Ahilyabai Holkar: अहिल्याबाई होल्कर मालवा की आदर्श शासक ने 33 वर्षों तक न्याय, लोककल्याण और धार्मिक सहिष्णुता के साथ शासन किया. उन्होंने मंदिर, घाट, स्कूल बनवाए, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और अंतिम समय तक जनसेवा में समर्पित रहीं.
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Ahilyabai Holkar: भारत के इतिहास में ऐसी महिलाएं कम ही हुईं जिन्होंने न सिर्फ अपने समय की सामाजिक बाधाओं को तोड़ा, बल्कि शासन, न्याय और लोककल्याण का आदर्श भी पेश किया. मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर उन्हीं में से एक थीं. 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी गांव में जन्मी अहिल्याबाई का पालन-पोषण साधारण परिवार में हुआ, लेकिन उनकी सोच और कर्म असाधारण थे. बचपन में ही मराठा पेशवा के सेनापति मल्हारराव होल्कर ने उनकी धर्मपरायणता को देखकर उन्हें अपने पुत्र खंडेराव की वधू बनाया.
विपरीत परिस्थितियों में मिला राजपाट
1733 में विवाह के बाद अहिल्याबाई ने परिवार और प्रजा की सेवा को जीवन का लक्ष्य बना लिया. 1754 में पति खंडेराव युद्ध में शहीद हो गए और 1766 में ससुर मल्हारराव के निधन के बाद पूरा राज्य उनके जिम्मे आ गया. उन्होंने 33 वर्षों तक न्याय, कूटनीति और लोककल्याण के साथ मालवा का शासन किया. इस दौरान मंदिरों, घाटों, कुओं, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण कराया, महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया.
भक्ति और सहिष्णुता का अद्भुत संगम
अहिल्याबाई शिवभक्त थीं और हमेशा अपने साथ शिवलिंग रखती थीं. उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता को भी महत्व दिया. मुस्लिम प्रजा की भावनाओं का सम्मान करते हुए मंदिर में वाद्ययंत्र बजाने की मांग तक रोक दी, ताकि किसी को ठेस न पहुंचे. यही कारण था कि वे न सिर्फ हिंदुओं बल्कि मुस्लिम शासकों और प्रजा में भी लोकप्रिय रहीं.
अंतिम समय तक लोककल्याण में समर्पित
13 अगस्त 1795 को, 70 वर्ष की आयु में श्रावण मास के धार्मिक और दान-पुण्य कार्यों के बीच उन्होंने अंतिम सांस ली. बारह हजार लोगों को भोजन कराने और राज्य के कल्याण के दान देने के बाद उनका जीवन यात्रा पूर्ण हुई. आज उनकी पुण्यतिथि पर महेश्वर और इंदौर में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं जो सेवा, न्याय और नारी सम्मान की प्रतीक बनकर भारतीय इतिहास में अमर हैं.