Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच कटिहार की बरारी सीट चर्चा का केंद्र बन गई है. 1957 में स्थापित यह सामान्य श्रेणी की सीट सामाजिक-भौगोलिक विविधता और दल-बदल की राजनीति के लिए जानी जाती है.
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कटिहार: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच कटिहार जिले की बरारी विधानसभा सीट पर हर किसी की नजर टिकी हुई है. यह सीट चुनावी चर्चा का केंद्र बन गई है. सामान्य श्रेणी की यह विधानसभा सीट न केवल अपनी सामाजिक और भौगोलिक विविधताओं के कारण बल्कि राजनीतिक उठापटक और दल-बदलुओं के गढ़ के रूप में भी जानी जाती है.
यह क्षेत्र कोसी नदी के निकट होने के कारण इसकी मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है. यहां की प्रमुख फसलें धान, गेहूं और केला हैं, जिन पर इस क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था टिकी हुई है. साथ ही, बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में कार्यरत हैं और उनकी ओर से भेजे जाने वाले रेमिटेंस भी स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. रोजगार के सीमित अवसरों के कारण यहां से मौसमी पलायन आम बात है, जो चुनावी रणनीतियों को भी प्रभावित करता है.
भौगोलिक दृष्टिकोण से बरारी का संपर्क तंत्र बेहतर है. यह कटिहार शहर से लगभग 12 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है और राष्ट्रीय राजमार्ग 31 तथा कटिहार जंक्शन रेलवे स्टेशन से जुड़ा है. बरारी के आसपास मनीहारी, नवगछिया, कॉलगोंग और पूर्णिया जैसे प्रमुख स्थल हैं, जिससे यह क्षेत्र व्यापार, परिवहन, राजनीतिक और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण बनता है. वहीं, गुरुद्वारा साहेब बरारी इस क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल है, जो सामाजिक समरसता का प्रतीक भी माना जाता है.
बरारी विधानसभा सीट की स्थापना 1957 में हुई थी. शुरुआती दौर में इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा और उसने सात में से पांच चुनाव जीते, जिसमें अंतिम जीत 1980 में करुणेश्वर सिंह के नेतृत्व में हुई. इसके बाद से यहां मतदाताओं ने विभिन्न दलों को मौका दिया है. भाजपा और राजद ने दो-दो बार, जबकि सीपीआई, जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल, एनसीपी, जेडीयू और एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है. यहां दल-बदलुओं की भूमिका हमेशा चर्चित रही है.
मोहम्मद साकूर ने 1969 में सीपीआई से जीत दर्ज कर कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा, फिर 1972 में कांग्रेस और 2005 में एनसीपी से चुनाव जीतकर यह साबित किया कि व्यक्तिगत छवि और स्थानीय पकड़ चुनावी समीकरणों में अहम होती है. मंसूर आलम ने 1985 में लोकदल, 1995 में जनता दल और 2000 में राजद के टिकट पर जीत दर्ज की, जो इस क्षेत्र में बार-बार बदलते राजनीतिक समीकरणों को दर्शाते हैं.
2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के विजय सिंह ने राजद के नीरज कुमार को 10,438 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी. विजय सिंह ने राजनीति में सामाजिक सरोकारों के कारण विशेष पहचान बनाई है. उन्होंने बाढ़ और कटाव के कारण विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास की मांग को लेकर यह संकल्प लिया कि जब तक पुनर्वास नहीं होगा, वह दाढ़ी नहीं बनाएंगे. उनका यह फैसला जनता के बीच चर्चा का विषय बना रहा. विजय सिंह 10वीं पास हैं और उनके पास 2020 के हलफनामे के अनुसार तीन करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति है. उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है, जिससे उनकी छवि साफ-सुथरी मानी जाती है. जेडीयू ने उन्हें 2021 में अति पिछड़ा प्रकोष्ठ का प्रदेशाध्यक्ष भी नियुक्त किया था.
चुनाव आयोग के अनुसार, बरारी की कुल अनुमानित जनसंख्या 2024 में 4,80,221 थी, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,48,184 और महिलाओं की संख्या 2,32,037 है. चुनाव आयोग के अनुसार, 1 जनवरी 2024 की स्थिति में कुल मतदाताओं की संख्या 2,82,738 है, जिसमें 1,48,555 पुरुष, 1,34,176 महिलाएं और 7 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं. इस आंकड़े से स्पष्ट है कि महिलाओं और युवाओं की भागीदारी इस बार के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती है.
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बरारी विधानसभा का राजनीतिक इतिहास जितना दिलचस्प रहा है, उतना ही पेचीदा यहां का सामाजिक समीकरण भी है. जातीय संतुलन, विकास के मुद्दे, प्रवासी मतदाताओं की भूमिका, बाढ़ और कटाव से जुड़ी समस्याएं, रोजगार का संकट और स्थानीय नेतृत्व की विश्वसनीयता इस बार भी चुनावी फैसलों को प्रभावित करेंगे. जेडीयू के सामने जहां सत्ता में बने रहने की चुनौती है, वहीं राजद, भाजपा और अन्य दल सत्ता में आने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे.
इनपुट- आईएएनएस
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