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Vidisha: बीजामंडल मंदिर है या मस्जिद? नए संसद भवन से मिलता-जुलता है डिज़ाइन, जानें इतिहास

Vidisha Bijamandal History: मध्य प्रदेश के विदिशा ज़िले में स्थित बीजामंडल काफ़ी चर्चा में है. इसे लेकर आज भी सवाल उठते हैं कि यह मंदिर है या मस्जिद. क्योंकि पिछले साल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम ने एक पत्र जारी कर बताया था कि यह मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है, जिसे लेकर खूब विवाद हुआ था. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इसका डिज़ाइन नए संसद भवन से मिलता-जुलता है.  ऐसे में लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं कि क्या बीजामंडल वाकई मस्जिद है या मंदिर. आइए जानते हैं इसका इतिहास.

 

बीजामंडल मंदिर है या मस्जिद?

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बीजामंडल मंदिर है या मस्जिद?

बीजामंडल मंदिर है या मस्जिद, यह विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है. क्योंकि 29 जुलाई को नाग पंचमी है और इस दौरान इसे खोलने की मांग उठ रही है. इसे लेकर दावा किया जाता है कि नए संसद भवन का निर्माण इसी मंदिर की तर्ज पर किया गया है.

 

नए संसद भवन से मिलता-जुलता है डिज़ाइन

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नए संसद भवन से मिलता-जुलता है डिज़ाइन

बीजामंडल मंदिर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं.  इसी मंदिर को लेकर  कहा गया था कि नए संसद भवन का आकार बिल्कुल इसी मंदिर जैसा है. तस्वीरों में समानता के चलते लोगों का कहना है कि नए संसद भवन का डिज़ाइन विदिशा स्थित परमारकालीन विजय सूर्य मंदिर के मॉडल पर बना है.

 

क्या है विजय सूर्य मंदिर का इतिहास

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क्या है विजय सूर्य मंदिर का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार, बीजामंडल प्राचीन काल में विजय सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता था. इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में परमारकालीन शासक कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने करवाया था.

 

मुगल शासकों ने किया हमला

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मुगल शासकों ने किया हमला

इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 150 गज थी. बता दें कि मंदिर के पत्थरों पर परमार काल के राजाओं की कहानियां उकेरी गई थी. लेकिन, समय बदला और इस मंदिर पर मुगल शासकों ने कई बार आक्रमण किए.

 

11 तोपों से हमला

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11 तोपों से हमला

इतिहासकारों के अनुसार, औरंगज़ेब ने इस मंदिर पर 11 तोपों से हमला किया था. इसके बाद इस पर एक मस्जिद बनवाई गई. इसके बाद यहां नमाज़ अदा की जाने लगी. हालांकि कुछ समय बाद यह मराठा शासकों के नियंत्रण में आ गया, जिन्होंने यहां नमाज़ अदा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

 

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इतिहासकारों के अनुसार मराठा शासकों ने इसकी देखभाल नहीं की, जिसके कारण यह स्थान सुनसान हो गया था. कहा जाता है कि  20वीं शताब्दी में यहां बाढ़ आई जिससे यह पानी में डूब गया. हालांकि बाढ़ के बाद यह मंदिर एक मैदान जैसा दिखने लगा था.  जिसके बाद 1934 में इसकी खुदाई करवाई गई जहां मंदिर के कुछ अवशेष मिले थे.

 

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