लालू यादव के 'मायाजाल' में अब नहीं आएगी कांग्रेस! जातीय जनगणना की तरह माई बहिन योजना का क्रेडिट भी खतरे में
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लालू यादव के 'मायाजाल' में अब नहीं आएगी कांग्रेस! जातीय जनगणना की तरह माई बहिन योजना का क्रेडिट भी खतरे में

Congress Vs RJD: बिहार में समाजवादी नेताओं ने सबसे पहले जातीय जनगणना की आवाज बुलंद की थी. अब जातीय जनगणना को कांग्रेस ने पूरी तरह हाईजैक कर लिया है और मोदी सरकार पर अपनी बड़ी जीत करार दे रही है. अब तेजस्वी यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट माई बहिन योजना का क्रेडिट भी कांग्रेस हथियाना चाहती है.

लालू यादव के 'मायाजाल' में अब नहीं आएगी कांग्रेस! जातीय जनगणना की तरह माई बहिन योजना का क्रेडिट भी खतरे में
लालू यादव के 'मायाजाल' में अब नहीं आएगी कांग्रेस! जातीय जनगणना की तरह माई बहिन योजना का क्रेडिट भी खतरे में

Congress RJD Relation: यह कहने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए कि कांग्रेस ने अपना चोला बदला है. खासतौर से बिहार को ध्यान में रखें तो निश्चित रूप से राहुल गांधी और उनकी पार्टी बहुत सधी हुई चाल चलते दिख रहे हैं. पहले कांग्रेस प्रभारी के रूप में कृष्णा अल्लावुरु की नियुक्ति और फिर प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह राजेश राम को मौका देकर जहां दलितों को एक संदेश देने की कोशिश की गई है, वहीं लालू प्रसाद यादव को भी यह मैसेज देने की कोशिश की गई है कि अब कांग्रेस में उनकी नहीं चलने वाली. इससे पहले कांग्रेस के प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष किसे होना चाहिए, इसके लिए लालू प्रसाद यादव का सुझाव अहम होता था. खैर, उसके बाद कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने बिहार के जातीय जनगणना को धोखा करार दे दिया. वहीं जातीय जनगणना, जिसका क्रेडिट लेते हुए तेजस्वी यादव अघाते नहीं हैं. अब माई बहिन योजना को देख लीजिए. जिस योजना का ऐलान 14 दिसंबर, 2024 को तेजस्वी यादव ने किया था, कांग्रेस ने इसे रिलांच कर दिया है और इसे राहुल गांधी का ड्रीम बताया है. और तो और इस प्लान को लेकर रजिस्ट्रेशन भी जल्द शुरू करने का ऐलान कर दिया है. इस तरह कांग्रेस ने अंदरखाने ही सही, लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को कड़ा मैसेज दिया है.

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पिछले दिनों महागठबंधन की समन्वय समिति का गठन किया गया था. समिति की अध्यक्षता तेजस्वी यादव को मिली थी. इसके बाद राजद आश्वस्त हो गई थी कि महागठबंधन में लालू परिवार की ही चलने वाली है. कांग्रेस ने भी थोड़ी देर के लिए ऐसा कुछ होने का संकेत दिया था, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा. कांग्रेस अपने सहयोगी दल राजद के लिए कुछ भी नरमी बरतने के मूड में नहीं दिख रही है. पहले राहुल गांधी ने अपने बिहार दौरे में जातीय जनगणना को फर्जी करार दे दिया था. इससे राजद काफी परेशान रहा. उसके बाद अब जिस योजना का ऐलान तेजस्वी यादव ने पिछले साल के अंत यानी दिसंबर में ही कर डाला था, उस योजना को फिर से रिलांच कर डाला. यह क्रेडिट वार दिखा रहा है कि महागठबंधन में दलों के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है.

माई बहिन योजना में मान शब्द जोड़ने के लिए महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा को दिल्ली से पटना आना पड़ा. कांग्रेस की ओर से रिलांच किए गए तेजस्वी के वादे के अनुसार, सरकार में आने पर हर महिला को प्रति महीने ढाई हजार रुपये देने का ऐलान किया गया. राजद के रणनीतिकार जब तक कांग्रेस के इस हाईजैकिंग के खिलाफ कुछ सोचते, कांग्रेस ने इसके लिए नामांकन शुरू कराने तक का ऐलान कर दिया. फिर क्या था, राजद के रणनीतिकारों को काटो तो खून नहीं वाला हाल हो गया. हालांकि, पार्टी के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर गाल बजाते रहे कि यह सब तेजस्वी यादव की योजना को मिली सर्वस्वीकार्यता का नतीजा है और कांग्रेस के ऐलान से जाहिर है कि अब यह केवल राजद का ऐलान नहीं रह गया, बल्कि महागठबंधन ने भी इसे अपना लिया है.

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दरअसल, महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों में ऐसी ही योजनाओं को मिली सफलता को देखते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी आनन फानन 14 दिसंबर को माई बहिन योजना का ऐलान किया था और वादा किया था कि सत्ता में आने पर इसे हर हाल में लागू किया जाएगा. तब तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस को विश्वास में नहीं लिया था और अब तक कांग्रेस माई ​बहिन योजना में मान शब्द जोड़कर इसे हाईजैक कर चुकी है, तब उसने राजद के नेताओं को विश्वास में नहीं लिया. इससे यह बात जाहिर होता है कि दोनों दलों के नेताओं में एक दूसरे को लेकर किस कदर अविश्वास है. कांग्रेस ने माई बहिन मान योजना का ऐलान करते हुए कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में ऐसी ही योजना की सफलता का रेफरेंस भी दे दिया. 

अब सवाल उठता है कि कांग्रेस ने तेजस्वी यादव की घोषणा को हाईजैक क्यों किया? घोषणा चाहे तेजस्वी यादव करें या फिर कांग्रेस का कोई नेता, लाभ तो महागठबंधन को ही मिलना है. फिर यह रस्साकशी क्यों? दरअसल, कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में यह दिखाना चाहती है कि सारे निर्णय लालू परिवार ही नहीं ले सकता. कुछ फैसले वह भी करना चाहती है और वह करेगी भी. कांग्रेस यह भी संदेश देने की कोशिश कर रही है कि अगर उसे इग्नोर किया गया तो वह चुप नहीं बैठेगी. 

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इससे पहले महागठबंधन के सभी रणनीतिक फैसले लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार करता आया है. लोकसभा चुनाव के मौके पर भी सीटों के तालमेल को लेकर दोनों दलों में खटास पैदा हुई थी. उसी के बाद जाहिर हो गया था कि आगे की राह आसान नहीं होने वाली. कांग्रेस की यह रणनीति इसलिए भी अहम हो जाती है कि राजद उसे विधानसभा की 50 सीटें ही लड़ने के लिए देना चाहती है, जबकि कांग्रेस अपनी पसंद की 70 सीटों से कम पर लड़ने के मूड में कतई नहीं है. अब देखना है कि कांग्रेस अपनी जिद से पीछे हटती है या फिर राजद को अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करनी पड़ेगी.

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