Maa Shakambhari Devi Mandir: सहारनपुर के शिवालिक की पहाड़ियों मां शाकंभरी देवी का मंदिर है. सनातनियों के लिए यह मंदिर आस्था का केंद्र है. कहा जाता है कि अगर यहां कोई मुराद मांगी जाए तो जरूर पूरी होती है. ऐसे में जानिए इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानियां और मान्यताएं...
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Maa Shakambhari Devi Mandir: हर मंदिर की अपनी-अपनी पौराणिक कहानियां और मान्यताएं होती हैं. ऐसा ही एक मंदिर सहारनपुर में है, जो सनातनियों के लिए आस्था का केंद्र है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी हाजिरी लगाने आते हैं. जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं वो कोई और नहीं, बल्कि शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित मां शाकंभरी देवी का मंदिर है. मां शाकंभरी को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है. इनकी महिमा का जिक्र दुर्गाशप्तशती में भी किया गया है. यह शक्तिपीठ सहारनपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बेहट क्षेत्र में है. ऐसी मान्यता है कि यहां से कोई भी निराश होकर अपने घर नहीं लौटता.
क्या है पौराणिक कथा?
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान ब्रह्मा से वरदान पाकर दुर्गम नाम के राक्षस ने देवताओं और इंसानों को परेशान करना शुरू कर दिया था. पृथ्वी पर पाप बढ़ने से अकाल पड़ गया. तब देवताओं ने मां शक्ति की तपस्या की तो आदिशक्ति ने देवताओं के संकट हरने का संकल्प लिया और प्रकट हुईं. फिर आदिशक्ति ने युद्ध कर राक्षसों का संहार किया. वहीं, अकाल से वनस्पति भी पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी. तब मां ने पृथ्वी में तीर मारा तो जल धारा फूटी, जिसे अब सिद्धपीठ से कुछ दूरी पर स्थित बाण गंगा के नाम से जाना जाता है. शाकंभरी माता की पौराणिक कथा के अनुसार शाकुम्भरा (शाकंभरी) देवी ने 100 वर्षों तक तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था.
क्यों हुईं शाकंभरी के नाम से प्रसिद्ध?
उस समय पृथ्वी से निकली धार और मां के प्रताप से भारी वर्षा हुई. इससे पृथ्वी हरी-भरी हो गई. मार्कण्डेय पुराण में भी शाकंभरी सिद्धपीठ का जिक्र किया गया है. वनस्पति के उगने से मां ने शाक से देवताओं की उदर पूर्ति की थी. इसलिए आदिशक्ति शाकंभरी के नाम से प्रसिद्ध हुई. माता के गर्भगृह से कुछ दूरी पर रक्तबीज दैत्य का संहार करने वाली माता रक्तदंतिका और दूसरी तरफ माता छिन्नमस्ता देवियों के मंदिर है. यहां भी मां शाकंभरी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं.
कैसा हैं मां का ये स्वरूप?
कहा जाता है शाकंभरी देवी मां दुर्गा का सौम्य अवतार हैं. इन्हे अष्टभुजा से भी दर्शाया गया है. मां शाकंभरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा हैं. वैसे तो देशभर में मां शाकंभरी के कई पीठ हैं, लेकिन शक्तिपीठ सिर्फ एक ही है, जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग में है. वैष्णो देवी से शुरू होने वाली 9 देवी यात्रा में मां चामुण्डा देवी, मां वज्रेश्वरी देवी, मां ज्वाला देवी, मां चिंतपूरणी देवी, मां नैना देवी, मां मनसा देवी, मां कालिका देवी, मां शाकम्भरी देवी सहारनपुर शामिल हैं.
क्या है मंदिर की मान्यता?
मां शाकंभरी के इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री गणेश के साथ मां शाकंभरी, भीमा देवी, भ्राभरी देवी और शताक्षी देवी की प्रतिमाएं हैं. ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस दरबार में आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और उस भक्त के परिवार में सुखी-समृद्ध का वास होता है. मंदिर के पूर्व में बाबा भूरा देव (भगवान भैरव) का मंदिर है. मान्यता है कि मां के दर्शन करने से पहले माता के सेनापति कहे जाने वाले बाबा भैरव के दर्शन करना जरूरी होता है. इससे सिद्धपीठ की यात्रा पूर्ण मानी जाती है. भगवान भैरव के दर्शन किए बगैर भक्तों के लिए शाकुंभरी देवी मंदिर के दर्शन अधूरे हैं.
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मंदिर में दर्शन का समय
साल में नवरात्रि, होली और अन्य मौकों पर मां शाकंभरी मेला लगता है. मेले में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं. मंदिर सुबह पांच बजे से रात्रि 09:30 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है, खास दिनों में मंदिर के समय में बदलाव किया जाता है. यहां पर आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है. इस दौरान यहां मौसम बहुत खुशनुमा होता है. अप्रैल से जून तक यहां गर्मी होती है.
दर्शन के लिए कैसे पहुंचे यहां?
मां शाकंभरी मंदिर के पास सहारनपुर रेलवे स्टेशन है, जो यहां से लगभग 40 किलोमीटर दूर है. अगर आप फ्लाइट से आना चाहते हैं तो आपको देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट जाना पड़ेगा. यह शाकुंभरी देवी मंदिर से लगभग 90 किलोमीटर दूर है. इसके अलावा गाजियाबाद, नोएडा से सीधी रोडवेज बस सेवा शाकंभरी देवी के लिए है. प्राइवेट बसें भी सीधी चलती हैं, जो सहारनपुर से मिल सकती हैं.
डिस्क्लेमर : यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.