Bettiah Vidhan Sabha Seat: बेतिया में चुनावी सरगर्मी के बीच व्यापारी वर्ग में इस बात को लेकर गुस्सा है कि दीपेंद्र सर्राफ जैसे पुराने नेता को आज तक टिकट क्यों नहीं मिला. भाजपा के लिए एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले सर्राफ को टिकट न मिलने पर पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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Bettiah Vidhan Sabha Seat: बिहार विधानसभा 2025 के चुनाव में पश्चिम चंपारण की बेतिया सीट इस बार फिर से सियासी हलचल का केंद्र बन रही है. इस सीट पर फिलहाल भाजपा की रेणु देवी विधायक हैं, लेकिन अब पार्टी के ही एक अन्य दिग्गज दीपेंद्र सर्राफ ने इस पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं. दीपेंद्र सर्राफ भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रह चुके हैं. दीपेंद्र सर्राफ इन दिनों पूरे बेतिया विधानसभा में जोर-शोर से जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं.
दीपेंद्र सर्राफ 1989 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिए राजनीति में सक्रिय हुए. 1995 में भाजपा से जुड़े और तब से लेकर आज तक पार्टी के लिए हमेशा खड़े रहे. उन्होंने जिला अध्यक्ष के रूप में भी जिम्मेदारी निभाई है. 1995 में जिला प्रमुख रहते हुए बड़ी रेल लाइन पर 18 दिनों तक आंदोलन किया था. साथ ही राजद के कार्यकाल में बूथ लूटने वाले अपराधियों से मुकाबला किया.
दीपेंद्र सर्राफ लगातार सामाजिक मुद्दों पर संघर्ष करते आए हैं. खासकर व्यवसाई वर्ग के लिए उन्होंने सेल्स टैक्स कमिश्नर और लेबर कमिश्नर के भ्रष्टाचार को उजागर किया था. 2006 में भी एक बड़ा आंदोलन किया, जिसके चलते इन भ्रष्ट अधिकारियों को जेल जाना पड़ा. स्वर्गीय सुशील मोदी के भी बेहद करीबी रहे दीपेंद्र सर्राफ को 2020 में विधानसभा टिकट देने का वादा किया गया था.
दीपेंद्र सर्राफ चुनावी माहौल से इतर शिक्षा के लिए भी काम कर रहे हैं. वह गांव-गांव में जनसंपर्क करते हुए बच्चों को स्कूल की ओर प्रोत्साहित कर रहे हैं. उनके स्कूल किट अभियान के तहत 50 से ज्यादा स्कूलों में कापी, पेन, पेंसिल और अन्य जरूरी सामान वितरित किया गया है.
व्यवसायियों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि दीपेंद्र सर्राफ जैसे पुराने नेता को आज तक पार्टी ने टिकट क्यों नहीं दिया. कन्हैया लाल गुप्ता और राजू रौनियार जैसे व्यापारी नेताओं का कहना है कि इस बार दीपेंद्र सर्राफ को टिकट नहीं मिला तो भाजपा को इसका असर चुनाव में भुगतना पड़ेगा.
सीट का समीकरण
बेतिया विधानसभा में 2,95,147 मतदाता हैं, जिनमें मुस्लिम और वैश्य समुदाय सबसे प्रभावशाली है. शहर में सड़कों, नालियों, स्वास्थ्य सेवाओं और भ्रष्टाचार से जनता परेशान है. ग्रामीण इलाकों में बाढ़, पलायन, बेरोजगारी जैसी समस्याएँ मुख्य मुद्दे हैं. अगर इस बार भाजपा दीपेंद्र सर्राफ को टिकट देती है तो वे अपनी मेहनत से इस सीट पर मजबूती से लड़ सकते हैं. भाजपा कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी से इस सीट पर हमेशा कांटे की टक्कर रही है. 2020 में रेणु देवी ने उन्हें 18,079 वोटों से हराया था, जबकि 2015 में वे 2,000 वोटों से हार गई थीं.
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