Supreme Court on Interfaith Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में हिंदू लड़की से शादी करने के आरोप में जेल में बंद मुस्लिम युवक को जमानत दे दी है. कोर्ट ने साफ किया कि दो वयस्क अगर आपसी सहमति से साथ रहते हैं तो अलग धर्म के होने भर से उन पर आपत्ति नहीं जताई जा सकती. कोर्ट का फैसला धामी सरकार के एक तरफा कार्रवाई को बयां करती है.
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Uttarakhand Interfaith Marriage: उत्तराखंड की एक हिंदू लड़की से शादी करने पर जेल में बंद मुस्लिम लड़के को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है. मुस्लिम लड़के के जमानत की अर्जी मंजूर करते हुए देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि दो वयस्कों के आपसी सहमति से साथ रहने पर सिर्फ इस आधार पर आपत्ति नहीं जताई जा सकती कि वे अलग-अलग धर्मों के हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मुस्लिम युवक को जमानत दे दी, जो लगभग छह महीने से जेल में बंद था. जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आरोपी के जरिये दायर अपील पर यह फैसला महत्वपूर्ण फैसला सुनाया.
गौरतलब है कि फरवरी 2025 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस शख्स को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मुस्लिम नौजवान को पहले उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के तहत अपनी धार्मिक पहचान छिपाने और हिंदू महिला से धोखाधड़ी कर शादी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. मुस्लिम युवक पर की गई कार्रवाई और पेश की घटना की थ्योरी पर सवाल खड़े होने लगे हैं.
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, "राज्य को अपीलकर्ता (मुस्लिम युवक) और उसकी पत्नी के साथ रहने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. खासकर तब, जब उनकी शादी उनके माता-पिता और परिवार वालों की मर्जी के मुताबिक हुई है." पीठ ने आगे यह भी कहा कि इस मामले में आगे की कानूनी कार्यवाही उनके साथ रहने की राह में कोई बाधा नहीं बनेगी. अदालत ने इस तथ्य पर जोर देते हुए आरोपी को ज़मानत दी कि वह लगभग छह महीने से जेल में है और मामले में आरोप पत्र भी पहले ही दाखिल किया जा चुका है
कोर्ट को यह भी बताया गया कि यह शादी दोनों परिवारों की पूरी जानकारी और उनकी मौजूदगी में हुई थी. याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में बताया कि शादी के अगले ही दिन सिद्दीकी (मुस्लिम युवक) ने एक हलफनामा दिया था. इस हलफनामे में उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपनी बीवी को मजहब बदलने के लिए मजबूर नहीं करेगा और वह अपने धर्म का पालन करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होगी.
अदालत में याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि बाद में कुछ व्यक्तियों और संगठनों के जरिये इस अंतरधार्मिक विवाह पर आपत्ति जताए जाने के बाद ही एफआईआर दर्ज की गई थी.हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और पीड़ित की तरफ से दी गई दलील उत्तराखंड पुलिस प्रशासन की कार्यशैली सवालों के घेरे में हैं.
हिंदुस्तान में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश के अलग-अलग हिस्सों में अंतरधार्मिक विवाहों को लेकर अक्सर विवाद देखने को मिलता रहा है, खासकर तब जब एक पक्ष मुस्लिम समुदाय से हो. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश दो वयस्कों के आपसी सहमति से संबंध बनाने और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करता है. देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था के जरिये दिए गए आदेश के बाद उम्मीद है कि धामी सरकार इस तरह की एक तरफा कार्रवाई से बचेगी.