीदने की सोच नहीं सकते, कांग्रेस ने वक्फ को दे दी थीं 123 संपत्तियां
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Waqf Amendment Bill: करोल बाग, कनॉट प्लेस, जनपथ... दिल्ली के वो VVIP इलाके जहां लोग जमीन खरीदने की सोच नहीं सकते, कांग्रेस ने वक्फ को दे दी थीं 123 संपत्तियां

Waqf Bill:वीएचपी ने तर्क दिया कि यह संपत्तियां सरकार के अधिग्रहण में थीं और उन्हें किसी भी हालत में वक्फ बोर्ड को नहीं दिया जा सकता. एनडीए सरकार ने इस फैसले की गहन जांच शुरू की और दावा किया कि कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए यह फैसला लिया था.

वक्फ बिल से जुड़ी 5 प्रमुख बातें

  • 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूपीए सरकार ने दिल्ली की 123 प्रमुख संपत्तियों को 'डीनोटिफाई' कर वक्फ बोर्ड को सौंप दिया, जिससे राजनीतिक भूचाल आ गया था.

  • तत्कालीन अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने इस फैसले पर आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार ने विशेषज्ञ समिति के समर्थन से इसे लागू कर दिया था.

  • यह फैसला चुनावी आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले लिया गया, जिससे कांग्रेस पर वोट बैंक की राजनीति करने के आरोप लगे थे.

  • बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने इस निर्णय को कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति करार दिया और इसे चुनावी फायदे के लिए उठाया गया कदम बताया था.

  • 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद इस फैसले को लेकर कानूनी और राजनीतिक बहस तेज हो गई, जो अब भी चर्चा में बनी हुई थी.

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Waqf Amendment Bill: करोल बाग, कनॉट प्लेस, जनपथ... दिल्ली के वो VVIP इलाके जहां लोग जमीन खरीदने की सोच नहीं सकते, कांग्रेस ने वक्फ को दे दी थीं 123 संपत्तियां
Waqf Amendment Bill: करोल बाग, कनॉट प्लेस, जनपथ... दिल्ली के वो VVIP इलाके जहां लोग जमीन खरीदने की सोच नहीं सकते, कांग्रेस ने वक्फ को दे दी थीं 123 संपत्तियां

Waqf Bill News: दिल्ली के वीवीआईपी (VVIP) इलाके करोल बाग, कनॉट प्लेस, जनपथ, लोधी रोड और संसद भवन जैसे क्षेत्रों में जमीन खरीदने की बात आम लोगों के लिए एक सपना मात्र है. लेकिन कांग्रेस सरकार ने 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक ऐसा फैसला लिया, जिसने राजनीति में भूचाल ला दिया. मार्च 2014 में यूपीए सरकार ने दिल्ली की 123 प्रमुख संपत्तियों को 'डीनोटिफाई' कर वक्फ बोर्ड को सौंप दिया. यह फैसला उस समय लिया गया जब लोकसभा चुनावों के लिए आचार संहिता लागू होने वाली थी. इस फैसले के पीछे की राजनीति और उसके नतीजों को लेकर अब फिर से बहस तेज हो गई है.

कांग्रेस का बड़ा कदम, वक्फ बोर्ड को संपत्तियां देने का फैसला
यूपीए सरकार के समय मार्च 2014 में शहरी विकास मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट कैबिनेट नोट तैयार किया, जिसमें 1911-1915 के बीच ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिग्रहित की गई 123 संपत्तियों को रद्द कर दिया गया. इनमें से 61 संपत्तियां भूमि एवं विकास विभाग के अधीन थीं, जबकि शेष दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पास थीं. कांग्रेस सरकार ने इन संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर करने का निर्णय लिया, जिससे कई राजनीतिक सवाल खड़े हुए.

इस फैसले पर तत्कालीन अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने आपत्ति जताई थी. उन्होंने कहा था कि इन संपत्तियों को ट्रांसफर करना कानूनी रूप से उचित नहीं है. इसके बावजूद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने विशेषज्ञों की एक समिति बनाई, जिसने इस फैसले को सही ठहराया. इसके बाद सरकार ने इस फैसले को आगे बढ़ा दिया.

कांग्रेस की राजनीति पर उठे सवाल
यह फैसला ऐसे समय लिया गया जब लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने ही वाली थी. इससे सवाल उठने लगे कि क्या कांग्रेस ने चुनावी फायदे के लिए यह निर्णय लिया. क्या यह एक वोट बैंक की राजनीति थी. बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने इस फैसले को कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति का हिस्सा बताया. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और एनडीए सरकार सत्ता में आई. चुनाव के बाद इस फैसले को लेकर राजनीतिक और कानूनी लड़ाई शुरू हो गई.

वीएचपी की याचिका और मोदी सरकार की जांच
बीजेपी के सत्ता में आने के बाद विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें इस फैसले को चुनौती दी गई. वीएचपी ने अपनी याचिका में कहा था कि जिन संपत्तियों को सरकार ने अधिग्रहित किया था, वे अब सरकारी संपत्ति बन चुकी हैं. इसलिए, Land Acquisition Act की धारा 48 के तहत उन्हें अधिग्रहण से मुक्त नहीं किया जा सकता. इन संपत्तियों में ज्यादातर कनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी रोड, मानसिंह रोड, पंडारा रोड, अशोका रोड, जनपथ, संसद भवन, करोल बाग, सदर बाजार, दरियागंज और जंगपुरा जैसे प्रमुख इलाकों में स्थित हैं. याचिका में यह भी कहा गया कि इन संपत्तियों में मस्जिदें, दुकानें और घर बने हुए हैं. 2015 में तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने 'The Indian Express'कहा कि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने इन संपत्तियों के ट्रांसफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि यह कदम वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था.

तीखी बहस के बाद मोदी सरकार का बड़ा फैसला
2025 में मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया, जिसमें वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया. इस विधेयक को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई. जब 2 बजे रात को मतदान हुआ, तो सत्ता पक्ष ने 288 मतों से जीत दर्ज की, जबकि विपक्ष 232 मतों के साथ पीछे रह गया. केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रीजीजू ने इस विधेयक के जरिए कांग्रेस सरकार की नीति पर सवाल उठाए और कहा कि 2014 में जिन संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर किया गया था, उनकी गहन जांच की जाएगी. उन्होंने विपक्ष पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह विधेयक किसी के अधिकारों का हनन नहीं करता, बल्कि वक्फ संपत्तियों के सही प्रबंधन को सुनिश्चित करता है.

विपक्ष की प्रतिक्रिया और सियासी माहौल
विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया और आरोप लगाया कि सरकार मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस ने दावा किया कि बीजेपी सरकार इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है. हालांकि, बीजेपी का कहना है कि यह विधेयक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है. पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि उसने 60 साल तक मुस्लिम समुदाय के हितों के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन अब जब सरकार उनके विकास के लिए कदम उठा रही है, तो कांग्रेस उसमें बाधा डालना चाहती है.

वक्फ संपत्तियों पर कानूनी और राजनीतिक लड़ाई जारी
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वक्फ संशोधन विधेयक के लागू होने के बाद क्या बदलाव आते हैं. क्या कांग्रेस सरकार का 2014 का फैसला वापस लिया जाएगा. क्या एनडीए सरकार इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से भुनाने में सफल होगी. वक्फ संपत्तियों का मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. जहां बीजेपी इसे पारदर्शिता का मामला बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला करार दे रही है. इस मुद्दे पर आगे क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी.

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