Chaitra Navratri 2025: मां मुंडेश्वरी धाम में माता का श्रृंगार होता है बेहद खास, थाईलैंड और बैंकॉक से आते हैं फूल
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Chaitra Navratri 2025: मां मुंडेश्वरी धाम में माता का श्रृंगार होता है बेहद खास, थाईलैंड और बैंकॉक से आते हैं फूल

Maa Mundeshwari Dham​: बिहार के कैमूर जिले के मां मुंडेश्वरी धाम में सुबह से भक्तों की भीड़ देखी जा रही है. चैत्र नवरात्रि के पहले लिए माता के दर्शन और पूजा हेतु श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. मां मुंडेश्वरी धाम विश्व का सबसे प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर की कई खासियतों में से एक है कि यहां माता का श्रृंगार सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन थाईलैंड और बैंकॉक से आए फूल से होता है. 

 

मां मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी धाम

Chaitra Navratri 2025: कैमूर: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन बिहार के कैमूर जिले में भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी धाम में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. सुबह से ही श्रद्धालु मां के दर्शन और पूजन के लिए पहुंचे. यह मंदिर 600 फीट ऊंची पहाड़ी पर है और इसे विश्व का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. नवरात्रि के सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर होने वाली निशा पूजा के लिए मंदिर को सजाने के लिए थाईलैंड और बैंकॉक से फूल मंगाए जाते हैं. मंदिर में सुरक्षा के लिए खास इंतजाम किए गए हैं. पुलिस बल और मजिस्ट्रेट के साथ मंदिर प्रशासन की टीम तैनात है. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 15 चेकपॉइंट बनाए गए हैं. जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और हेल्पलाइन सेंटर भी शुरू किया गया है, ताकि श्रद्धालुओं को जाम या किसी परेशानी का सामना न करना पड़े. मंदिर अष्टकोणीय है और श्री यंत्र के आकार में बना है. यहां मां वाराही रूप में विराजमान हैं, जिनका वाहन भैंसा है. मंदिर में पंचमुखी शिवलिंग भी स्थापित है, जिसका रंग सूर्य की स्थिति के साथ बदलता है.

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मां मुंडेश्वरी धार्मिक न्यास परिषद के सचिव अशोक सिंह ने बताया, "यह देश का सबसे पुराना मंदिर है, जो 526 ईसा पूर्व से है. मां ने यहां मुंड राक्षस का वध किया था इसलिए इसे मुंडेश्वरी नाम मिला. नवरात्रि में सप्तमी, अष्टमी और नवमी को मंदिर की भव्य सजावट होती है. पिछले 10 साल से हम थाईलैंड और बैंकॉक से फूल मंगाते हैं. सुबह से हजारों भक्त दर्शन के लिए पहुंचे हैं."मुंडेश्वरी धाम की खासियत है इसकी अनोखी बलि प्रथा. 

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यहां बकरे को काटे बगैर बलि दी जाती है. रक्तहीन बलि की यह प्रथा विश्व में कहीं और नहीं देखी जाती. पुजारी राधेश्याम झा ने कहा, "लोग मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर बकरे की बलि चढ़ाते हैं. अक्षत मारने से बकरा बेहोश हो जाता है और बाद में जिंदा हो जाता है. देश-विदेश से भक्त यहां आते हैं." श्रद्धालु गुड्डू सिंह ने कहा, "मैं बचपन से यहां आता हूं. नवरात्रि के पहले दिन भारी भीड़ होती है. पशु बलि की प्रथा अनोखी है." मंदिर में पहले दिन से ही भक्ति का माहौल है. विदेशी फूलों से सजावट और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम इस नवरात्रि को और खास बना रहे हैं.

इनपुट - आईएएनएस

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