बांग्लादेशी और D-Voter के नाम पर मुसलमानों पर कहर; असम सरकार की कार्रवाई के खिलाफ MUSA का बिगुल
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बांग्लादेशी और D-Voter के नाम पर मुसलमानों पर कहर; असम सरकार की कार्रवाई के खिलाफ MUSA का बिगुल

Muslim Exploitation in Assam: बीजेपी सरकार लगातार D-Voter और अवैध नागरिक बताते हुए असम के मुसलमानों को परेशान कर रही है. हालिया दिनों 65 लोगों को विदेशी बताते हुए भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर 'नो मैन्स लैंड' में धकेल दिया गया था. असम सरकार के इस रवैये के खिलाफ MUSA ने मोर्चा खोल दिया है. 

 

बांग्लादेशी और D-Voter के नाम पर असम के मुसलमानों पर जुल्म
बांग्लादेशी और D-Voter के नाम पर असम के मुसलमानों पर जुल्म

Assam News Today: असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार पर लगातार स्थानीय मुसलमानों के उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं. हालिया कुछ दिनों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ और D-Voter के नाम पर असम के मुसलमानों को 'नो मैंस लैंड' में धकेल दिया गया. असम सरकार के इस रवैये के खिलाफ प्रदेश के सबसे बड़े मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन MUSA ने मोर्चा खोल दिया है. 

मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ऑफ आसाम (MUSA) ने असम के सभी जिलों में पुरजोर विरोध कर रहा है. राज्य के सबसे बड़े मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ऑफ आसाम की अगुवाई में एक साथ कई अन्य मुस्लिम संगठनों ने ईद-उल-अजहा के बाद 11 जून को गुवाहाटी में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है. 

सरकार के रवैये से MUSA नाखुश

हालिया दिनों असम के 65 लोगों को भार बांग्लादेश बॉर्डर पर 'नो मैन्स लैंड' में धकेल दिया गया था और फिर मामला तूल पकड़ता देख उनको भारतीय नागरिक बताते हुए वापस बुला लिया गया. मंगलवार (3 जून) को मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ऑफ असम के प्रमुख आशिक रब्बानी ने बीजेपी सरकार के इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की. 

MUSA प्रमुख आशिक रब्बानी ने कहा, "विदेशी के नाम पर सरकार लगातार मुसलमानों को प्रताड़ित कर रही है. प्रशासन और पुलिस असम के अलग-अलग जिलों से D-Voter के नाम पर मुसलमानों को देर रात कभी भी उठाकर लेकर जाती है. हालांकि, इन लोगों के पास सभी जरुरी दस्तावेज हैं, साथ में उनके पास NRC के अपडेट डॉक्यूमेंट हैं, फिर भी उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और अवैध तरीके से डिटेंशन सेंटर में भेजा जा रहा है." 

बड़े आंदोलन की चेतावनी

आशिक रब्बानी ने मोरेगांव की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, "आफिया खातून और शमशुल हक के पास सारे जरुरी दस्तावजे थे, लेकिन इसके बावजूद उनके पास फॉरेन ट्रिब्यूनल की तरफ से नोटिस आ गया था." उन्होंने मांग की कि हर गांव में लोक अदालत बैठाकर इस समस्या का समाधान किया जाना चाहिए. इसकी वजह यह है कि यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नही हैं, ऐसे में वह हाईकोर्ट या ऊपरी अदालतों में अपने केस की पैरवी नहीं कर सकते हैं. इसलिए गांव-गांव में लोक अदालत और मजिस्ट्रेट की कोर्ट से मामले का निपटारा किया जाना चाहिए, न कि उन्हें डिटेंशन सेंटर भेजा जाना चाहिए.  

सरकार को चेतावनी देते हुए MUSA प्रमुख ने कहा, "अगर इसका समाधान जल्द से जल्द नहीं किया गया तो हम प्रदेश स्तर MUSA की तरफ से विरोध प्रदर्शन करेंगे." उन्होंने आगे कहा, "सरकार के इस कार्रवाई के खिलाफ हमें चुपचाप बैठना नहीं है. इसके लिए हमें एक आंदोलन करना है. असम में एक मुस्लिम समन्वय समिति बनी है और इसी के अधीन ईद-उल-अजहा के बाद 11 जनू को विरोध प्रदर्शन करेंगे." उन्होंने कहा कि अगर असम में मुसलमानों के साथ अत्याचार नहीं रुका तो हम कानून के दायरे में रहते हुए बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे. 

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