Waste Management: कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट में बताया गया है कि गाजीपुर कूड़े के ढेर पर मीथेन गैस निकालने के लिए पाइप तो लगाए गए हैं, लेकिन उस गैस को जमा करने या ठीक से संभालने की कोई व्यवस्था नहीं है. इसकी वजह से यह जहरीली गैस सीधे हवा में छोड़ी जा रही है, जो लोगों की सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है.
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Ghazipur Landfill: देश की राजधानी दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल साइट एक बार फिर सुर्खियों में है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के लिए नियुक्त कोर्ट कमिश्नर और वरिष्ठ अधिवक्ता कात्यायनी की हालिया रिपोर्ट ने इस इलाके में फैली गंभीर समस्याओं को उजागर किया है. रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली नगर निगम (MCD) के तमाम दावों के बावजूद गाजीपुर का कूड़े का पहाड़ पहले से कहीं ज्यादा ऊंचा और खतरनाक हो गया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि लैंडफिल साइट की ऊंचाई 40 मीटर की तय सीमा को पार कर 60 मीटर तक पहुंच चुकी है. साथ ही, कूड़ा निस्तारण की हालत बेहद खराब है. NGT की बेंच, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव कर रहे हैं. उन्होंने MCD को इस मुद्दे पर चार सप्ताह में एक विस्तृत और समयबद्ध योजना प्रस्तुत करने का आदेश दिया है. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का गंभीर उल्लंघन हुआ है. साथ ही सबसे चिंताजनक बात यह है कि लैंडफिल साइट से निकलने वाली गंदगी सीधे यमुना नदी में पहुंच रही है. जब बारिश का पानी इस कूड़े से होकर गुजरता है, तो वह गाद बनकर नालों के जरिए यमुना में मिल जाता है, जिससे पानी जहरीला हो जाता है. यह स्थिति पर्यावरण के साथ-साथ दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन गई है.
कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि साइट पर मीथेन गैस के वेंट तो लगाए गए हैं, लेकिन गैस को इकट्ठा करने या प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है. जिससे यह गैस सीधे वातावरण में छोड़ी जा रही है. इसके अलावा एमसीडी द्वारा लैंडफिल साइट पर पांच एकड़ अतिरिक्त जमीन अधिग्रहित करने का दावा भी गलत पाया गया. कोर्ट कमिश्नर ने MCD को कई अहम सुझाव दिए हैं, जैसे लैंडफिल के चारों ओर मजबूत चारदीवारी बनाना, अपशिष्ट से ऊर्जा (WTE) संयंत्रों की क्षमता बढ़ाना, पर्यावरण मानकों के अनुसार आधुनिक लैब बनाना और श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा व सुरक्षा किट उपलब्ध कराना. साफ है कि दिल्ली के 'कूड़े के पहाड़' की समस्या सिर्फ एक पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और सुरक्षा का भी बड़ा मुद्दा बन चुकी है. आने वाले समय में यह समस्या और गंभीर न हो, इसके लिए ठोस कार्रवाई की दरकार है.
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