टेरर और टॉक एक साथ नहीं हो सकती, JNU की वीसी बोलीं- तुर्की की स्टूडेंट को नहीं देंगे जगह
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टेरर और टॉक एक साथ नहीं हो सकती, JNU की वीसी बोलीं- तुर्की की स्टूडेंट को नहीं देंगे जगह

JNU VC Santishree: JNU की कुलपति शांतिश्री धूलिपुरी पंडित ने कहा कि हमे एक संदेश देना था कि जेएनयू एक पब्लिक यूनिवर्सिटी है और यह टेक्स पेयर के पैसों पर चलता है और हम एक राष्ट्रवादी यूनिवर्सिटी है. आर्मी और नेवल चीफ जेएनयू के स्टूडेंट रहे है. हमने यह दिखाया है कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र के साथ हैं.

JNU की कुलपति का सशक्त राष्ट्रवादी बयान, कहा- हम अमन की नहीं, ब्रह्मोस की भाषा भी जानते हैं
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JNU Vice Chancellor Santishree Dhulipudi Pandit: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुरी पंडित ने एक भावुक और स्पष्ट संदेश दिया है कि जेएनयू राष्ट्रवादी यूनिवर्सिटी है और यह भारत के टैक्सपेयर्स के पैसों से चलता है इसलिए राष्ट्र ही सर्वोपरि है. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी का मकसद सिर्फ शिक्षा देना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और देशभक्ति की भावना को भी मजबूत करना है. 

वीसी ने गर्व से बताया कि भारतीय सेना और नौसेना के प्रमुख भी कभी जेएनयू के छात्र रह चुके हैं, जो इस बात का सबूत है कि यह संस्थान हमेशा से देश के साथ खड़ा रहा है. हमने यह दिखाया है कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ हैं और जेएनयू हमेशा से राष्ट्र के पक्ष में रहा है. उन्होंने बताया कि जेएनयू में 23 विदेशी भाषाएं सिखाई जाती हैं, जिनमें से एक तुर्की भाषा भी है. तुर्की के ही अनुरोध पर एमओयू (समझौता) के लिए पहल की गई थी लेकिन वीसी ने साफ कहा कि टेरर और टॉक साथ नहीं चल सकते. उन्होंने दो टूक कहा कि अगर कोई देश भारत के साथ अच्छे रिश्ते नहीं रखता, तो हम उसकी यूनिवर्सिटी से समझौता नहीं करेंगे और ऐसे देशों के स्टूडेंट्स को भी जेएनयू में दाखिला नहीं दिया जाएगा.

वीसी ने आगे कहा कि देश सिर्फ प्रधानमंत्री और सेना के भरोसे नहीं चल सकता और यूनिवर्सिटीज की भी जिम्मेदारी है कि वे देश की सुरक्षा के बारे में सोचें. उन्होंने इस बात को भी स्वीकारा कि बीच में जेएनयू की छवि खराब हुई थी. लेकिन आज वह गर्व से कह सकती हैं कि जेएनयू हमेशा राष्ट्रवादी यूनिवर्सिटी ही रहा है मैं खुद यहां की छात्रा रही हूं. अब हम खुलकर कहते हैं - हम राष्ट्र के साथ हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने यह कही कि कि हम सिर्फ अमन की भाषा नहीं, ब्रह्मोस की भाषा भी बोलेंगे. यानी शांति की बात करेंगे, लेकिन जरूरत पड़ी तो देश की ताकत भी दिखाएंगे. उनका यह बयान जेएनयू की नई सोच और नए रास्ते की झलक देता है- जहां शिक्षा के साथ-साथ देशभक्ति भी उतनी ही जरूरी है.

इनपुट- अनुज तोमर

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