Kinnaur News: फागुली उत्सव की समाप्ति के साथ 20 साल बाद निचार में अठाराेह उत्सव की धूम
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Kinnaur News: फागुली उत्सव की समाप्ति के साथ 20 साल बाद निचार में अठाराेह उत्सव की धूम

Himachal News: किन्नौर की समृद्ध परंपरा और अनूठी संस्कृति को संजोए रखने वाले इस विशेष उत्सव में निचार से ब्याही महिलाओं और उनके परिजनों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है.

Kinnaur News: फागुली उत्सव की समाप्ति के साथ 20 साल बाद निचार में अठाराेह उत्सव की धूम

Himachal Pradesh/विशेषर नेगी: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर के निचार में 20 साल बाद अठाराेह उत्सव मनाया जा रहा है. फागुली उत्सव की समाप्ति के साथ उषा माता मंदिर प्रांगण अठाराेह उत्सव का आगाज हुआ. इस पारंपरिक आयोजन के दौरान जहां आस्था का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है, वहीं लोक संस्कृति और परंपराओं की झलक भी बरकरार है. खास बात यह है कि इस बार देवी की पालकी को सर्दियों में भी यथावत रखा गया.

किन्नौर की समृद्ध परंपरा और अनूठी संस्कृति को संजोए रखने वाले इस विशेष उत्सव में निचार से ब्याही महिलाओं और उनके परिजनों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है. इस उत्सव के दौरान पूरे गांव में उत्साह का माहौल है, महिलाएं पारंपरिक परिधानों और आभूषणों से खूब सज धज कर मंदिर प्रांगण में लोक नृत्य का आनंद लेती है.

वैसे तो हर साल देवी-देवताओं की पालकी को कुछ समय के लिए मोहरों को निकाल कर अलग किया जाता है, लेकिन इस बार प्राकृतिक असंतुलन की संभावना के चलते फसल की अच्छी पैदावार के लिए देवी को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया गया. इसी उपलक्ष्य में यह भव्य आयोजन किया जा रहा है.

"इस बार लोगों ने देवी से निवेदन किया कि वह अपनी पालकी में बनी रहें ताकि पूरे क्षेत्र में सुख-समृद्धि बनी रहे. इस परंपरा को निभाने के लिए पूरे क्षेत्र से लोग यहां जुटे हैं और उत्सव का आनंद ले रहे हैं."

"यह उत्सव हमारे रीति-रिवाजों और परंपराओं को जीवंत रखने का एक सुनहरा अवसर पैदा करता है. निचार में 20 साल बाद हो रहे इस आयोजन में हम सभी ने बढ़-चढ़कर भाग लिया है, यह हमारे समुदाय को जोड़ने का जरिया भी है."

हिमाचल वन निगम के पूर्व अध्यक्ष सुरत नेगी ने बताया जिला किन्नौर देश विदेश में अपनी विविध संस्कृति के लिए विख्यात है. यहां पर जो पारंपरिक उत्सव मनाया जा रहा है उसे अठाराेह यानी डोगनो भोजिंग कहा जाता है. ऐसे उत्सव हमारी संस्कृति को संरक्षित करने के साथ आने वाली पीढ़ी को भी अपनी परम्परा से परिचय कराती है.

इस आयोजन से स्पष्ट है कि किन्नौर के लोग अपनी संस्कृति को लेकर कितने सजग और समर्पित हैं. जहां एक ओर देवी की पालकी आस्था का केंद्र बनी हुई है, वहीं लोक संस्कृति की झलक भी हर ओर नजर आ रही है. 20 साल बाद इस आयोजन ने पूरे निचार क्षेत्र में एक नई ऊर्जा का संचार किया है.

किन्नौर की सिमटती परंपराओं को जीवंत रखने वाला यह आयोजन भले ही 20 साल बाद हो रहा है, लेकिन इसकी आस्था और महत्व कभी कम नहीं हुआ. इस तरह के उत्सव न केवल समुदाय को एकजुट रखते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी अपनी समृद्ध विरासत से जोड़ते हैं.

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