Kaimur News: बिना काटे यहां दी जाती है बकरे की बलि, अक्षत और फूल से ही मूर्छित हो जाता है पशु!
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Kaimur News: बिना काटे यहां दी जाती है बकरे की बलि, अक्षत और फूल से ही मूर्छित हो जाता है पशु!

Kaimur News: कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी धाम में बकरे की बलि अद्भुत होती है. बकरे को काटा नहीं, बल्कि अक्षत फूल मारकर बलि दी जाती है.​

बिना काटे यहां दी जाती है बकरे की बलि
बिना काटे यहां दी जाती है बकरे की बलि

Kaimur News: बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी धाम में चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा रही है. मां मुंडेश्वरी धाम में बकरे की बलि अद्भुत होती है. बकरे को काटा नहीं, बल्कि अक्षत फूल मारकर बलि दी जाती है. यह एक अनोखी प्रक्रिया है, जोकि विश्व में कहीं नहीं है. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु के द्वारा पशु बलि की प्रक्रिया है, लेकिन यहां रक्त विहीन पशु बलि दी जाती है. श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर मां के सामने पशु यानि कि बकरा को लाया जाता है. पुरोहित जी मंत्र पढ़ के बकरे को मां के चरणों में लिटा करके अक्षत मरते हैं, तो बकरा मूर्छित हो जाता है. उसके बाद मंत्र पढ़ा अक्षत मारते हैं, तो बकरा उठ जाता है. ऐसे में पशु बलि की प्रक्रिया पूर्ण होती है और मां मुंडेश्वरी का जय कारा लगने लगता है.

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वहीं नवरात्रि के दोनों दिन दर्शन और पूजन को लेकर भारी भीड़ दिखाई दी. यही वजह है कि सुरक्षा को लेकर पुलिस बल और मजिस्ट्रेट के साथ मंदिर प्रशासन की टीम भी दिखाई दी. जिससे कि जाम की समस्या से श्रद्धालुओं को ना गुजरना पड़े. सुरक्षा को लेकर 15 चेकप्वाइंट बनाए गए हैं. जगह-जगह सीसीटीवी लगाए गए हैं. हेल्पलाइन सेंटर भी बनाया गया है. बताया जाता है कि यह मंदिर पवरा पहाड़ी पर 600 फीट की ऊंचाई पर है. यह विश्व का प्राचीनतम मंदिर भी बताया जा रहा है. विदेश से लोग यहां पर दर्शन पूजन के लिए आते हैं.

मंदिर श्री यंत्र के आकार का अष्टकोडिय है. मां वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महीश है. मंदिर के मुख्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित हैं. कहा जाता है कि सूर्य की स्थिति के साथ शिव के पत्थर का रंग बदलता है. जी मीडिया से खास बातचीत में मां मुंडेश्वरी धार्मिक न्यास परिषद के सचिव अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि देश का सबसे प्राचीनतम मंदिरों में मां मुंडेश्वरी मंदिर है. यह अष्टक अष्टकोड़िये मंदिर है, यहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं. जो भी लोग आते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. तो वह बकरे की बलि देने आते हैं. मां के चरण में जो बकरा आता है, अपने आप मूर्छित हो जाता है. मां बाली को स्वीकार कर लेती हैं.

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वहीं पुरोहित जी जब दोबारा अक्षत मारते हैं. तो बकरा जी उठता है. नवरात्रि में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है. सुरक्षा की दृष्टि से 15 पॉइंट चिन्हित किए गए हैं. जहां मजिस्ट्रेट के साथ पुलिसकर्मी और धार्मिक न्यास के लोग को तैनात किया गया है. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पेयजल एवं टेंट की व्यवस्था की गई है. नवरात्रि में थाईलैंड और बैंकॉक से फूल मंगा कर सजावट किया जाता है यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है सभी जगह पर सीसीटीवी कैमरा से निगरानी की जा रही है किसी भी श्रद्धालु को किसी प्रकार की परेशानी ना हो.

श्रद्धालु पवन पटेल ने बताया कि हम लोग बचपन से ही यहां पर आते हैं. यह मंदिर पहाड़ी पर स्थित है. नवरात्रि के पहले दिन यहां पर भारी भीड़ होता है. यहां का पशु बलि विश्व विख्यात है. जहां पशुओं को बिना काटे बलि दिया जाता है. वहीं मुंडेश्वर धाम के पुजारी राधे श्याम झा ने बताया यह भारत का सबसे प्राचीन मंदिर है. जो अष्टकोड़ीय है जो श्रीयंत्र के आकार का है. यहां पर लोग मन्नत मांगते हैं, मन्नत पूरा हो जाने पर बकरा चढ़ाते हैं. यहां बकरा बली की अनोखी प्रथा है, जिसे काटा नहीं जाता है, बल्कि अक्षत फूल मारने से ही बकरा मूर्छित हो जाता है. फिर अक्षत मारने के बाद बकरा जिंदा हो जाता है. देश ही नहीं विदेशों से लोग यहां पर आते हैं. ऐसी प्रथा कहीं नहीं है.

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