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रोंगटे खड़े कर देने वाली होली! इस गांव में लोग अंगारों पर चलकर मनाते हैं त्यौहार!

MP Unique Holi 2025: 14 मार्च 2025 को पूरे भारत में धूम-धाम के साथ होली का त्योहार मनाया जाएगा. घरों को साथ बाजारों में भी होली की रौनक दिखने लगी है. पकवानों और गुलाल से बाजार रंग चुके हैं. आपको बता दें कि देश भर में होली का त्यौहार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. हर जगह अलग ढंग से  त्योहारों को मनाने का तरीका उनके परंपरा और संस्कृति को दिखाता है. ऐसा ही एक अजीबोगरीब तरीका मध्य प्रदेश में भी देखा गया है. क्या है वो ढंग पढ़े इस खबर में...

 

होली का त्योहार

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होली का त्योहार

14 मार्च को पूरे देश में होली मनाई जाएगी. हर घर गली- मौहल्ला रंगो से रंगा हुआ दिखाई देगा. भारत के कोने -कोने में बुरा न मानो हाली है कतहे लोग दिखाई देंगे. लेकिन क्या आपको पता है रंगो के इस त्योहार होली को मनाने का तरीका हर जगह एक जैसा नहीं होता.

 

आस्था या ख़तरा

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आस्था या ख़तरा

देश के अलग- अलग राज्यों के अलग- अलग कोने में होली खेलने का तरीका अलग होता है. कुछ तरीके तो ऐसे होते हैं जिन्हें सुन कर आप कहेंगे, आस्था है या ख़तरा!

 

अजीब प्रथा

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अजीब प्रथा

दरअसल, मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में होली पर आदिवासी दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं. महिला हो या पुरुष या फिर बच्चे और बुजुर्ग सभी इस परंपरा को निभाते दिखाई देते हैं. लेकिन आखिर क्यों?

 

चुल और होली का संबंध

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चुल और होली का संबंध

झाबुआ जिले के करवड, टेमरिया, सारंगी और रायपुरिया इलाकों में चुल या धुलेटी पर्व मनाया जाता है.  चुल का मतलब होता है दहकते अंगारों पर चलना. यहां के स्थानीय भाषा में इस परंपरा को चुल कहा जाता है.

 

क्या है मान्यता

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क्या है मान्यता

दरअसल, धुलेटी पर्व की शाम सैकड़ों मन्नत धारी दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलकर अपनी मन्नत रखते हैं. इन मन्नत धारियों में बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग भी शामिल होते हैं. मान्यताओं के अनुसार मन्नत धारी ''हिंगलाज माता'' की मन्नत लेते हैं. जब उन्हें लगता है कि उनकी फरियाद हिंगलाज माता ने पूरी कर दी है तो वे बाक़ायदा नंगे पैर दहकते अंगारों पर चलकर अपनी मन्नत उतारते हैं.

 

गांव का सलामती

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गांव का सलामती

ऐसा भी कहा जाता है कि गांव में किसी दैवी य शक्ति या प्रकोप और आपदा को तालने के लिए भी गांव के लोग धहकते आग पर चलते हैं.

 

सालों से चली आ रही प्रथा

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सालों से चली आ रही प्रथा

सालों-साल से इस परंपरा को निभाया जा रहा है. गांव के लोगों का कहना होता है कि माता की कृपा से हर कोई धहकते अंगारो को पार कर लेता है. गांव वाले बताते हैं कि इस प्रथा को पूरा करने के लिए हजारों लोगों को जमावड़ा लगता है.

 

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