DNA: लोगों की जान से खिलवाड़, मलबा बन रहा टैक्यपेयर्स का पैसा, बनते ही टूटने क्यों लगते हैं पुल और सड़कें?
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DNA: लोगों की जान से खिलवाड़, मलबा बन रहा टैक्यपेयर्स का पैसा, बनते ही टूटने क्यों लगते हैं पुल और सड़कें?

Bridge Collapse in Gujarat: राजस्थान में झुंझुनूं के उदयपुरवाटी में स्टेट हाइवे करोड़ों की लागत से बनाया गया था. इसी स्टेट हाइवे से आसपास के लोग नेशनल हाइवे 52 तक पहुंचते थे. सोचिए सड़क कितनी मजबूत बनाई गई थी. पहली ही बारिश में बह गई.

DNA: लोगों की जान से खिलवाड़, मलबा बन रहा टैक्यपेयर्स का पैसा, बनते ही टूटने क्यों लगते हैं पुल और सड़कें?

Roads Broken: एक कुर्सी और दो दावेदार. अफसरों की इस लड़ाई से सिस्टम बिखर रहा है और भ्रष्ट सिस्टम की वजह से पुल गिर रहा है. नई सड़क टूट रही है. इन सबका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है. कैसे आम आदमी इस लड़ाई और बिखर चुके सिस्टम से परेशान होता है. चलिए आपको समझाते हैं. राजस्थान में उद्घाटन से पहले ही सड़क पानी में बह गई. सोचिए कितनी मजबूत सड़क बनाई गई होगी. दूसरी घटना बेंगलुरु की है. यहां अप्रैल में बनाए गए फुटपाथ को जुलाई में फिर खोद दिया गया. अब अफसर या तो कुर्सी की लड़ाई में व्यस्त थे. या बार-बार निर्माण से होनेवाले निजी लाभ के लिए चार महीने पहले बने फुटपाथ को खोद दिया गया.

पहली बारिश में बह गई सड़क

राजस्थान में झुंझुनूं के उदयपुरवाटी में स्टेट हाइवे करोड़ों की लागत से बनाया गया था. इसी स्टेट हाइवे से आसपास के लोग नेशनल हाइवे 52 तक पहुंचते थे. सोचिए सड़क कितनी मजबूत बनाई गई थी. पहली ही बारिश में बह गई. ये स्टेट हाइवे झुंझुनू और सीकर की कनेक्टिविटी के लिए अहम था. अब हजारों लोग परेशान हो रहे हैं. कैसे अफसरों की लड़ाई और भ्रष्टाचार का घुन सिस्टम को ही नहीं देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को कमजोर कर रहा है. 

चार महीने बाद फिर खोदा फुटपाथ

एक वायरल पोस्ट में बेंगलुरू नगर पालिका और टाउन प्लानिंग पर सवाल उठ रहे हैं. पोस्ट में खुदे हुए फुटपाथ की फोटो शेयर की गई है. पोस्ट में बताया गया है कि फुटपाथ अप्रैल के महीने बनाया गया था. अब चार महीने बाद जुलाई में इसे फिर खोद दिया गया है. सोचिए ये कैसी टाउन प्लानिंग है. विभागों और अफसरों के बीच ये कैसा समन्वय है कि चार महीने में ही फुटपाथ को फिर खोद दिया गया. टाउन प्लानिंग से जुड़े विभागों की इसी लापरवाही और कहें तो करतूत के लिए अक्सर लोग करते हैं कि यहां भी खुदा है. वहां भी खुदा है. जहां आज नहीं खुदा हैं. वहां कल खुदेगा.

सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों होता है. क्यों सड़क 6 महीने में ही बह जाती है. क्यों फुटपाथ 4 महीने में ही उखाड़ दिया जाता है. क्यों पुल धड़ाम हो जाते हैं. साफ है इसके पीछे भ्रष्टाचार है. 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1977 से 2017 तक यानी 40 वर्षों में देश में 2 हजार 130 पुल ढह गए. 10 प्रतिशत पुल खराब निर्माण सामग्री के कारण गिरे. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 से 2024 के बीच 15 बने हुए और 6 बन रहे पुल गिर गए. सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 से 2024 के बीच 42 पुल ढह गए.

गुजरात में गिरा पुल, 10 की मौत

पुल की बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज गुजरात के वडोदरा और आणंद को जोड़ने वाला एक पुल गिर गया.जिस वक्त पुल गिरा उस वक्त लोग पुल से गुजर रहे थे, जो पुल के टूटने की वजह से नदी में जा गिरे. इस हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई है.

