मनिहारी विधानसभा क्षेत्र बिहार के कटिहार जिले का एक महत्वपूर्ण, लेकिन उपेक्षित इलाका है जो हर साल बाढ़, कटाव और पलायन जैसी समस्याओं से जूझता है. यहां न तो कोई सरकारी डिग्री कॉलेज है, न ही रोज़गार के साधन.
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कटिहार जिले की 67 नंबर अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित मनिहारी विधानसभा सीट का बड़ा हिस्सा गंगा और महानंदा नदी से घिरा हुआ है. इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ही यहां की सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. हर साल आने वाली बाढ़ और नदी कटाव की वजह से सैकड़ों परिवारों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. मनिहारी, अमदाबाद और मनसाही प्रखंड क्षेत्र इस विधानसभा क्षेत्र में आते हैं, जहां बाढ़ के साथ-साथ पुनर्वास की समस्या भी बनी हुई है.
इस क्षेत्र में आज भी एक भी सरकारी डिग्री कॉलेज नहीं है, जिसके कारण हज़ारों छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए बाहर पलायन करना पड़ता है. स्थानीय युवाओं के लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा संकट बनकर सामने आया है. फैक्ट्री, स्किल सेंटर या किसी भी प्रकार की औद्योगिक पहल न होने के कारण यहां के नौजवान बड़ी संख्या में दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं.
इस सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो 3 लाख 11 हजार 600 मतदाता हैं, जिनमें मुस्लिम समुदाय 37.5% के साथ निर्णायक भूमिका में है. एसटी वोटर 14%, ईबीसी 20%, ओबीसी 18% हैं. अनुसूचित जाति 7.38% और सवर्ण वर्ग महज 2.7% हैं. इस जातीय बनावट के कारण हर पार्टी को रणनीति बनाकर चलना पड़ता है.
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह ने जदयू के शंभु कुमार सुमन को 21,209 वोटों से हराया था. इससे पहले 2015 और 2010 में भी मनोहर सिंह विजयी रहे हैं. हालांकि इस बार मुकाबला दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि कांग्रेस, जदयू, भाजपा, राजद, एआईएमआईएम, झामुमो, जनसुराज और कई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं. कांग्रेस से जहां एक बार फिर मनोहर सिंह और उनके बेटे चिन्मय अतीत सिंह दावेदार हैं, वहीं जदयू से शंभु सुमन और मुकेश उरांव जैसे नामों की चर्चा है.
जनता की मांगें काफी स्पष्ट हैं, गंगा पर पुल निर्माण, अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता, डिग्री कॉलेज की स्थापना, तेजनारायणपुर से भालूका रोड स्टेशन तक नई रेलवे लाइन, और पलायन रोकने के लिए स्थानीय रोजगार का सृजन. स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी ग्रामीण असंतुष्ट हैं.
मनिहारी सिर्फ राजनैतिक नहीं, सांस्कृतिक दृष्टि से भी खास है. यह बांग्ला साहित्य के पद्मश्री से सम्मानित बलाईचंद मुखोपाध्याय की जन्मभूमि है. यहां मशहूर फिल्म ‘वंदनीय’ की शूटिंग भी हुई थी. गंगा नदी के किनारे स्थित मनिहारी घाट की ऐतिहासिक महत्ता है और भविष्य में साहिबगंज से पुल बन जाने के बाद इसका व्यावसायिक महत्व और बढ़ेगा.
इतनी पुरानी और ऐतिहासिक पहचान रखने के बावजूद, आज भी मनिहारी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है. जनप्रतिनिधियों से लेकर सरकारी सिस्टम तक, सब पर लोगों का भरोसा टूटता जा रहा है. चुनावी वादों का हकीकत में उतरना अब जनता की सबसे बड़ी कसौटी है.
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