CG News: बिलासपुर के एक स्कूल में समर कैंप के नाम पर छात्राओं से झाड़ू-पोंछा करवाए जाने का मामला सामने आया है. जहां छात्राओं के हाथ में कॉपी, पेन, बॉल होनी चाहिए थी, वहीं इन छात्राओं से स्कूल की साफ-सफाई करवाई जा रही है.
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Bilaspur Summer Camp News: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे पढ़कर हर अभिभावक अपने बच्चे को स्कूलों में आयोजित होने वाले समर कैंप में भेजने से पहले सोचेगा. दरअसल, एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. जिसमें देखा जा सकता है कि कैसे कुछ बच्चियां हाथों में बॉल या पेंट ब्रश के बजाय झाड़ू और पोछा लिए स्कूल की साफ-सफाई कर रही हैं. वहीं, हेडमास्टर का कहना है कि स्वीपर की जगह बच्चे खुद से ही स्कूल को साफ कर रहे थे.
क्या है पूरा मामला
ये पूरा मामला बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक का बताया जा रहा है, जहां लोक शिक्षण संचालनालय (Directorate of Public Instruction) ने भीषण गर्मी के चलते स्कूलों की छुट्टी कर सभी जिलों में समर कैंप लगाने का आदेश जारी किया था. हालांकि, समर कैंप में हिस्सा लेना बच्चों की इच्छा पर निर्भर था. उन कैंप्स का उद्देश्य बच्चों की प्रतिभा को निखारना और उन्हें रचनात्मक गतिविधियों( creative activites) से जोड़ना था, लेकिन स्कूल से कुछ और ही तस्वीर सामने आई है. ड्राइंग-पेंटिंग और खेल-कूद जैसे गतिविधियां कराने के बजाय बच्चे स्वीपर का काम करते दिखाई दिए हैं.
वायरल वीडियो में दिखी बच्चियां
इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल किया जा रहा है. ना सिर्फ इसलिए कि बच्चे स्कूल में झाड़ू-पोछा कर रहे हैं, बल्कि इसलिए कि बच्चों को शिक्षा के मंदिर में शैक्षणिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के बजाय साफ-सफाई करवाई जा रही है. वीडियो में 3-4 बच्चियां हाथ में झाड़ू और पोछा लिए स्कूल के फर्श को साफ करते दिखाई दे रही हैं, वहीं उनमें एक स्कूल का छात्र भी शामिल है. वीडियो वायरल होने से सिस्टम पर कई बड़े सवाल उठाए जा रहे हैं.
हेडमास्टर ने दिया अपना बयान
वीडियो के वायरल होते ही जब हेडमास्टर से इस घटना के बारे में सवाल किया गया तो उनका जवाब कुछ पेचीदा सा था. मास्टर ने बताया कि वे लोग देरी से स्कूल पहुंचे थे. स्वीपर का घर पास में है, लेकिन वो आया नहीं था, तो बच्चे खुद ही स्कूल की साफ-सफाई में लग गए. उन पर किसी ने जोर-जबरदस्ती या दबाव नहीं बनाया था. मामले की जानकारी मिलते ही अभिभावकों और सामाजिक संगठनों में आक्रोश फैल गया है. अब प्रशासनिक स्तर पर जांच की बात कही जा रही है, लेकिन सवाल ये है कि बाल श्रम का पाठ पढ़ाने वाले इन स्कूलों की स्थिति कब तक सुधरेगी और इन नन्हें हाथों पर उज्जवल भविष्य की आड़ में कब तक ऐसा काम करवाया जाएगा.
रिपोर्ट- शैलेन्द्र सिंह ठाकुर, जी मीडिया, बिलासपुर