Mayawati BSP: मायावती अब अपनी रणनीति को धार देने में जुटी हैं. वह लगातार संगठन की बैठकें कर रही हैं और कार्यकर्ताओं को बीजेपी, सपा और कांग्रेस की 'दलित विरोधी' नीतियों के बारे में जागरूक करने का निर्देश दे रही हैं. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष के मुताबिक पार्टी सभी विधानसभा क्षेत्रों में कैडर कैंप आयोजित कर रही है.
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Dalit voters in UP: एक जमाने में उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी और दलित वोटर्स का एक अटूट रिश्ता रहा है. मायावती को कभी दलित समुदाय की सबसे मजबूत नेता माना जाता था लेकिन अब वही वोट बैंक उनसे दूर होता दिख रहा है. 2007 में बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी लेकिन इसके बाद से लगातार चुनावी नतीजे मायावती के खिलाफ जाते रहे. अब 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तीनों दल दलित वोटर्स को लुभाने में जुट गए हैं. तो आखिर ऐसा क्या कारण रहे हैं कि जो लोग कभी बहनजी मायावती की पूजा करते थे वो अब भाव ही नहीं दे रहा है.
बीजेपी का दलित प्रेम और सपा की पीडीए रणनीति
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में विधानसभा में बजट पर चर्चा के दौरान साफ कर दिया कि उनकी सरकार दलितों और कमजोर तबकों के कल्याण को प्राथमिकता देगी. बीजेपी दलित वोटर्स को वापस लाने के लिए पूरे राज्य में 'दलित आउटरीच' कार्यक्रम चला रही है. वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने 'पीडीए' पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक गठजोड़ के जरिए अच्छी सफलता हासिल की थी और अब इसे 2027 में दोहराने की कोशिश कर रही है. अखिलेश यादव दलित मुद्दों पर जोर दे रहे हैं और 'संविधान बचाओ' अभियान के तहत दलितों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
कांग्रेस की रणनीति और राहुल गांधी का निशाना
इस दौड़ में कांग्रेस भी पीछे नहीं है. राहुल गांधी ने रायबरेली में दलित छात्रों से बातचीत के दौरान खुलकर सवाल किया कि बहनजी चुनावों में सक्रिय क्यों नहीं हैं? कांग्रेस पूरे यूपी में दलित समुदाय को संगठित करने के लिए कई अभियान चला रही है. राहुल गांधी ने मायावती पर निशाना साधते हुए यह भी कहा कि वह बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की लड़ाई में शामिल नहीं हो रही हैं. जिससे दलित वोटर्स को एक नया विकल्प देने की कोशिश की जा रही है.
बसपा की गिरती साख और चंद्रशेखर की चुनौती
बसपा का वोट शेयर और सीटें लगातार गिर रही हैं. 2007 में 30% से ज्यादा वोट पाने वाली बसपा 2022 में महज 12.88% वोटों पर सिमट गई और सिर्फ एक सीट जीत पाई. लोकसभा में भी बसपा का कोई सदस्य नहीं बचा है. वहीं आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद दलित युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं जो बसपा के लिए नई चुनौती बन गए हैं.
मायावती की रणनीति... पुराने फॉर्मूले पर वापसी?
मायावती अब अपनी रणनीति को धार देने में जुटी हैं. वह लगातार संगठन की बैठकें कर रही हैं और कार्यकर्ताओं को बीजेपी, सपा और कांग्रेस की 'दलित विरोधी' नीतियों के बारे में जागरूक करने का निर्देश दे रही हैं. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष के मुताबिक पार्टी सभी विधानसभा क्षेत्रों में कैडर कैंप आयोजित कर रही है और युवा वोटर्स को वापस लाने की कोशिश कर रही है. लेकिन क्या मायावती अपना खोया जनाधार वापस पा सकेंगी या फिर दलित वोटर्स किसी नए विकल्प की ओर देख रहे हैं? यह 2027 का चुनाव ही तय करेगा.