Chatra News: झारखंड के चतरा जिले के 20 नाबालिग बच्चों का यूपी के गन्ना खेतों में शोषण किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक, उन्हें खाने के नाम पर रूखा सूखा भोजन और गंदगी में रहने को मजबूर किया जा रहा है.
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Chatra News: झारखंड के चतरा जिले का हिन्दिया कला गांव, जहां कभी जंगलों की गोद में बिरहोर जनजाति का जीवन सांस लेता था, आज वहीं से मासूम बच्चों की चीखें उठ रही हैं. उत्तर प्रदेश के गन्ना खेतों में कैद ये आवाजें न केवल इस जनजाति के संघर्ष की गवाही देती हैं, बल्कि सरकार और समाज की उदासीनता पर भी कड़े सवाल खड़े करती है. सदियों से जंगलों में रहने वाले बिरहोर आदिवासी अपनी परंपरागत जीवनशैली के सहारे जीविकोपार्जन करते थे. लेकिन जंगलों के विनाश, सरकारी उपेक्षा और रोजगार के अवसरों के अभाव ने इन्हें भुखमरी के कगार पर ला खड़ा किया. बेरोजगारी और गरीबी के इस कुचक्र में अब इनके बच्चे भी फंस चुके हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों ने बंधुआ मजदूर बना लिया है.
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गांव के पढ़े-लिखे युवा बिरेंद्र उर्फ ''विधायक'' बिरहोर ने इस भयावह सच्चाई को उजागर किया है. उनके मुताबिक, हिन्दिया कला गांव के 20 से अधिक नाबालिग लड़कों को उत्तर प्रदेश के गन्ना खेतों में ले जाया गया, जहां वे अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं. इन बच्चों के काम का शेड्यूल है, सुबह से देर रात तक गन्ना काटना और ढोना, खाने के नाम पर सूखा भोजन, रहने की जगह गंदगी से भरी झोपड़ियां, मजदूरी के नाम पर मामूली पैसे. यदि कोई बच्चा भागने की कोशिश करता है, तो उसे क्रूर सजा दी जाती है. यह पहली बार नहीं है, जब बिरहोर समुदाय की दर्दनाक स्थिति सामने आई है.
2008 में इसी हिन्दिया कला गांव में भूख से नौ बिरहोरों की मौत हो गई थी. तब सरकार ने सहायता का आश्वासन दिया, लेकिन वादे सिर्फ कागजों में सिमटकर रह गए. सरकारी योजनाएं इस समुदाय तक न के बराबर पहुंच पाती हैं. जंगलों के खत्म होने से उनकी पारंपरिक आजीविका छिन गई, और रोजगार के अभाव में अब उनका शोषण चरम पर पहुंच चुका है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन बच्चों को उत्तर प्रदेश के किस इलाके में रखा गया है, इसका कोई सटीक पता नहीं है.
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परिवारवालों को सिर्फ उनके नाम पता हैं, लेकिन वे किस जिले या गांव में काम कर रहे हैं, यह अज्ञात है. बंधुआ बनाए गए बच्चों में रविंद्र बिरहोर, कुलेसर बिरहोर, सरभु बिरहोर, संदीप बिरहोर, राजदीप बिरहोर, सुरेंद्र बिरहोर, गणेश बिरहोर, योगेंद्र बिरहोर, राजेंद्र बिरहोर, रोहित बिरहोर, अर्जुन बिरहोर, धनेश्वर बिरहोर, आशीष बिरहोर, उमेश बिरहोर, रामस्वरूप बिरहोर, पुनक बिरहोर, अमित बिरहोर, सुनील बिरहोर, सुड़ल बिरहोर और अन्य के नाम शामिल हैं. इन सभी बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर दिया गया है और वे अमानवीय शोषण का सामना कर रहे हैं. इस गंभीर मामले की जानकारी प्रशासन को न होना निराशाजनक है.
क्या सरकार इन बच्चों की चीखें सुनेगी? क्या बिरहोर जनजाति को उनके अधिकार मिलेंगे? बिरेंद्र बिरहोर और अन्य समाजसेवी इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि प्रशासन हरकत में आए और बच्चों को मुक्त कराकर बिरहोर जनजाति को पुनर्वास की सुविधा मिले. गांव के लोग अब अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. अगर सरकार इस पर संज्ञान ले, तो इन बच्चों को बचाया जा सकता है और बिरहोर समुदाय को भी एक नया जीवन मिल सकता है. हिन्दिया कला गांव उम्मीदों की लौ जलाए बैठा है. देखना यह है कि इस बार न्याय मिलेगा या नहीं?.
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वहीं इस मामले को लेकर चतरा डीसी रमेश घोलप कहते हैं कि इस मामले की जानकारी मुझे जिस दिन प्राप्त हुई थी, तब सेम डे मै श्रम अधीक्षक अरविंद कुमार को इस मामले को संज्ञान में दिया था. जिसके बाद गांव जाकर मामले की जायजा ली गई, तो परिजनों के द्वारा ऐसा कुछ बताया नहीं गया है. साथ ही उन्होंने कहा कि हमने वहां काम कर रहे हैं, युवाओं से बात किया तो उन सभी ने बताया कि हमलोग यहां अपने मन से मजदूरी करने आए हैं और थोड़े दिन में घर चल जाएंगे. आगे उन्होंने कहा कि मैं मीडिया से अपील करता हूं कि अगर इस तरह का मामला है, तो उनके परिजन व काम करने वाले लड़कों का नाम व नंबर दिया जाए, फिर मैं उस पर कार्रवाई करूंगा.
इनपुट- धर्मेन्द्र पाठक
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