India-Pakistan War: पागी की नजर और अनुभव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह इंसानों के पैरों के निशान देखकर बता देते थे कि उसका वजन, उम्र कितनी होगी और कितनी दूर तक गया होगा.
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Ranchordas Pagi Biography: पागी...पागी...साल 2008 में जब भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ अपने अंतिम दिनों में तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थे, तब वह बार-बार ये नाम नाम पुकारते थे. डॉक्टर भी हैरान होकर ये देख रहे थे. लेकिन उनके पास इलाज करने के अलावा कोई चारा नहीं था. एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया कि सर ये पागी कौन है?
रेगिस्तान के रास्तों का पागी
इसके बाद जैसे वक्त सैम मानेकशॉ के लिए साल 2008 से उठकर अतीत की यादों में पहुंच गया. पागी का मतलब होता है गाइड. रेगिस्तान के रेत और कंटीले पौधों के बीच भी रास्ता ढूंढने वाले वाला शख्स. ये नाम उनको सैम मानेकशॉ ने दिया था. उनका पूरा नाम था रणछोड़भाई सवाभाई रबारी. सिर पर राजस्थानी पगड़ी. धोती-कुर्ता पहना एक शख्स. बड़ी-बड़ी रौबदार मूंछें. हुनर ऐसा कि ऊंट के निशान देखकर ये बता देते थे कि उन पर कितने लोग सवार थे और किस दिशा में कितनी दूर तक गए हैं.
पैरों के निशान देखकर बताते थे सबकुछ
9 सितंबर 1901 को पिथापुर गांव के पथापुर गथ्रस (अब पाकिस्तान) में रणछोड़दास का जन्म हुआ. वहां वह भेड़, बकरियां और ऊंट चराया करते थे. 1947 में जब बंटवारा हुआ तो रणछोड़दास भारत आ गए. लेकिन उनकी जिंदगी बदली 58 साल की उम्र में. तब उनको बनासकांठा के एसपी वनराज सिंह झाला ने गाइड नियुक्त किया. पागी की नजर और अनुभव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह इंसानों के पैरों के निशान देखकर बता देते थे कि उसका वजन, उम्र कितनी होगी और कितनी दूर तक गया होगा. उनकी कैलकुलेशन किसी कंप्यूटर एनालिस्ट जितनी सटीक थीं. उनकी यह काबिलियत देखकर सेना समेत पुलिस के लोग भी दंग रह जाते थे.
सेना के लिए निकालीं खुफिया जानकारी
चीन से युद्ध को दो साल ही बीते थे कि साल 1965 में माहौल फिर बिगड़ने लगा. सरहद पर युद्ध के बादल छाने लगे. सेना बॉर्डर की तरफ रुख करने लगीं. जंग से पहले ही पाकिस्तानी सेना ने कच्छ के कई गांवों पर कब्जा कर लिया. फिर काम शुरू हुआ पागी का. पागी इन गांवों में गए और गांववालों और अपने रिश्तेदारों दोनों से खुफिया जानकारी निकालकर सेना को देने लगे. लेकिन उनके एक कारनामे ने तो कमाल कर दिया. उन्होंने 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन पता लगा ली जो गुप अंधेरे में छिपे बैठे थे. इस जानकारी की वजह से ना सिर्फ भारत को 1965 की जंग में फायदा हुआ बल्कि 1971 की जंग में भी कई पोस्ट्स जीत लीं. इतना ही नहीं, उनकी खुफिया जानकारी की वजह से हजारों भारतीय सैनिकों की जान भी बच गई.
12 घंटे पहले जवानों को पहुंचाया था मंजिल तक
अब आपको पागी का हैरान कर देने वाला ऐसा किस्सा बताते हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. 1965 का युद्ध जब शुरू हुआ, तब पाकिस्तानी सेना ने कच्छ बॉर्डर के पास विधकोट पर कब्जा कर लिया. जवाबी मुठभेड़ में भारतीय सेना के 100 जवान शहीद हो गए. तब सेना को पागी की जरूरत महसूस हुई. उनको 100000 भारतीय सैनिकों को अगले तीन दिन में 'छरकोट' पहुंचाने का काम सौंपा गया.
