MP News: हिंदी में MBBS की पढ़ाई फ्यूचर के लिए टेंशन! करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं मिली कामयाबी
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MP News: हिंदी में MBBS की पढ़ाई फ्यूचर के लिए टेंशन! करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं मिली कामयाबी

MP News: मध्य प्रदेश में हिंदी भाषा में मेडिकल की पढ़ाई तो शुरू हो गई है. लेकिन इससे छात्रों को अपना फ्यूचर सेफ नहीं दिख रहा है. जानकारों का कहना है कि इससे उन छात्रों को आगे दिक्कत होगी, जिसे विदेश में जाकर पढ़ाई करना होगा. 

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

Bhopal News: देशभर में एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में करने का  तमगा मध्य प्रदेश ने हासिल तो कर लिया है. लेकिन यह प्रोजेक्ट कामयाब होता नहीं दिख रहा है. सरकार ने 10 करोड़ रुपए खर्च करके किताबें तो हिंदी में छपवा ली. लेकिन किसी भी छात्र ने परीक्षा में सवालों का जबाव हिंदी में नहीं लिखा. हिंदी में एमबीबीएस की परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए परीक्षा शुल्क में भी छूट और इनाम देने की घोषणा की गई. इसके बावजूद भी किसी ने हिंदी में उत्तर नहीं दिया.

3 साल पहले शुरू हुई थी पढ़ाई
दरअसल, 3 साल पहले 2022 में बहुत जोर-शोर से मध्य प्रदेश हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की गई थी. यही नहीं खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदी में ट्रांसलेटेड किताबों का आकर विमोचन किया था. उस वक्त यह दावा किया गया था कि इससे उन छात्र को विशेष फायदा होगा, जो हिंदी मीडियम से पढ़ाई कर मेडिकल कोर्स के लिए एडमिशन लेते हैं. लेकिन मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई भी स्टूडेंट्स मेडिकल में पीजी, रिसर्च और विदेश में जाकर आगे की पढ़ाई करना चाहता है, तो हिंदी मीडियम की वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडे़गा.

मेडिकल कॉलेज के स्टू़डेंटस हिंदी की बजाय अंग्रेजी को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है कि उन्हें अपना फ्यूचर भी देखना है. हालांकि, भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज की डीन के मुताबिक, पाठ्यक्रम हिन्दी में होने के बाद से पढ़ाने के तरीके में कोई खास बदलाव नहीं आया है

हिंदी वाले भी लिख रहें अंग्रेजी में उत्तर
मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले एक छात्र से जब स्थानीय मीडिया ने बातचीत की तो उसने बताया कि 12वीं और NEET का एग्जाम भी हिन्दी में ही दिया था. उसे मेडिकल में एडमिशन तो मिल गया. लेकिन डर था कि पढ़ाई कैसा करूंगा. लेकिन जब यहां आया तो देखा कि टीचर छात्रों से हिंदी में ही संवाद करते हैं. इससे मेरा डर निकल गया. अंग्रेजी की किताबों को ही हिंदी में ट्रांसलेट किया गया था. लेकिन आगे चलकर मैनें अंग्रेजी की किताबें पढ़नी शुरू की. इसके बाद से एग्जाम भी अंग्रेजी में दिया. छात्र ने बताया कि मैं भले ही हिंदी मीडियम से आया. लेकिन तीन साल में एक भी बार हिंदी में एग्जाम नहीं दिया. 

सोर्स-दैनिक भास्कर

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