भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड का जवैनिया गांव गंगा की बाढ़ से पूरी तरह तबाह हो गया है. करीब 300 घर बाढ़ में बह गए हैं और लोग अब बांध पर तंबू लगाकर जीने को मजबूर हैं. प्रभारी मंत्री गांव का निरीक्षण करने पहुंचे लेकिन बाढ़ की स्थिति देखकर लौट गए, जिससे ग्रामीणों में नाराजगी है.
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भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड का जवैनिया गांव आज गंगा की बाढ़ का सबसे बड़ा शिकार बन गया है. तेज बहाव और कटाव के कारण गंगा ने गांव को लगभग पूरी तरह से निगल लिया है. गांव के करीब 300 घर बाढ़ में समा गए हैं. अब यह गांव मानचित्र पर धीरे-धीरे मिटता हुआ नजर आ रहा है.
जवैनिया गांव के लोग अब अपने उजड़े घरों से बेघर होकर शाहपुर प्रखंड के बांधों पर तंबू लगाकर जीवन गुजार रहे हैं. प्रशासन की तरफ से खाने-पीने और अन्य राहत सामग्री की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन हालात अभी भी बेहद गंभीर हैं.
आज जिले के प्रभारी मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता, जिलाधिकारी तनय सुल्तानिया और पुलिस कप्तान राज सहित कई प्रशासनिक अधिकारी जवैनिया गांव का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे. लेकिन बाढ़ का विकराल रूप देखकर मंत्री गांव तक नहीं पहुंच सके और बीच रास्ते से ही लौट गए.
प्रभारी मंत्री ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सरकार की ओर से पीड़ित ग्रामीणों को हर संभव सहायता दी जा रही है. जल्द ही उनके रहने की स्थायी व्यवस्था भी की जाएगी. सरकार गंभीरता से स्थिति पर नजर रखे हुए है.
हालांकि मंत्री के गांव तक न पहुंचने को लेकर ग्रामीणों में गहरी नाराजगी देखी गई. ग्रामीणों का कहना है कि मंत्री ने सिर्फ दूर से ही बाढ़ देखी और लौट गए. उन्होंने गांव में आकर हालात की समीक्षा नहीं की. यह व्यवहार पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है.
जिलाधिकारी तनय सुल्तानिया ने बताया कि जवैनिया के प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है और राहत शिविरों में भोजन, पानी, दवाइयों और अन्य जरूरी चीजों की व्यवस्था की गई है. साथ ही प्रशासन संभावित खतरे को देखते हुए अलर्ट मोड में है.
इस साल गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे भोजपुर समेत आसपास के कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं. जवैनिया गांव की हालत बेहद दयनीय है और विशेषज्ञों के अनुसार अगर जलस्तर नहीं घटा, तो और भी गांवों पर खतरा मंडरा सकता है.
अब जरूरत है कि इन पीड़ितों के लिए स्थायी पुनर्वास की व्यवस्था जल्द से जल्द की जाए. सरकार ने भरोसा तो दिलाया है, लेकिन इन वादों को अमल में लाने की जिम्मेदारी प्रशासन और नेताओं की है.
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