Indore Hospital News: इंदौर के एमवाय अस्पताल में किराए के कर्मचारियों से संवेदनशील विभागों में काम करवाए जाने का खुलासा हुआ है. कैजुअल्टी जैसे अहम सेक्शन में बाहरी लोगों को ₹500 रोज पर नियुक्त किया गया, जबकि अस्पताल प्रशासन ने कोई सख्त कार्रवाई नहीं की. मामला सामने आने के बाद प्रबंधन ने उल्टा मीडिया की एंट्री पर रोक लगा दी है.
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Indore MYH News: इंदौर के एमवाय अस्पताल में किराए के कर्मचारियों से काम कराए जाने का मामला सामने आने के बाद अस्पताल प्रबंधन पर सवाल उठने लगे हैं. कैजुअल्टी जैसे अहम विभाग में लंबे समय से बाहरी लोगों को 500 रुपए रोज पर काम पर रखा गया, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. मामला उजागर होने के बाद भी जिम्मेदारों ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. उल्टा अब अस्पताल में मीडिया की एंट्री पर ही रोक लगा दी गई है, जिससे प्रबंधन की मनमानी और छिपाई जा सके.
एमवायएच अधीक्षक डॉ. अशोक यादव ने मीडिया बैन करने की वजह कर्मचारियों की शिकायत बताई है. उनका कहना है कि फोटो-वीडियो बनाने से स्टाफ को परेशानी होती है, इसलिए यह कदम उठाया गया. लेकिन सवाल यह है कि अगर सब कुछ सही है, तो फिर मीडिया से डर कैसा? जब अस्पताल में इलाज में गड़बड़ी, एवजियों की भर्ती और मरीजों से दुर्व्यवहार की बातें बाहर आ रही हैं, तब ऐसे प्रतिबंध से शक और भी गहरा हो जाता है.
आराम की तलाश में डॉक्टर
यह प्रतिबंध सिर्फ मीडिया को नहीं, बल्कि मरीजों की आवाज को दबाने की साजिश मानी जा रही है. एमवायएच में अच्छे और सेवा भाव से काम करने वाले डॉक्टर-स्टाफ की कमी नहीं है, लेकिन जो लोग सिर्फ सरकारी नौकरी में आराम की तलाश कर रहे हैं, वे नहीं चाहते कि उनकी लापरवाही बाहर आए. मीडिया पर बैन लगाकर वही लोग बचना चाहते हैं जो खुद ड्यूटी से गायब रहते हैं या मनमानी करते हैं.
मरीजों के साथ बदसलूकी भी
अस्पताल में आए दिन मरीजों के साथ बदसलूकी, इलाज में देरी और रेफर करने के नाम पर खेल उजागर होता रहा है. शव ले जाने के लिए एंबुलेंस माफिया की मनमानी भी कोई नई बात नहीं है. ऐसे में जब मीडियाकर्मी इन बातों को दिखाते हैं, तो उन्हें ही रोकने के आदेश जारी कर दिए गए हैं. यह तय करना अब जरूरी हो गया है कि अस्पताल जनता की सेवा के लिए है या कुछ लोगों की मर्जी का अड्डा बन गया है.
एवजियों को नहीं हटाया गया
इतना बड़ा मामला सामने आने के बावजूद न तो एवजियों को हटाया गया और न ही उनकी पहचान उजागर हुई है. पुलिस को अब तक कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी गई है और चार दिन बीत जाने के बाद भी उन कर्मचारियों के फोटो तक अस्पताल में नहीं लगाए गए हैं. अब जरूरत है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस मामले में सीधा हस्तक्षेप करें, ताकि मरीजों का हक और मीडिया की भूमिका दोनों सुरक्षित रह सकें.
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