भारी बारिश और पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के कारण सतलुज नदी उफान पर, तट पर बसे लोगों पर मंडरा रहा खतरा
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भारी बारिश और पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के कारण सतलुज नदी उफान पर, तट पर बसे लोगों पर मंडरा रहा खतरा

लगातार हो रही बरसात और पहाड़ों पर तेजी से बर्फ पिघलने के कारण सतलुज नदी उफान पर. जलस्तर बढ़ने से सतलुज तट पर बसे लोगों पर भी खतरा मंडरा रहा है. विभिन्न विकासात्मक कार्यों में खुदाई के दौरान निकले मालवे को नदी नालों और सतलुज बेसिन पर फेंकने से भी मुश्किलें बढ़ रही है.

 

भारी बारिश और पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के कारण सतलुज नदी उफान पर, तट पर बसे लोगों पर मंडरा रहा खतरा

Kinnaur News(विशेषर नेगी): मौसम बरसात में प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. इसके पीछे कहीं ना कहीं मानवीय भूल व प्रकृति से छेड़छाड़ भी है. लोगों का कहना है कि पिछले अनुभवों को देखते हुए नदी नालों के किनारे रिहाइश एवं खुदाई नहीं होनी चाहिए ताकि प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सके. नदी नालों को विकराल रूप धारण कराने में विभिन्न विकासात्मक कार्यों के दौरान निकले मलवे को नदी नालों और सतलुज तट को डंपिंग यार्ड बनाना भी एक कारण बनता जा रहा है. 

लोगों का कहना है की सतलुज नदी घाटी में चाहे वह 31 जुलाई 2000 की भयंकर बाढ़ हो या फिर 2005 मंजर, जिस में निजी एवं सरकारी संपत्ति के साथ जान माल का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ. लेकिन उस नुकसानी के अनुभवों को भूलकर फिर से लोग नदी नालों के किनारे या सतलुज तट पर बसना एवं अन्य व्यावसायिक गतिविधियां चलाने लगे हैं. जो बरसात में खतरे को न्योता दे रहे है. 

बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि विभिन्न विकासात्मक कार्यों के दौरान खुदाई से निकले मलबे को ठिकाने लगाने के लिए सतलुज तट या नदी नालों को डंपिंग यार्ड बनाया जाता है. जिस का मलवा बाद में पानी के साथ बह कर बाढ़ का रूप धारण कर रहा है. इस दिशा में भी सरकार को सख्ती से पेश आना होगा. लोगों का कहना है कि सतलुज तट अथवा डेंजर जोन में ना तो निर्माण की अनुमति होनी चाहिए और ना ही अवैध रूप से मालवा डंपिंग की किया जाना चाहिए. लेकिन यह सब कार्य सतलुज तट पर धड़ल्ले से हो रहा है.

रामपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश नेगी ने बताया कि हर साल बरसात के मौसम में कुछ ना कुछ नुकसान अवश्य होता है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से प्रकृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि 31 जुलाई 2000 की सतलुज बाढ़ के भयानक मंजर को उन्होंने अपनी आंखों से देखा है. जिसमें सैकड़ो लोगों की जान गई। किन्नौर, रामपुर आसपास में जो सतलुज नदी ने जो तांडव मचाया वह किसी से छुपा नहीं है. फिर 2005 में भी सतलुज बाढ़ ने तबाही मचाई. बावजूद इसके लोग सतलुज नदी पर तट पर घर बनाने या वैज्ञानिक गतिविधियों को करने से नहीं चूक रहे हैं. उन्होंने बताया कि पहले लोगों को अपने आप सचेत होना होगा ताकि जान माल की हानि ना हो. सरकार का काम सहायता पहुंचाना बाद में है. लेकिन उससे पहले अपने आप को सुरक्षित रखना है. इस तरह लापरवाही पूर्ण नुकसानियो से जहां राष्ट्र को भी नुकसान हो रहा है वही विकास भी प्रभावित होता है.

किसान नेता प्रेम चौहान ने बताया कि वे लोगों से अपील कर रहे हैं कि सतलुज का जलस्तर बड़ा है, नदी तट पर ना जाएं और सुरक्षित रहें. लेकिन सरकार और प्रशासन से भी वे निवेदन और अपील करते हैं कि जिस तरीके से नदी नालों और सतलुज तट को डंपिंग साइड बनाया जा रहा है. ये नुकसानियों का कारण बन रहा है. इस से नदी नालों को भयानक रूप धारण करने में सहायता मिल रही है. पिछले अनुभव जिस तरह से व्यास नदी अवैध डंपिंग से विकराल रूप धारण कर गया. उसी तरह सतलुज नदी पर भी निर्माणाधीन परियोजनाओं से निकले मलवे को फेंकना भी नुकसानी का कारण बन रहा है.

दत्तनगर के रहने वाले सुधीर ने बताया कि रामपुर से नित्थर को जाने वाली सड़क बॉयल के समीप सतलुज नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण अवरुद्ध हो रहा है. इसका एक कारण कुर्पन खड्ड में जो पिछले साल बाढ़ आई थी, तब उसमें भारी मलवा आया था. समय पर अगर सतलुज नदी से इस मलवा को हटाया जाता तो सतलुज का बहाव न मुड़ता. आने वाले समय में अगर यह स्थिति रही तो सड़क के साथ-साथ लोगों के खेत खलियानों को भी काफी नुकसान होगा.

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