रंगों का त्योहार होली का त्योहार नजदीक है. रंग-गुलाल से सराबोर हुरियारों की टोलियां आपको नजर जल्द नजर आने लगेंगी. इसे मनाने का तरीका अलग-अलग है. कहीं फूलों की होली खेली जाती है. तो कहीं लट्ठमार. लेकिन उत्तर प्रदेश में 5 ऐसी जगह हैं, जहां की होली मनाने का अंदाज सबसे जुदा है.
रंगों का त्योहार होली हिंदु धर्म का प्रसिद्ध त्योहार है. होलिका दहन के बाद इसको मनाया जाता है. यह महापर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है
हिंदू पंचांग के फाल्गुन महीने में मनाया जाने वाले रंगों के इस महा उत्सव को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और पौराणिक कथाएं हैं.
पंचांग के अनुसार होलिका दहन 13 मार्च को होगा. इसके साथ ही इस साल 14 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा. आइए जानते हैं इसे किन जगहों पर अनूठे अंदाज में मनाया जाता है.
पीलीभीत के पूरनपुर तहसील क्षेत्र के शेरपुर कलां गांव में होली मनाने का अंदाज बेहद अलग है. यहां रंग खेलने के साथ-साथ गालियां भी दी जाती हैं. यहां हिंदू मुस्लिम साथ होली खेलते हैं. अच्छी बात यह है कि मुसलमान इससे नाराज नहीं होते हैं.
शाहजहांपुर में जूतामार होली की परंपरा पुरानी है. शाहजहांपुर में नवाब का जुलूस निकालकर होली मनाने की परंपरा शुरू हुई थी जो जूतामार होली में बदल गई. होली के दिन यहां ‘लाट साहब’ का जुलूस निकलता है.
इटावा जिले के सैंथना गांव में बिच्छुओं के साथ होली मनाते हैं. यहां होली के अगले दिन भैसान देवी के टीले पर जाते हैं. यहां बिच्छुओं की पूजा की जाती है और इनको हाथ पर लेकर लोग घूमते हैं. कहा जाता है कि इस दिन बिच्छू डंक नहीं मारता.
ब्रज की लठमार होली देश दुनिया में मशहूर है. यहां होली की तैयारियां महीने भर पहले ही शुरू हो जाती है. होली के दिन यहां महिलाओं लठों से पुरुषों पर बरसाती हैं.
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है. इसे मसान की राख वाली होली भी कहा जाता है. यह कई सौ साल पुरानी है.
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