देश में सबसे ज्यादा पुल महाराष्ट्र में हैं. यहां 15 हजार 571 पुल हैं. दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, यहां 13 हजार पुल हैं. बिहार में महज 3 हजार 900 पुल हैं. देश में सबसे कम पुल लक्षद्वीप में है. यहां सिर्फ एक पुल है. बिहार पुल के मामले में देश के टॉप राज्यों में नहीं है, लेकिन पुल गिरने के मामले में टॉप पर है. दूसरे नंबर पर झारखंड है. महाराष्ट्र और यूपी जैसे राज्य जहां सबसे ज्यादा पुल हैं वहां पुल गिरने की घटनाएं बहुत कम होती हैं.

CAG की रिपोर्ट के मुताबिक देश में सड़क और पुल बनाने बनाने में भारी भ्रष्टाचार होता है. कुल बजट का करीब 40 प्रतिशत रिश्वत-कमीशन में चला जाता है. यानी 100 रुपए का बजट है तो सिर्फ 60 रुपए में ही पुल बनता है. अब आप सोचिए निर्माण की गुणवत्ता कैसी होगी. 

सड़क बनाने में खर्च होते हैं करोड़ों

देश में एक किलोमीटर सड़क बनाने में 25 से 50 करोड़ रुपए खर्च होता है. वहीं 1 किलोमीटर ब्रिज या एलिवेटेड रोड बनाने में 250 से 300 करोड़ रुपए तक खर्च होते हैं. भारत में कुल पुलों की संख्या का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि नेशनल हाईवे नेटवर्क पर हर 3 मिनट की ड्राइविंग पर एक पुल या कल्वर्ट मिलता है. फुटपाथ, सड़क, पुल ये सिर्फ ढांचा नहीं है. ये देश के इंफ्रास्क्चर का हिस्सा हैं. ये आम नागरिक की सुविधा से जुड़ा मुद्दा है. 

इसलिए 4 महीने में फुटपाथ का उखड़ना, 6 महीने में सड़क का बहना और पुल का ढह जाना चुभता है. ये घटनाएं सिर्फ चुभती नहीं हैं. ये सरकारी खजाने को भी चोट पहुंचाती हैं. पिछले 15 साल में पुल गिरने से सरकारी खजाने को करीब 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. सड़क बहने से करीब 3 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. फुटपाथ के बार-बार मरम्मत से देश के खजाने पर करीब 1 लाख करोड़ का बोझ पड़ा. कुल मिलाकर सरकारी खजाने से करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये निकल गए.

करप्शन की भेंट चढ़ा टैक्सपेयर्स का पैसा

ये आपका और हमारा पैसा है. ये देश के आम टैक्सपेयर का पैसा है. ये पैसा आम नागरिक की सुविधा के लिए खर्च होना था. लेकिन ये करप्शन में बह गया. साढ़े चार लाख करोड़ रुपए में आपके हमारे लिए करीब 40 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बन सकता था. मुंबई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जैसे 4 कॉरिडोर बन सकते थे.

एक हजार से ज्यादा नई ट्रेन और 5 हजार से ज्यादा स्टेशनों को आम नागरिक के लिए सुविधायुक्त बनाया जा सकता था. देशभर में 2 लाख से ज्यादा स्कूल बन सकते थे. देश में करीब 6 लाख गांव हैं. यानी हर तीसरे गांव में एक नया स्कूल बन सकता था.

देश के हर जिले में 1 मॉडल यूनिवर्सिटी और 10 कॉलेज बन सकते थे. देश के हर जिले में सुविधाओं से लैस एक अस्पताल बन सकता था. 500 मेडिकल कॉलेज और 10 AIIMS बनाए जा सकते थे. विकास कार्यों की लिस्ट बहुत लंबी हो सकती है. हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि एक सड़क का बह जाना, एक पुल का गिर जाना या एक फुटपाथ का उखड़ जाना सिर्फ एक भ्रष्टाचार की घटना नहीं है. ये देश के विकास में बड़ा अवरोध है. ये छोटी-छोटी घटनाएं हमारी सुविधाओं में कटौती करती हैं.

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रचित कुमार

नवभारत टाइम्स अखबार से शुरुआत फिर जनसत्ता डॉट कॉम, इंडिया न्यूज, आजतक, एबीपी न्यूज में काम करते हुए साढ़े 3 साल से ज़ी न्यूज़ में हैं. शिफ्ट देखने का लंबा अनुभव है.

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