Delhi Elections 2025 : क्या मुस्लिम बहुल सीटों से लौटेगा कांग्रेस का पुराना वर्चस्व? क्या बदलेगी सियासी तस्वीर?
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Delhi Elections 2025 : क्या मुस्लिम बहुल सीटों से लौटेगा कांग्रेस का पुराना वर्चस्व? क्या बदलेगी सियासी तस्वीर?

Congress Muslim Voters : दिल्ली चुनाव 2025 में कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर फोकस कर रही है. लेकिन क्या यह रणनीति काम करेगी या आप और भाजपा की मजबूती के बीच कांग्रेस फिर से पीछे रह जाएगी? यह तो चुनावी नतीजे ही तय करेंगे, लेकिन एक बात साफ है कि दिल्ली का यह चुनाव सिर्फ तीन दलों की लड़ाई नहीं, बल्कि वोट बैंक की एक नई सियासी जंग बन चुका है.

 

Delhi Elections 2025 : क्या मुस्लिम बहुल सीटों से लौटेगा कांग्रेस का पुराना वर्चस्व? क्या बदलेगी सियासी तस्वीर?
Delhi Elections 2025 : क्या मुस्लिम बहुल सीटों से लौटेगा कांग्रेस का पुराना वर्चस्व? क्या बदलेगी सियासी तस्वीर?

Delhi Vidhan Sabha Chunav 2025 : दिल्ली में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों की रणनीतियां खुलकर सामने आने लगी हैं. कांग्रेस जो कभी राजधानी की सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत थी, अब खुद को पुनः खड़ा करने की कोशिश में जुटी है. पिछले दो चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रभाव ने कांग्रेस को पूरी तरह से हाशिए पर धकेल दिया था. लेकिन इस बार पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं को फिर से अपने पक्ष में लाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपनी पुरानी जड़ों को फिर से मजबूत कर पाएगी या यह सिर्फ एक चुनावी दांव साबित होगा.

कांग्रेस की मजबूत जड़ें और गिरता जनाधार

दिल्ली में कांग्रेस का शासन 1998 से 2013 तक रहा, जब शीला दीक्षित के नेतृत्व में पार्टी ने राजधानी में विकास कार्यों पर जोर दिया. लेकिन 2013 में जब आम आदमी पार्टी ने अपने पहले चुनाव में ही 28 सीटें जीतकर धमाकेदार एंट्री की, तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें शुरू हो गईं. 2015 और 2020 के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा, और पार्टी शून्य पर सिमट गई. पिछले दो विधानसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाता, जो कभी कांग्रेस के परंपरागत समर्थक माने जाते थे, उन्होंने भारी संख्या में आप को वोट दिया. इसने कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर कर दिया, लेकिन अब कांग्रेस की नई रणनीति मुस्लिम बहुल सीटों पर पूरी ताकत झोंकने की है.

मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस का फोकस

इस बार कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान की शुरुआत उन इलाकों से की, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. राहुल गांधी ने 13 जनवरी को सीलमपुर से अपनी पहली जनसभा की, जहां 57% से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं. इसके बाद 28 जनवरी को उन्होंने ओखला में रैली की, जहां 52.5% मुस्लिम आबादी है. प्रियंका गांधी ने भी मुस्तफाबाद, बाबरपुर और सीमापुरी जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रचार किया.

मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों का प्रतिशत

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आप से दूरी और कांग्रेस की ओर झुकाव

2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाता भारी संख्या में आम आदमी पार्टी के साथ थे, लेकिन 2020 के दिल्ली दंगों के बाद समुदाय में केजरीवाल सरकार को लेकर नाराजगी देखी गई. 2022 के नगर निगम चुनावों में यह असंतोष साफ झलका, जब मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन करते हुए देखा गया. सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद और ओखला में कांग्रेस के उम्मीदवारों को समर्थन मिला, जिससे छह मुस्लिम पार्षद जीतने में सफल रहे. यह संकेत देता है कि कांग्रेस के लिए अब भी उम्मीद बाकी है, लेकिन इसे एक ठोस रणनीति और सशक्त नेतृत्व की जरूरत होगी.

भाजपा को कैसे मिलेगा फायदा?

कांग्रेस और आप के बीच मुस्लिम वोटों को लेकर जारी संघर्ष का सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है. अगर मुस्लिम वोट कांग्रेस और आप के बीच बंटते हैं, तो भाजपा के लिए यह फायदेमंद स्थिति होगी. भाजपा का कोर वोटर पहले से ही स्थिर है, लेकिन अगर विपक्षी दलों का वोट बंटता है, तो भाजपा को फायदा मिल सकता है.

क्या कांग्रेस अपनी पुरानी स्थिति वापस पा सकती है?

दिल्ली में कांग्रेस के लिए यह चुनाव एक अस्तित्व की लड़ाई से कम नहीं है. अगर पार्टी मुस्लिम वोटरों को फिर से अपनी तरफ मोड़ने में सफल होती है, तो वह एक बार फिर मुकाबले में आ सकती है. हालांकि, कांग्रेस को सिर्फ मुस्लिम वोटों पर निर्भर रहने के बजाय एक व्यापक रणनीति अपनाने की जरूरत होगी, जिसमें दलित, पिछड़े और मध्यम वर्गीय मतदाताओं को भी शामिल किया जाए.

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