Bollywood First Female Singer: भारत की पहली फीमेल म्यूजिक डायरेक्टरों में शामिल एक पारसी परिवार की क्लासिकल सिंगर ने 1935 से 1961 तक बॉम्बे टॉकीज की कई फिल्मों में यादगार संगीत दिया. हालांकि, उनको ज्यादातर लोग जानते नहीं. उनका एक गाना आज भी सुपरहिट है.
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Bollywood First Female Singer: भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में शुरुआत से ही कई बेहतरीन फीमेल सिंगर्स ने अपनी आवाज का जादू लोगों पर चलाया और उनका दिल जीता. पुराने दौर में भी फीमेल सिंगर्स का जलवा इतना था कि अच्छे-अच्छे मेल सिंगर्स भी उनके साथ गाए बिना रह नहीं पाते थे. इस लिस्ट में सबसे पहला नाम तो लता मंगेशकर का ही आता है, जिनको सभी लता दीदी कह कर बुलाया करते थे, जिनके गाने आज भी लोगों के दिल में बसे हुए हैं.
इनके अलावा आशा भोसले, अल्का याग्निक, श्रेया घोषाल, सुनिधि चौहान जैसी सिंगर्स के नाम आज भी लोगों की जुबां पर हैं. लेकिन इन मशहूर नामों से पहले भी एक ऐसी फीमेल सिंगर थीं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में अपनी अलग पहचान बनाई, हालांकि उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. साल 1912 में एक पारसी परिवार में जन्मी इस अद्भुत कलाकार का असली नाम खुर्शीद मांचेरशेर मिनोचेर होमजी था, जिन्हें दुनिया ‘सरस्वती देवी’ के नाम से जानती है.
क्लासिकल म्यूजिक ली थी ट्रेनिंग
वो बचपन से ही संगीत में निपुण थीं और क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग ली थी. सरस्वती देवी सिर्फ सिंगर ही नहीं, बल्कि मशहूर म्यूजिशियन भी थीं. उन्होंने 1930 और 40 के दशक में बॉम्बे टॉकीज की कई फिल्मों में शानदार संगीत दिया, जिससे उनकी पहचान और भी मजबूत हो गई. सरस्वती देवी का करियर 1935 में फिल्म ‘जवानी की हवा’ से शुरू हुआ. इसके बाद उन्होंने ‘अछूत कन्या’, ‘कंगन’, ‘बंधन’ और ‘झूला’ जैसी कई फिल्मों में संगीत दिया.
30 से ज्यादा फिल्मों में दिया संगीत
1935 से 1961 के बीच उन्होंने लगभग 30 से ज्यादा फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया. उनका काम उस समय के दर्शकों को इतना पसंद आया कि वो धीरे-धीरे फिल्म इंडस्ट्री में एक सम्मानित नाम बन गईं. उनके संगीत की खासियत थी उसकी सादगी और मधुरता, जो सीधे दिल को छू जाती थी. पंकज राग की किताब ‘धुनों की यात्रा’ में उनके सफर का जिक्र किया गया है. इसमें जद्दनबाई का भी उल्लेख है, जिन्होंने फिल्मों में संगीत दिया था, लेकिन वो सिर्फ कुछ फिल्मों तक सीमित रहीं.
सफल होने के बाद छिपाना पड़ा नाम
जबकि सरस्वती देवी ने लगभग एक दशक तक लगातार काम किया. उनकी सफलता के बावजूद उन्हें अपना असली नाम छिपाना पड़ा और ‘सरस्वती’ नाम से काम करना पड़ा, क्योंकि उनके परिवार को फिल्मों में महिलाओं के काम करने की इजाजत नहीं थी. उस दौर में महिलाओं के लिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखना आसान नहीं था, खासकर जब बात किसी रूढ़िवादी पारसी परिवार की हो. इसके बावजूद सरस्वती देवी ने अपनी लगन और प्रतिभा से सभी मुश्किलों को पार किया.
ये था उनका सबसे बड़ा हिट गाना
उनका सबसे मशहूर गाया और कंपोज किया हुआ गीत 'मैं बन की चिड़िया बन के बुन बुन बोलूं रे' आज भी याद किया जाता है. ये गाना 1936 में आई फिल्म ‘अछूत कन्या’ का था, जिसको देविका रानी और अशोक कुमार पर फिल्माया गया था. इसे दर्शकों ने बेहद पसंद किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘जवानी की हवा’, ‘जीवन नैया’, ‘झूला’, ‘कंगन’, ‘बंधन’ और ‘नया संसार’ जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया. कुछ फिल्मों में उन्होंने खुद भी गाया, जिससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा सामने आई.