जिद, जुनून, एवरेस्ट और विनीता: 21 जून को जन्मी नारी शक्ति की मिसाल, जब लहराया था दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा
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जिद, जुनून, एवरेस्ट और विनीता: 21 जून को जन्मी नारी शक्ति की मिसाल, जब लहराया था दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा

Vinita Soren: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के साथ-साथ 21 जून को हम एक और असाधारण शख्सियत, विनीता सोरेन का जन्मदिन मनाते हैं. यह वो दिन है जब एक युवा आदिवासी महिला ने दुनिया के सर्वोच्च शिखर को छूकर यह साबित कर दिया कि सपनों की ऊंचाई किसी सामाजिक सीमा में बंधी नहीं होती.

 

21 जून को जन्मी विनीता ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर लहराया था तिरंगा (File Photo)
21 जून को जन्मी विनीता ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर लहराया था तिरंगा (File Photo)

International Yoga Day: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के साथ ही, 21 जून को हम एक असाधारण महिला, विनीता सोरेन का जन्मदिन मनाते हैं. विनीता ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह कर यह साबित किया कि सपनों की कोई सीमा नहीं होती, खासकर जब वे सामाजिक बाधाओं से बंधे हों. झारखंड के एक छोटे से गांव से निकलकर, विनीता आज पूरे देश की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं.

सपनों से एवरेस्ट तक का सफर
21 जून, 1987 को जन्मी विनीता ने न सिर्फ माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की, बल्कि अपने अदम्य जुनून, जज्बे और दृढ़ संकल्प से भारतीय आदिवासी समाज को एक नई पहचान भी दी. झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड के केसोरसोरा गांव की मूल निवासी विनीता का जीवन अन्य आदिवासी लड़कियों जैसा ही था - खेतों में काम, सीमित शिक्षा और सीमित सपने, लेकिन विनीता के सपने एवरेस्ट से भी ऊंचे थे.

टाटा स्टील के सीएसआर कार्यक्रम के तहत एडवेंचर एक्टिविटी के बारे में जानना उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. परिवार के विरोध और प्रोत्साहन की कमी के बावजूद विनीता ने हार नहीं मानी. उन्होंने कई कठिन परीक्षण पास किए और इस दिशा में आगे बढ़ती गईं. इसी दौरान उनकी मुलाकात भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल से हुई, जिन्होंने विनीता की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें सही मार्गदर्शन दिया.

एवरेस्ट फतह, एक ऐतिहासिक क्षण
20 मार्च, 2012 को विनीता ने अपने दो साथियों, मेघलाल महतो और राजेंद्र के साथ जमशेदपुर से एवरेस्ट अभियान शुरू किया. यह कोई सामान्य अभियान नहीं था, क्योंकि उन्होंने एवरेस्ट फतह के लिए सबसे कठिन मार्ग, लुकला रूट चुना था. बर्फीली हवाओं, जानलेवा ठंड, शरीर के कमजोर पड़ने और जान गंवाने के खतरों के बावजूद विनीता डटी रहीं. आखिरकार, 26 मई, 2012 को सुबह 6:50 बजे, विनीता और मेघलाल ने एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा शान से फहराया.

विनीता बताती हैं कि उनका बचपन खेतों, सीमाओं और सीमित सोच के दायरे में बीता. उनके अनुसार, यहां लड़कियों के लिए शिक्षण या नर्सिंग को ही करियर माना जाता था, लेकिन मेरा सपना कुछ अलग था. एवरेस्ट फतह करने से पहले उन्हें सात साल की कठोर मेहनत करनी पड़ी. उन्होंने सीखा कि पर्वतारोहण सिर्फ शारीरिक ताकत नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प की परीक्षा है.

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प्रेरणा का प्रतीक
आज विनीता सिर्फ एक पर्वतारोही नहीं हैं, बल्कि भारत के आदिवासी समुदाय की बेटी, महिला शक्ति का प्रतीक और नई पीढ़ी के लिए एक आदर्श हैं. उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि जितनी ऊंची चुनौती, उतनी ही ऊंची जीत. विनीता सोरेन की कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो अपने सपनों को पूरा करने का साहस रखते हैं, चाहे कितनी भी बाधाएं क्यों न हों.

इनपुट: आईएएनएस

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