Telangana Muslims Survey: तेलंगाना की एक गैर सरकारी संस्था ने मुसलमानों की सामाजिक स्थिति को लेकर सर्वे किया है. यह सर्वे राज्य सरकार की जातिगत जनगणना को ध्यान में रखकर किया गया है, जिसमें समुदाय की शिक्षा, आय और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर आधारित है.
Trending Photos
Telangana News Today: तेलंगाना की एक गैर सरकारी संगठन के जरिये किए गए सर्वे में मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक स्थिति को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. तेलंगाना सरकार की जाति जनगणना को ध्यान में रखकर किए गए इस सर्वे में सामने आया है कि 39 फीसदी मुस्लिम औरतें अपना घर चलाने के लिए काम करती हैं. सर्वे के मुताबिक, उन घरों में जहां कमाने वाले पुरुष अस्वस्थ्य या बेरोजगार हैं, वहां पर महिलाओं की कामकाज में भागीदारी लगभग 90 फीसदी तक पहुंच जाती है.
सर्वे से जाहिर होता है कि मुस्लिम समाज में अब परिदृश्य बदल रहा है. सर्वे में 3,000 लोगों से सवाल पूछे गए, इनमें से 45 फीसदी महिलाओं ने बताया कि अब उन्हें काम करने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है. हालांकि इनमें से ज्यादातर महिलाएं घर से ही काम करना पसंद करती हैं. यह सर्वे हेल्पिंग हैंड फॉउंडेशन (HHF) के जरिये तेलंगाना में प्रमुख अल्पसंख्यक समुदाय का रमजान मूल्यांकन करने के हिस्से के रूप में किया गया था. सर्वे के नतीजों में सामने आया कि समाज के निचले तबके के ज्यादातर पुरुष ऑटो ड्राइवर हैं. इसके अलावा सेमी स्किल काम जैसे प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन और इंफॉर्मल मजदूर के रुप में होटलों, फंक्शन हॉल, सड़क पर ठेले लगाने वाले होते हैं.
इसी तरह मुस्लिम समुदाय के पुरुषों और महिलाओं की निर्माण कार्य में भागीदारी बहुत कम है. जबकि समुदाय के लोगों की गिग वर्कर्स (फ्रीलांस या कांट्रैक्ट पर काम) के रुप में भागीदारी बढ़ी है. हेल्पिंग हैंड फॉउंडेशन के ट्रस्टी मुजतबा हसर असकरी ने बताया कि मुसलमानों को वेलफेयर से ज्यादा विकास की जरुरत है, जिससे स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च होने वाले भारी बोझ को कम किया जा सके. जिससे समाज में स्थिरता आए और उनके दैनिक खर्च में बचत हो.
मुजतबा हसर असकरी ने बताया कि तेलंगाना सरकार की हालिया जाति जनगणना के मुताबिक मुस्लिम आबादी लगभग 45 लाख है. हैदराबाद के शहरी बस्तियों में मुस्लिमों की आबादी शहर की आबादी का लगभग 30 से 35 फीसदी है. इस सर्वे का का फोकस 70 फीसदी मुस्लिम आबादी के निचले तबके पर किया गया, जो हर महीने 15 हजार रुपये से कम कमाता है. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले कमाने वाले जिस पर कई आश्रित हैं, जबकि ऐसे घर जहां पति और पत्नी दोनों कमाते हैं बहुत कम हैं. इसी तरह बेहतर जीवन दूसरे शहरों का रुख करने का रुझान भी बहुत कम है. कई मुस्लिम परिवार राशन कार्ड समेत सरकार की दूसरी जनकल्याणकारी योनजा को लेकर जागरुक हैं.
टीओआई की खबर के मुताबिक, मुस्लिम समुदाय के पुरुषों और महिलाओं में साक्षरता का स्तर बहुत ही कम है. शहरी बस्तियों में एक फैमिली शिक्षा पर प्रति बच्चे औसतन 800 रुपये प्रति माह खर्च करती है. इसी तरह खराब स्वास्थ्य, खासकर डायबीटीज, हाइपरटेंशन, क्रोनिक किडनी रोग और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की वजह से हर तीन में से एक फैमिली पर बुरा असर पड़ रहा है. स्वास्थ्य रहने और बेहतर इलाज की लागत काफी बढ़ रही है. सर्वे के मुताबिक, औसत फैमिली स्वास्थ्य देखभाल की जरुरतों पर हर माह दो हजार से 8 हजार रुपये खर्च करती है.