लेकिन पागी का हुनर ही था कि भारतीय सेना के जवान वक्त से 12 घंटे पहले ही मंजिल तक पहुंच गए. उनको निजी तौर पर सैम मानेकशॉ ने ही आर्मी को गाइड करने के लिए चुना था और उनके लिए खासतौर पर सेना में ''पागी" नाम की पोस्ट बनाई गई थी, जिसका मतलब है कि वो शख्स जिसे पगों की जानकारी हो.
पैरों के निशान से निकाली थी लोकेशन
भारतीय सीमा के पास 1200 पाकिस्तानी सैनिकों के छिपे होने की जानकारी भी पागी ने उनके पैरों से खोज निकाली थी. वह पोस्ट जीतने के लिए भारतीय सेना को बस इतनी ही जानकारी का इंतजार था. कहा जाता है कि सरक्रीक के चैनल के हरामी नाले में जंग के दौरान उन्होंने सेना की मदद की थी. यह जगह स्मग्लर्स और घुसपैठियों का गढ़ था.
पागी का काम सिर्फ सेना को रास्ता दिखाना ही नहीं था. 1971 की जंग में मोर्चे तक हथियार लाने के काम में भी पागी शामिल थे. पाकिस्तान के पालीनगर शहर को भी भारतीय सेना ने पागी की मदद से ही जीता था. पागी के हुनर और अनुभव ने सबका दिल जीत लिया था. सैम मानेकशॉ तो इतने खुश हुए थे कि उन्होंने कुछ अपनी जेब से 300 रुपये का नकद पुरस्कार पागी को दिया था.
मिले थे कई बड़े मेडल
1965 और 1971 की जंग में अपने अद्भुत शौर्य की वजह से उनको संग्राम मेडल, पुलिस मेडल और समर सर्विस मेडल दिया गया. जब 1971 की जंग खत्म हुई और भारत ने जंग जीत ली तो जनरल सैम मानेकशॉ ढाका में थे. उन्होंने पागी को उस दिन डिनर के लिए बुलाया. उनको लाने के लिए एक हेलिकॉप्टर भेजा गया. जब वह हेलिकॉप्ट में बैठ गए तो उनकी एक पोटली नीचे रह गई. उसे लेने के लिए हेलिकॉप्टर दोबारा नीचे उतरा. नियमों के मुताबिक, अफसरों ने उसे हेलिकॉप्टर में रखने से पहले खोलकर देखा तो वह हैरान रह गए. उसमे दो रोटियां, प्याज और गाठिया की सब्जी थी. डिनर के दौरान इसमें से आधा खाना सैम मानेकशॉ और आधा पागी ने खाया.
बाद में, उत्तरी गुजरात के इंटरनेशनल बॉर्डर के पास 'सुईगांव' की एक सीमा चौकी का नाम 'रणछोड़दास पोस्ट' रखा गया है. यह पहली बार था कि किसी सैन्य चौकी का नाम किसी आम आदमी के नाम पर रखा गया और साथ ही उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित की गई.
112 साल की उम्र में हुई थी मृत्यु
साल 27 जून 2008 को जब सैम मानेकशॉ की मृत्यु हुई तो पागी ने भी साल 2009 में सेना से वॉलंटरी रिटायरमेंट ले ली. उस वक्त पागी की उम्र 108 साल थी. उनकी मृत्यु 112 साल में साल 2013 में हुई. आज भी गुजरात के लोकगीतों में पागी की कथाएं सुनाई जाती हैं. कहते हैं ना कि सारे हीरो वर्दी नहीं पहनते. भले ही पागी ने कभी वर्दी ना पहनी हो लेकिन उनका योगदान भारतीय सेना और देश के लिए बहादुरी, देशभक्ति, त्याग, समर्पण और शालीनता से भरा था.