अगर आपके अपने नवजात बच्चे को बोतल से दूध पिला रहे हैं तो सावधान हो जाइए. झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में 6 माह से 100 शिशुओं पर चल रहे शोध से यह जानकारी मिली है. आइए आपको बताते क्या-क्या बच्चे पर दिक्कत आ सकती है?
मां का दूध नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार होता है, जो न केवल इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है, बल्कि बच्चे के समुचित विकास में भी मदद करता है.यह आसानी से पचता है और संक्रमण से भी बचाता है. विशेषज्ञ जन्म के पहले घंटे में दूध पिलाने की सलाह देते हैं.
जब स्तनपान में दिक्कत आती है तो कई न्यू मदर्स बॉटल फीडिंग शुरू कर देती हैं, जो शिशु के स्वास्थ्य और मां-बच्चे के रिश्ते पर नकारात्मक असर डाल सकती है.इससे बच्चा मां को पहचानने में देर कर सकता है.
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष और शोध दल के बार्गदर्शक के अनुसार, 6 माह से 100 शिशुओं में से 50 बच्चे स्तनपान करने वाले हैं.वहीं, 50 बोतल से दूध पीते हैं. बोतल से दूध पीने वाले बच्चों का आईक्यू स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में 8-10 अंक कम होता है.इससे उनकी बौद्धिक क्षमता प्रभावित हो सकती है और वे पढ़ाई या अन्य मानसिक कार्यों में पीछे रह सकते हैं.
बोतल से दूध पीने वाले शिशु जल्दी-जल्दी बीमार पड़ते हैं.उनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है क्योंकि बोतल की सफाई में लापरवाही से हानिकारक बैक्टीरिया पनपते हैं जो बच्चे की आंतों को नुकसान पहुंचाते हैं.
बोतल की सही सफाई न होने पर उसमें ई.कोलाई, साल्मोनेला और स्ट्रेप्टोकोकस जैसे बैक्टीरिया पनप सकते हैं.ये पेट दर्द, उल्टी-दस्त और आंतों के संक्रमण का कारण बनते हैं जिससे बच्चा कमजोर हो सकता है.
स्तनपान करने वाले बच्चों का आईक्यू लेवल अधिक पाया गया है. ऐसे बच्चे ज्यादा दिमागदार होते हैं और परिवार के सदस्यों को जल्दी पहचानने लगते हैं, जिससे उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास में भी तेजी आती है.
बोतल से दूध पीने वाले बच्चों में मोटापा बढ़ने की संभावना अधिक होती है. इससे आगे चलकर उन्हें डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा भी हो सकता है. स्तनपान इस खतरे को कम करता है.
जब शिशु को स्तनपान के साथ बोतल से भी दूध दिया जाता है तो वह निप्पल कंफ्यूजन का शिकार हो सकता है.इससे वह कभी-कभी भूखा रह जाता है और समय पर पर्याप्त दूध नहीं पी पाता जिससे उसका विकास प्रभावित होता है.
निप्पल कंफ्यूजन के कारण बच्चा थोड़ी-थोड़ी देर में भूख लगने पर रोता है और चिड़चिड़ा हो जाता है.यह स्थिति माता-पिता के लिए भी तनावपूर्ण हो सकती है और शिशु के भावनात्मक विकास पर भी असर डाल सकती है.
स्तनपान से मां और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव मजबूत होता है. यह शिशु को सुरक्षा का एहसास देता है. जबकि बोतल फीडिंग से यह रिश्ता कमजोर हो सकता है और बच्चा मां को देर से पहचानता है.
यदि किसी कारणवश मां स्तनपान नहीं करा सकती तो डॉक्टर कटोरी-चम्मच से दूध पिलाने की सलाह देते हैं.यह तरीका बोतल की तुलना में अधिक सुरक्षित होता है और संक्रमण का खतरा भी कम रहता है.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.